देश की सर्वोच्च अदालत की स्थापना के 71 साल बाद देश को पहली महिला मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) मिलने का रास्ता साफ हो गया है। जस्टिस बीवी नागरत्ना वरिष्ठता सूची के अनुसार सितंबर 2027 में सीजेआई बन सकती हैं। हालांकि, उनका कार्यकाल केवल 36 दिनों का ही होगा। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ईएस वेंकटरमैया की बेटी जस्टिस नागरत्ना को 1987 में बैंगलोर बार में शाामिल किया गया था। उन्हें 18 फरवरी 2008 को कर्नाटक उच्च न्यायालय के अतिरिक्त जज के रूप में और 17 फरवरी 2010 को स्थायी जज के रूप में नियुक्त किया गया था। कर्नाटक हाईकोर्ट में जज के रूप में उन्होंने बच्चों की शिक्षा, सुरक्षा, बच्चियों की सेहत को लेकर कई बड़े फैसले किए, जिन्हें आज भी नजीर माना जाता है। जस्टिस नागरत्ना के ये फैसले बाद में देश के अलग-अलग हिस्सों में लागू किए गए।
नई दिल्ली। महिला सशक्तिकरण की ओर तेजी से बढ़ रहे देश की महिलाओं के लिए एक खुशखबरी आई है। देश की सर्वोच्च अदालत को इसकी स्थापना के 71 साल बाद पहली महिला मुख्य न्यायाधीश मिलने का रास्ता साफ हो गया है। सात दशक लंबे इंतजार का अंत जस्टिस बीवी नागरत्ना (Justice BV Nagarathna) के साथ हो सकता है। वह वरिष्ठता सूची के अनुसार सितंबर, 2027 में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) बन सकती हैं। हालांकि, सीजेआई के रूप में उनका कार्यकाल महज 36 दिनों का ही होगा। जस्टिस नागरत्ना भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश ईएस वेंकटरमैया की बेटी हैं। वह 1987 में बैंगलोर बार की सदस्य बनीं। उन्हें 18 फरवरी 2008 को कर्नाटक हाईकोर्ट के अतिरिक्त जज के रूप में और 17 फरवरी 2010 को स्थायी जज के रूप में नियुक्त किया गया था। कर्नाटक हाईकोर्ट के जज के रूप में उन्होंने सामाजिक कल्याण के क्षेत्र में अहम भूमिका निभाई। उन्होंने बच्चों के लिए शिक्षा का अधिकार सुनिश्चित किया। साथ ही उन्होंने कंपनी अधिनियम, नागरिक मुकदमे और आपराधिक मुकदमे से संबंधित जटिल मामलों में कानून की विस्तृत व्याख्या भी की।
ये अहम फैसले... जो बने नजीर
फैसले में कहा था 'माता-पिता नाजायज हो सकते हैं, बच्चे नहीं'
जस्टिस नागरत्ना ने 24 जून, 2021 को के. संतोषा और कर्नाटक पावर ट्रांसमिशन कॉर्पोरेशन लिमिटेड के मामले में दिए फैसले में असामाजिक संबंधों से पैदा हुए बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए कानून में संशोधन करने की अपील संसद से की थी। उन्होंने अपने फैसले में कहा कि 'बेशक यह संसद पर है कि वह हिंदू विवाह अधिनियम और विशेष विवाह अधिनियम के अलावा व्यक्तिगत कानून के तहत अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को वैधता प्रदान करे। हालांकि, मौजूदा मामले के सीमित उद्देश्य के लिए, जहां तक अनुकंपा नियुक्ति का संदर्भ है, हम पाते हैं कि अन्य व्यक्तिगत कानूनों के तहत अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चे, जहां वैधता प्रदान करने का कोई प्रावधान नहीं है, उन्हें भी हिंदू विवाह अधिनियम या विशेष विवाह अधिनियम, 1954 के तहत अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को जैसा कानून संरक्षण होना चाहिए, वैसा ही संरक्षण दिया जाना चाहिए।' जस्टिस नागरत्ना ने कहा 'इस दुनिया में कोई भी बच्चा बिना माता-पिता के पैदा नहीं होता है। एक बच्चे की उसके जन्म में कोई भूमिका नहीं होती है, इसलिए कानून को इस तथ्य को पहचानना चाहिए कि नाजायज माता-पिता हो सकते हैं, लेकिन नाजायज बच्चे नहीं।'
एनएलएसआईयू के अधिवास आरक्षण को रद्द करना
जस्टिस नागरत्ना ने उस कर्नाटक संशोधन को रद्द कर दिया था, जिसने नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी (एनएलएसआईयू), बेंगलुरू (मास्टर बालचंदर कृष्णन बनाम कर्नाटक राज्य) में 25% अधिवास आरक्षण की शुरुआत की थी। फैसले में जस्टिस नागरत्ना ने कहा, 'एनएलएसआईयू एक अद्वितीय राष्ट्रीय संस्थान था और इसे एक राज्य विश्वविद्यालय नहीं माना जा सकता है।' राज्य सरकार के इस तर्क को खारिज करते हुए कि आरक्षण का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि लॉ स्कूल से स्नातक करने वाले कुछ छात्र कर्नाटक में बने रहेंगे, फैसले में कहा गया था 'आज के भारतीय आर्थिक लोकाचार में, जहां उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण तीन मंत्र हैं, विशेष रूप से 1991 के बाद की अर्थव्यवस्था में सुधारों के बाद कर्नाटक के छात्रों से केवल कर्नाटक में रहने और प्रैक्टिस करने की अपेक्षा करना अनुचित है।' कर्नाटक के छात्रों पर राज्य में रहने की कोई बाध्यता नहीं है और न ही उस पर आक्षेपित आरक्षण को बढ़ावा देने के उद्देश्य से ऐसा वादा लादा जा सकता है, क्योंकि यह संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (जी) के तहत उनकी स्वतंत्रता का उल्लंघन होगा।'
बच्चों की शिक्षा के लिए उठाए महत्वपूर्ण कदम
जस्टिस नागरत्ना के निर्देशों ने डिजिटल डिवाइड के बदसूरत चेहरे को सामने लाया, जिसने महामारी के बीच शिक्षा के अधिकार में बाधा पैदा की थी। सर्वेक्षण रिपोर्ट ने संकेत दिया कि 24.50 प्रतिशत छात्रों के पास ई-कक्षाओं में भाग लेने के लिए संसाधन उपलब्ध नहीं है। जस्टिस नागरत्ना ने 15 जुलाई को अपने आदेश में राज्य सरकार को तकनीकी विभाजन को पाटने के लिए एक कार्ययोजना बनाने का निर्देश देते हुए कहा कि 'आर्थिक पिछड़ापन या गरीबी को शिक्षा में निरंतरता की कमी का कारण नहीं बनना चाहिए।' इसी तरह, राज्य के ग्रामीण/दूरस्थ क्षेत्रों में छात्रों को बुनियादी शिक्षा प्रदान करने की उनकी चिंता भारतीय भ्रष्टाचार विरोधी परिषद और कर्नाटक राज्य के मामले में उनके आदेश से स्पष्ट थी। एक जुलाई को अपने आदेश में, अदालत ने कहा 'बच्चों को स्कूल पसंद नहीं आने का एक कारण वहां का वातावरण, दीवारें टूटना, लीकेज होना, पानी की आपूर्ति नहीं होना, बिजली नहीं होना आदि है, खासकर ग्रामीण इलाकों में।' अदालत ने इस मामले में कुछ विशेषज्ञ समूहों से सरकारी/सहायता प्राप्त स्कूल के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए सरकार द्वारा उचित तरीके से 100 करोड़ रुपये खर्च करने के लिए एक रोड मैप बनाने में सहायता करने का आह्वान किया है।
बालिका स्वच्छता और शिक्षा
जस्टिस नागरत्ना ने अपने आदेशों में बालिकाओं के लिए विशेष चिंता दिखाई है। उन्होंने शुचि (SUCHI) योजना के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए निर्देश दिए हैं, जिसके तहत स्कूलों में पढ़ने वाली किशोरियों को सैनिटरी नैपकिन वितरित किए जाते हैं। जस्टिस नागरत्ना ने एक अप्रैल को अपने आदेश में कहा था 'किशोरियों को सैनिटरी नैपकिन प्रदान करके लड़कियों के लिए अलग शौचालय और स्वच्छता प्रदान करना, सशक्तिकरण का एक उदाहरण है। यदि आप युवा महिलाओं और युवा लड़कियों को सशक्त बनाना चाहते हैं, तो ये सुविधाएं प्रदान करें।'
अब तक सुप्रीम कोर्ट में थीं सिर्फ एक महिला जज
सुप्रीम कोर्ट में अब तक केवल एकमात्र महिला न्यायाधीश जस्टिस इंदिरा बनर्जी थीं, जो 2022 में रिटायर्ड हो रही हैं। केंद्र सरकार के कॉलेजियम को मंजूरी देने के बाद अब तेलंगाना हाईकोर्ट की मुख्य न्यायाधीश जस्टिस हिमा कोहली, कर्नाटक की जज जस्टिस बी. वी. नागरत्ना, गुजरात हाईकोर्ट की जज जस्टिस बेला त्रिवेदी के सुप्रीम कोर्ट की जज बनने से यह संख्या चार हो गई है। अब तक शीर्ष अदालत में केवल आठ महिला न्यायाधीश हुई हैं। भारत में महिला मुख्य न्यायाधीश की मांग बहुत पहले से होती रही है। अप्रैल में पूर्व मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने कहा था कि भारत के लिए एक महिला मुख्य न्यायाधीश होने का समय आ गया है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.