प्रयागराज में गोविंदपुर के अप्ट्रॉन चौराहे पर चाय-पान की दुकान लगाते हैं। मुस्कान के पिता के पास बेटी को अंतरराष्ट्रीय स्तर की खेल सुविधाएं मुहैया कराने के पैसे नहीं हैं। वर्ल्ड सॉफ्ट बैडमिंटन चैंपियनशिप में जाने के लिए भी उसके पास 1 लाख 20 हजार रुपये नहीं थे। ऐसे में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र और जनप्रतिनिधि मदद के लिए सामने आए हैं। इससे पहले एक प्रतियोगिता में बेटी को बेचने के लिए मां को अपने जेवर तक बेचने पड़े थे।
प्रयागराज। उम्र छोटी है पर हौसला बड़ा है, बाधाएं भी कई हैं, लेकिन उन्हें पार करने का जज्बा उनसे कहीं ज्यादा है। हम यहां बात कर रहे हैं प्रयागराज की मुस्कान यादव की। महज 17 साल की उम्र में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सॉफ्ट टेनिस में अपनी पहचान बनाने वाली मुस्कान का चेहरा एक बार फिर खिल उठा है। आज से चार दिन पहले तक मुस्कान का चेहरा मुरझाया हुआ था। इसकी वजह सॉफ्ट टेनिस की वर्ल्ड चैंपियनशिप के लिए भारतीय टीम में चयनित होने के बावजूद उसके पास वहां, जाने, रहने, खाने आदि के लिए लगने वाली फीस (1 लाख 20 हजार रुपये) जमा करने के पैसे नहीं थे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय (इविवि) में बीएससी प्रथम वर्ष की छात्रा को जब कोई रास्ता नहीं सूझा तो उसने आर्थिक सहयोग के लिए इविवि के डीएसडब्ल्यू कार्यालय में मदद की गुहार लगाई, लेकिन यहां से कोई ठोस आश्वासन नहीं मिलने पर उसे लगा कि अब वह प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं ले पाएगी। अपना सपना बिखरते देख वह डीएसडब्ल्यू कार्यालय से निकलते ही फफक पड़ी। इसकी भनक इविवि के छात्रों को लगी तो वे मुस्कान के साथ खड़े हो गए। छात्रों चंदा जुटाना शुरू किया, तो कई सामाजिक संगठन, जनप्रतिनिधि मदद के लिए आगे आए। इसी बीच एमेच्योर सॉफ्ट टेनिस की स्टेट फेडरेशन भी हरकत में आई और जरूरी रकम को फेडरेशन में जमा कर दिया। इसी के साथ मुस्कान के चीन में 25 अक्तूबर से आयोजित अंतरराष्ट्रीय सॉफ्ट टेनिस प्रतियोगिता में शमिल होने का रास्ता साफ हो गया और उसके चेहरे पर मुस्कान भी लौट आई।
पिता लगाते हैं चाय-पान का ठेला
प्रयागराज के गोविंदपुर इलाके की रहने वाली मुस्कान यादव के पिता अमर सिंह यादव अप्ट्रॉन चौराहे पर चाय-पान का ठेला लगाकर अपने 6 बच्चों का भरण-पोषण करते हैं। भाई-बहनों में चौथे नंबर की मुस्कान का रूझान बचपन से ही सॉफ्ट टेनिस की तरफ था, लेकिन आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह स्टेडियम में जाकर इसकी प्रैक्टिस कर सके। इसके बाद भी उसने हार नहीं मानी और स्कूल व घर के पास ही स्थित ग्राउंड में इसकी प्रैक्टिस करती रही। वह हर रोज तीन से चार घंटे तक प्रैक्टिस करती। इस दौरान कई लोगों ने उसे रोका, परिवार वालों से भी उस पर पाबंदी लगाने को कहा, लेकिन मुस्कान पीछे नहीं हटी। आखिरकार उसे जिलास्तर, फिर राज्य स्तर पर मौका मिला। यहां सफल होने के बाद उसे अंतरराष्ट्रीय मंच पर देश का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला है।
बेटी को कोरिया भेजने के लिए मां ने बेच दिए थे जेवर
मुस्कान की तैयारी पर आने वाले खर्च को उठाने में उसका परिवार सक्षम नहीं है। मुस्कान को सरकार की तरफ से भी कोई सहायता नहीं मिली है। तैसे-तैसे प्रैक्टिस करने वाली मुस्कान के सामने हर बार विदेशों में होने वाले किसी चैंपियनशिप में भाग लेने जाने से पहले आर्थिक समस्या खड़ी हो जाती है। कुछ महीनों पहले ऐसी समस्या उस समय आ खड़ी हुई जब मुस्कान को कोरिया में आयोजित चैंपियनशिप में हिस्सा लेने जाना था, लेकिन परिवार के पास इतने रुपये नहीं थे कि वह मुस्कान को वहां भेज सके। बेटी को मायूस देख मां ने अपनी बेटी की शादी के लिए पाई-पाई जोड़कर बनवाए गए गहनों को बेच दिया, लेकिन लाड़ली के सपनों को बिखरने नहीं दिया। इस बार विश्व चैंपियनशिप के लिए चीन जाने की बारी आई तो फिर वही समस्या आ गई, लेकिन इस बार मां के पास गहने भी नहीं बचे थे कि वह उन्हें बेचकर बेटी को चीन भेज सके।
25 से ज्यादा प्रतियोगिता में ले चुकी हैं हिस्सा
मुस्कान अब तक राष्ट्रीय स्तर पर 25 से भी ज्यादा सॉफ्ट टेनिस टूर्नामेंट खेल चुकी हैं, जबकि एक अंतरराष्ट्रीय सॉफ्ट टेनिस प्रतियोगिता (साउथ कोरिया) में खेली है। पिछले 4 वर्षों से सॉफ्ट टेनिस खेल रही मुस्कान के घर में मेडल का अंबार लगा है। खेल के लिए बहुत से प्रमाणपत्र भी मिले हैं। दस से भी ज्यादा गोल्ड मेडल मुस्कान विभिन्न प्रतियोगिताओं में अपने नाम कर चुकी हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.