मालविका बंसोड़ की खेलों में बचपन से रूचि थी। ऐसे में उन्होंने गंभीरता से बैंडमिंटन को चुना। इस खेल में अब वह धमाल मचा रही है। इसके साथ ही उन्होंने दसवीं और बारहवीं की परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त किए, इन परीक्षाओं के दौरान ही उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सात मेडल जीते। वह खेल के मैदान और कक्षा दोनों में कमाल कर रही हैं।
नई दिल्ली। परिवार का सपोर्ट न मिलने से कई बार आपके सपने चूर हो जाते हैं तो कई बार उस के सपोर्ट में आप जीवन की हर खुशी हासिल कर सकते हैं। कुछ ऐसा ही हुआ है युवा बैडमिंटन खिलाड़ी मालविका बंसोड़ के साथ। माता-पिता के सपोर्ट से उनके हर सपने सच हो रहे हैं। मालविका के माता-पिता डेंटिस्ट हैं। नागपुर की रहने वाली मालविका को बचपन से ही खेलों में दिलचस्पी थी। उनके माता-पिता ने फिटनेस और खेल में विकास की संभावना को देखते हुए उन्हें गंभीरता से कोई एक खेल चुनने की सलाह दी। आठ साल की उम्र में मालविका ने बैडमिंटन को चुना। उनके इस फैसले को माता-पिता का पूरा साथ मिला। उनकी मां ने स्पोर्ट्स साइंस में मास्टर की डिग्री महज इसलिए हासिल की है, वे अपनी बेटी के खेल करियर को बेहतर करने में मदद कर सकें। उन्होंने अपनी बेटी के लिए ट्रेनिंग की व्यवस्था की और जरूरी मानसिक सपोर्ट मुहैया कराया।
बोर्ड परीक्षा में भी मारी बाजी
मालविका ने तय कर रखा था कि खेल का असर वह अपनी पढ़ाई पर नहीं पड़ने देंगी। इस कारण उन्हें ज्यादा मेहनत करनी पड़ी लेकिन इसका फल भी बेहतर मिला। मालविका ने दसवीं और बारहवीं की परीक्षा में 90 प्रतिशत से ज्यादा अंक हासिल किए। इन दोनों परीक्षाओं के बीच में मालविका ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सात मेडल जीतने का करिश्मा भी कर दिखाया।
दोहरी चुनौती का सामना किया
मालविका को संसाधन और आधारभूत ढांचे के स्तर पर चुनौतियों का सामना करना पड़ा। अभ्यास के लिए बहुत ज्यादा सिंथेटिक बैडमिंटन कोर्ट
उपलब्ध नहीं थे और जो उपलब्ध भी थे, वहां पर्याप्त रोशनी का अभाव था। इसके अलावा ट्रेनिंग देने वाले कोच की संख्या भी बेहद कम थी और ट्रेनिंग लेने वाले खिलाड़ियों की संख्या बहुत ज्यादा। ऐसे में कोच उन पर पर्याप्त ध्यान नहीं दे पाते थे। जब मालविका ने सब जूनियर और जूनियर लेवल के टूर्नामेंटों में हिस्सा लेना शुरू किया तब जाकर परिवार को अंदाज़ा हुआ कि टूर्नामेंट में हिस्सा लेने के लिए अंतरराष्ट्रीय यात्राओं का खर्च बहुत ज्यादा होने वाला है और स्पॉन्सरशिप तलाश पाना बेहद मुश्किल है।
पाई कामयाबी दर कामयाबी
मालविका ने राज्य स्तर पर पहले अंडर-13 वर्ग का खिताब जीता फिर अंडर-17 में भी चैंपियन बनीं। भारतीय स्कूल गेम्स फेडरेशन की प्रतियोगिताओं में मालविका ने तीन गोल्ड मेडल जीते। वहीं राष्ट्रीय स्तर के जूनियर और सीनियर वर्ग के टूर्नामेंट में वह नौ गोल्ड मेडल जीत चुकी हैं। मालदीव में खेले गए इंटरनेशनल फ्यूचर सिरीज़ बैडमिंटन टूर्नामेंट का खिताब जीतकर उन्होंने 2019 में सीनियर इंटरनेशनल लेवल पर शानदार डेब्यू किया। बाएं हाथ की मालविका ने एक सप्ताह के अंदर ही नेपाल में अन्नपूर्णा पोस्ट इंटरनेशनल सिरीज़ का खिताब जीतकर ये साबित कर दिया कि मालदीव की कामयाबी कोई तुक्के में नहीं मिली थी। सीनियर लेवल की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कामयाबी हासिल करने से पहले मालविका जूनियर और युवा वर्ग में भी कामयाबी हासिल कर चुकी थीं।
शानदार प्रदर्शन से सबका ध्यान खींचा
वह एशियन स्कूल बैडमिंटन चैंपयनशिप और साउथ एशियन अंडर-21 रीजनल बैडमिंटन चैंपियनशिप में भी गोल्ड मेडल जीत चुकी हैं। मालविका ने अपने शानदार प्रदर्शन से भारत सरकार और विभिन खेल संगठनों का ध्यान अपनी तरफ खींचा है। अब तक उन्हें कई खेल सम्मान भी मिल चुके हैं। इनमें नाग भूषण सम्मान, खेलो इंडिया प्रतिभा पहचान विकास योजना के अलावा टारगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम का सम्मान मिल चुका है।
खेल और पढ़ाई में सामंजस्य बैठाना होगा
खेल के साथ पढ़ाई से तालमेल बिठाने के अपने अनुभव के आधार पर मालविका ने बताया कि खेल और पढ़ाई को आपस में जोड़ने के लिए कुछ बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता है। उनके मुताबिक अकादमिक व्यवस्था को महिला खिलाड़ियों की जरूरत के हिसाब से रिस्पांसिव बनाने की जरूरत है क्योंकि महिला खिलाड़ी भी देश के लिए मेडल जीतने के साथ-साथ अपनी पढ़ाई का नुकसान नहीं चाहती हैं। वह यह भी बताती हैं कि ऐसा होने से महिलाओं के सामने खेल और पढ़ाई में किसी एक को चुनने की जरूरत नहीं रहेगी।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.