सोनीपत की रहने वाली हॉकी खिलाड़ी निशा उस टीम का हिस्सा हैं जो ओलंपिक के लिए चुनी गई है लेकिन यहां तक पहुंचने का सफर उनका आसान नहीं रहा है। बेहद कड़े संघर्ष के बाद वह यहां तक पहुंची हैं।
नई दिल्ली। हरियाणा की 9 बेटियों का टोक्यो ओलंपिक में खेलने वाली भारतीय महिला हॉकी टीम में चयन हुआ है। इनमें से एक बेटी ऐसी भी है, जिसने लाख मुश्किलों को पार कर इस टीम में जगह बनाई है। यह खिलाड़ी हैं निशा वारसी। जो ऐसे परिवार से ताल्लुक रखती हैं जहां बेटियों को घर से बाहर निकलने की इजाजत नहीं होती थी लेकिन कड़ी मेहनत और संघर्ष के बाद निशा बेड़ियां तोड़कर ओलंपिक पहुंच चुकी हैं। दरअसल निशा एक मुस्लिम परिवार की बेटी है और प्रैक्टिस के शुरुआती दिनों में उन्हें हिजाब पहनकर मैदान पर भेजा जाता था लेकिन कोच प्रीतम के कहने पर परिवार ने उन्हें बाकी लड़कियों की तरह खेलने की इजाजत दी। उसके बाद उनकी जिंदगी बदल गई।
पिता के पैरालाइज होने के बाद बढ़ा संघर्ष
निशा के परिवार पर वर्ष 2016 में ऐसा संकट आया कि रोटी तक के लाले पड़ गए। इस वर्ष निशा के पिता पैरालाइज हो गए, जिसके बाद एक बार खुद शबराज अहमद को लगा कि बेटी का खेलना छूट जाएगा, लेकिन इस बार जिम्मेदारी निशा की मां ने उठाई। उनकी मां के सामने चार बच्चों का पेट पालने का संकट खड़ा हो गया। निशा की मां महरूम ने हिम्मत नहीं हारी और फैक्ट्री में कार्य जारी रखा। साथ ही निशा की प्रैक्टिस भी चलती रही। निशा के पिता 2016 के बाद से कोई कार्य नहीं कर पा रहे हैं।
छोटे से मकान में रहता है निशा का परिवार
ओलंपिक के लिए महिला हाकी टीम में चुनी गई महिला खिलाड़ियों में से एक निशा का परिवार शहर के कालूपुर में महज 25 गज जमीन बने मकान में रहता है। इससे पहले निशा का परिवार महिला हॉकी की स्टार खिलाड़ी नेहा गोयल के पड़ोस में किराए पर रहता था। उस समय नेहा का भी संघर्ष का दौर था। नेहा की मां और निशा की मां एक साथ फैक्ट्री में कार्य करती थी। इस बीच नेहा ने निशा को भी हॉकी मैदान पर ले जाना शुरू कर दिया। निशा ने एकबार हॉकी स्टिक संभाली तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा। निशा के पिता एक कपड़े की दुकान पर दर्जी का काम करते थे।
माता-पिता का सपना, बेटी को टीवी पर देखे पूरा देश
निशा ने हॉकी स्टीक संभाली तो मां-पिता दोनों ने अपनी जरूरतों व ख्वाबों का त्याग कर दिया। पिता किराए के मकान की बजाय खुद का घर खरीदना चाहते थे लेकिन बेटी को हॉकी खिलाड़ी बनाने के लिए उन्होंने इस सपने को छोड़ दिया। पिता शबराज अहमद की मानें तो उनका सपना था कि बेटी टीवी पर खेलती दिखाई दे, जिसे पूरा देश देखे, उनका यह सपना अब पूरा होने जा रहा है।
मां को उम्मीद मेडल जरूर लाएगी बेटी
नौ जुलाई 1997 को सोनीपत के कालूपुर में जन्मीं निशा रेलवे में बतौर क्लर्क के पद पर तैनात हैं और रेलवे की तरफ से ही वो हॉकी खेलती हैं। वह 2017 में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स जैसे बड़े टूर्नामेंट में भारतीय हॉकी टीम का हिस्सा रह चुकी हैं। निशा रेलवे की टीम में मिड फील्डर और कवर के रूप में खेलती हैं। वह डिफेंडर और अग्रेसिव खेल के लिए जानी जाती हैं। उनके अग्रेसिव खेल के आगे विरोधी टीम के खिलाड़ी पस्त हो जाते हैं। निशा की मां का कहना है कि उन्हें अपनी बेटी की इस उपलब्धि पर बहुत गर्व है और अब वो देश के लिए गोल्ड मेडल जरूर लेकर आएंगी।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.