लालरेमलिसयामी को जब पता चला कि उनके पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे। उन्होंने घर वापस आने की बजाय देश के लिए खेलने का फैसला किया। उन्हें अपने पिता को अंतिम विदाई न दे पाने का मलाल आज भी है, लेकिन यह खुशी भी है कि टीम ओलंपिक खेलने जा रही है।
मिजोरम की लालरेमसियामी टोक्यो ओलिंपिक में खेलने जा रही भारतीय महिला हॉकी का हिस्सा हैं। महज 21 साल की इस खिलाड़ी ने इतिहास रच दिया है। लालरेमसियामी मिजोरम से ओलिंपिक टीम में चुने जाने वाली पहली महिला हॉकी खिलाड़ी हैं। इस उपलब्धि के बारे में वह कहती हैं, 'मेरी छोटी करियर की यह सबसे बड़ी उपलब्धि है।' मिजोरम सरकार युवा भारतीय हॉकी खिलाड़ी लालरेम्सियामी को टोक्यो ओलंपिक में जगह बनाने के लिए 25 लाख रुपये का इनाम देगी। अब लालरेमसियामी ओलंपिक में खेलकर अपने दिवंगत पिता का सपना पूरा करेंगी।
उनके पिता का सपना अपनी बेटी को ओलंपिक में खेलते देखना था। अब उनकी बेटी टोक्यों ओलंपिक में खेलने जा रही हैं, लेकिन यह देखने के लिए उनके पिता इस दुनिया में नहीं हैं। टीम ओलंपिक क्वालिफायर का सेमीफाइनल खेलने की तैयारी कर रही थी, तभी लालरेमलिसयामी को पता चला कि उनके पिता अब इस दुनिया में नहीं रहे। यह उनके जीवन का सबसे मुश्किल वक्त था। लेकिन उन्होंने घर वापस आने की बजाय देश के लिए खेलने का फैसला किया। टीम ने जीत दर्ज की और फाइनल में पहुंची। उन्हें अपने पिता को अंतिम विदाई न दे पाने का मलाल आज भी है, लेकिन यह खुशी भी है कि टीम ओलंपिक खेलने जा रही है। लालरेमसियामी कहती हैं, ‘टीम के साथ रुककर खेलना मेरे जीवन का सबसे कठिन फैसला था लेकिन मेरा मानना है कि मेरे पापा मेरे फैसले से खुश होंगे क्योंकि वह चाहते थे कि मैं देश की सेवा करूं और एक दिन ओलिंपिक में खेलूं। काश पापा आज मेरे जिंदा होते, अपनी बेटी को ओलिंपिक में खेलते हुए देखते। ऐसा न हो सका लेकिन मैं उसे पूरा कर रहीं हूं।'
मिजोरम में फुटबॉल और तीरंदाजी लोकप्रिय खेल है। वहां हॉकी इतना ज्यादा नहीं खेला जाता। ऐसे में हॉकी की दुनिया में ओलंपिक तक खेलना ही अपने आप में एक बड़ी उपलब्धि है। इस खिलाड़ी ने हॉकी की दुलिया में नाम कमाने के लिए कड़ी मेहनत की है। बचपन में वह अपने स्कूल में हॉकी खेलती थी। इस बात की भनक घर वालों को नहीं थी। उस समय स्कूल की एक सीनियर जो थेनजॉल हॉकी ट्रेनिंग सेंटर, साई में प्रशिक्षण ले रही थी उन्होंने लालरेमसियामी को प्रशिक्षण शिविर में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया। आर्थिक स्थिति ठीक न होने की वजह से पहले तो घर वालों ने मना कर दिया। लेकिन जब पता चला कि सारा खर्च सरकार उठाएगी तो सब ने हां कर दी। हां पर उन्होंने कड़ी मेहनत की।
अक्टूबर 2011 में जूनियर नेहरू हॉकी टूर्नामेंट से उन्होंने अपनी राष्ट्रीय करियर की शुरुआत की और बाद में दिसंबर 2016 में भारत के अंडर 18 एशियाई कप के लिए चुनी गईं। 2017 में जब वह बंगलूरू में जूनियर टीम में ट्रायल कर रही थीं, तब उन्हें एशिया कप में स्वर्ण जीतने वाली सीनियर टीम में पहली बार चुना गया।
उन्हें अपनी इस मेहनत का इनाम भी मिला। वह साल 2019 में एफआईएच पुरस्कारों में उदयीमान महिला खिलाड़ी चुनी गईं। वह अब टोक्यो ओलिंपिक में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करके भारतीय महिला हॉकी टीम पहली बार इन खेलों में पदक जिताना ही उनका लक्ष्य है। ओलंपिक के लिए वह कड़ी मेहनत कर रही हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.