जबसे लॉकडाउन की घोषणा हुई है, दिहाड़ी मजदूरों और ट्रक ड्राइवरों की परेशानी बढ़ गई है। इसलिए उषा रोज घर से बीस पैकेट खाना बनाकर उसे साइकिल से भूखे लोगों के बीच बांटने निकल जाती हैं।
केरल की उषा वेंकटेश एक प्राध्यापिका हैं और अल्लपुझा इलाके में ब्राइटलैंड डिस्कवरी स्कूल की संस्थापक और प्रिंसिपल हैं। वह कहती हैं कि दक्षिण कोरिया में जब महामारी का प्रकोप फैला, तो हमने अपने छात्रों को बताया कि कैसे लापरवाही के कारण यह आपदा बढ़ गई है। इससे छात्रों को यह समझने में मदद मिली कि जब कोई बीमार होता है, तो सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखना क्यों जरूरी होता है। उषा सुबह जल्दी उठकर कुछ करीबी मित्रों के साथ बात करने के बाद खाना बनाकर बीस डिस्पोजेबल पैकेट में पैक करती हैं और उन्हें जरूरतमंदों के बीच बांटने निकल जाती है। उषा कहती हैं कि मैं वही कर रही हूं, जो लॉकडाउन की अवधि में मैं कर सकती हूं। जरूरतमंदों की सेवा करना मेरे लिए कोई नई बात नहीं है। कुछ दिनों पहले मेरे घर पर एक उत्सव हुआ था, जिसमें काफी खाना बच गया था। हमने बचे हुए खाने को पास के ही एक सामुदायिक बक्से में रख दिया, जहां से जरूरतमंद लोग खाना ले जाते थे। वहां भूखे लोगों की भीड़ देखकर मैंने हफ्ते में कम से कम 15 पैकेट खाना वहां रखने का फैसला किया। मैं अपने इस फैसले का कड़ाई से पालन कर ही रही थी कि तभी लॉकडाउन की घोषणा हो गई।
बेटे ने दी चुनौती
उषा का बेटा ऑस्ट्रेलिया में रहता है। लॉकडाउन की घोषणा के बाद उसने फोन पर उषा को चुनौती देते हुए कहा कि क्या वह अब भी भूखे लोगों को खाना खिलाएंगी। उषा ने उसकी उसकी चुनौती स्वीकार किया और अब हर रोज बिना किसी परेशानी के बीस पैकेट खाना बनाकर साइकिल पर लेकर उसे बांटने निकल जाती हैं।
पहले दिन की घटना
उषा के अनुसार, पहले दिन जब मैं खाना लेकर सामुदायिक बक्से के पास गई, तो वहां भारी भीड़ देखकर घबरा गई। उनमें से एक ने जब यह कहा कि वह जानता था कि मैं खाना लेकर आऊंगी, तो मुझे खुशी हुई। मैंने तभी हर रोज खाना बांटने का फैसला कर लिया।
साइकिल से सेवा
लॉकडाउन के दौरान सबसे ज्यादा परेशानी दिहाड़ी मजदूरों और ट्रक ड्राइवरों को उठानी पड़ी है। इसलिए ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचने के लिए उषा ने साइकिल का सहारा लिया है और साइकिल से ही लोगों को घूम-घूमकर खाना बांटती हैं। उषा कहती हैं कि वैसे भी आजकल गर्मी बढ़ने लगी है, इसलिए साइकिल से सुविधा होती है।
- विभिन्न साक्षात्कारों पर आधारित।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.