महाराष्ट्र की ज्योति देशमुख की कहानी उन लाखों महिलाओं के लिए प्रेरणा है, जिन्हें समाज अपने हिसाब से नियंत्रित करने की कोशिश करता है, लेकिन वो अपना जीवन अपने हिसाब से चलाने की कूवत रखती हैं। परिवार में किसी की असमय मौत हमें पूरी तरह तोड़ देती है लेकिन ज्योति की जिंदगी में एक नहीं बल्कि तीन लोगों ने असमय मौत को गले गला लिया। उसके बाद भी ज्योति ने जिंदगी से हार नहीं मारी बल्कि जिसकी वजह से उनके पति, ससुर और देवर ने मौत को गले लगा लिया, ज्योति ने उसी के जरिए अपनी जिंदगी संवारी और लोगों के लिए एक मिसाल बन गईं।
नई दिल्ली। खेती में नुकसान होने पर ज्योति देशमुख के ससुर ने 2001 में अपनी जान ले ली थी। उनके देवर ने 2004 में और पति ने 2007 में खुदकुशी कर ली थी। बतौर ज्योति, मेरे घर में तीन लोगों ने खुदकुशी की। 2007 में हमने पूरे खेत में मूंग की खेती की थी। उस साल बारिश बहुत ज्यादा हुई और पूरी फसल खेत में ही सड़ गई। इसके कारण मेरे पति परेशान हो गए थे और उन्होंने खुदकुशी कर ली थी। पति की खुदकुशी के बाद कई लोगों ने उन्हें जमीन बेचने की सलाह दी। लोगों का कहना था कि औरत खेती कैसे कर सकती है। देशमुख खानदान की औरतों को खेती करना शोभा नहीं देता। खेती बेचकर आप अकोला जिले में चले जाइए लेकिन मेरा छोटा बेटा मुझसे बोला कि मां अगर एक बार खेत बेच दिए तो फिर वो हमें वापस नहीं मिलेंगे। इसके बाद मैंने खेती करने की ठान ली।
खेती के काम सीखे
ज्योति बताती हैं कि उन्हें खेतों के कामों का कुछ भी अनुभव नहीं था लेकिन इसके बाद उन्होंने धीरे-धीरे खेतों के सारे काम सीखे और मूंग के बदले पहले सोयाबीन बोने का फैसला किया। एक साल उनके खेत में सोयाबीन की बंपर खेती हुई, जिसे देखकर गांव के सभी लोगों ने सोयाबीन बोना चालू कर दिया। बीते 12 सालों से वो खुद 29 एकड़ की खेतों में खुद काम करती हैं। उन्होंने एक ट्रैक्टर खरीदा है और खेत में बोरवेल भी लगाया है। उन्होंने अपने बेटे की पढ़ाई पूरी करवा कर उसे इंजीनियर बनाया है। उनका बेटा फिलहाल पुणे में नौकरी कर रहा है। वह कहती हैं कि वह अब खुद खेती कर अपने परिवार का भरण पोषण कर रही हैं। ज्योति का कहना है कि खेती की वजह से उनके मन का ये डर खत्म हो गया कि लोग क्या कहेंगे और अब वो रात को भी खेतों में काम कर सकती हैं। वो कहती हैं कि जिन घरों में किसी किसान ने आत्महत्या की है उनके घरों की औरतों को अब लोगों की बातों की तरफ ध्यान न देते हुए खेतों में काम करने की शुरुआत करनी चाहिए।
ज्योति देशमुख के गांव को मंत्री ने लिया गोद, उनके नाम से बनेगी योजना
ज्योति के प्रयासों से प्रभावित होकर महाराष्ट्र के अकोला जिले के इस कट्यार गांव को प्रदेश के महिला और बाल कल्याण राज्य मंत्री बच्चु कड़ु ने गोद ले लिया है। बतौर बच्चु घर चलाने वाले व्यक्ति ने खुदकुशी की लेकिन उसके बावजूद ज्योति देशमुख इसकी मिसाल बनीं कि ज़िंदगी कैसे संवारते हैं। जब मैंने उन्हें ट्रैक्टर चलाते देखा तब मुझे लगा कि शायद हममें ही कुछ कमी है। खुदकुशी कोई रास्ता नहीं है, हमें उससे आगे के बारे में सोचकर जीवन बिताना चाहिए। ज्योति ने हमें जीना सिखाया है। कट्यार गांव हम खेती के लिए गोद लेंगे। वहां खेती का कैसे विकास हो सकता है ये देखना हमारी जिम्मेदारी होगा। हम अपना सारा ध्यान और पैसा खेती पर खर्च करेंगे। एक मिसाल के तौर पर ये गांव कैसे बेहतर बन सकेगा इसके लिए हमारी पूरी कोशिश रहेगी। ज्योति देशमुख के नाम से ही इसके लिए एक योजना तैयार की जाएगी।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.