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कभी टाट-पट्टी पर बैठती थीं, आज आईएएस की कुर्सी पर विराजती हैं...

Published - Fri 19, Jun 2020

बड़े सपने देखिए। उन्हें पूरा करने के लिए मेहनत करिए। सपने सच होते हैं, बस आपको उन पर भरोसा होना चाहिए।  - आईएएस सुरभि गौतम

Surabhi gautam

मध्यप्रदेश के सतना जिले के एक छोटे से गांव अमदरा में पली-बढ़ीं सुरभि गौतम आज आईएएस अफसर हैं। जब वे अपने शानदार ऑफिस में अपनी ऊंची कुर्सी पर बैठती हैं तो अपने गांव के स्कूल के उन दिनों को जरूर याद करती हैं जब वे टाट-पट्टी पर बैठकर पढ़ा करती थीं। सुरभि वे पल इसलिए याद रखती हैं कि वहीं से उन्होंने अपने लिए बड़े सपने देखे थे और करियर में ऊंची उड़ान भरने का इरादा किया था।
सुरभि के पिता मैहर सिविल कोर्ट में वकील हैं और उनकी मां सुशीला गौतम शिक्षिका हैं। इसके बावजूद सुरभि की 12वीं कक्षा तक शिक्षा-दीक्षा गांव के ही एक बेहद पिछड़े स्कूल में हुई, जहां न तो अच्छे टीचर थे और ना ही न समय पर कभी किताबें मिलती थीं। गांव में बिजली का भी बुरा हाल था, कभी आती थी, कभी पूरा दिन गुल रहती थी, ऐसे में सुरभि लालटेन चलाकर रात में पढ़ाई किया करती थीं। सुरभि के माता-पिता ने उनका हर परिस्थिति में मार्गदर्शन किया। सुरभि ने कभी किसी भी विषय के लिए ट्यूशन नहीं ली। उन्होंने सेल्फ स्टडी से सबकुछ हासिल किया। 10वीं कक्षा में सुरभि ने 93.4 प्रतिशत अंक हासिल कर जता दिया था कि वे कुछ बड़ा करेंगी। सुरभि कहती हैं, "मेरा स्कूल और वहां का एजुकेशन सिस्टम काफी खराब था। स्कूल में कोई पढ़ाई नहीं होती थी, तो मेरी पढ़ाई लिखाई की जिम्मेदारी मुझ पर और मेरे पेरेंट्स पर ही थी। मैं हमेशा सोचती थी, कि मुझे भी अच्छा स्कूल मिलता, काश मेरे स्कूल की भी एक बस होती, मैं भी यूनिफॉर्म पहनकर स्कूल जाती, लेकिन उसके लिए मैं अफसोस नहीं करती, क्योंकि मेरे अभावों ने ही मुझे महत्वाकांक्षी बना दिया और मैं हर फील्ड में सबसे अच्छा करने की कोशिश करती थी।"
 
बीमार रहीं, पर हार नहीं मानी
12वीं क्लास तक सुरभि रिमेटिक फीवर से ग्रस्त रहीं। पिता उन्हें हर 15 दिन में गांव से 120 किमी दूर जबलपुर डॉक्टर के पास लेकर जाया करते थे। इस बीमारी में सुरभि को तेज शारीरिक दर्द होता था। उनकी हड्डियां कमजोर हो चुकी थीं। हर पंद्रह दिन में उन्हें हाई डोज इंजेक्शन दिया जाता था। इस इंजेक्शन के लगने के बाद भी सुरभि 3-4 दिन तक बुखार में रहती थीं, लेकिन हार मानना उन्होंने सीखा ही नहीं था। इस हालत में भी वो अपने पुराने पाठ दोहराती रहती थीं।
 
हिंदी की पढ़ाकू का जब सामना हुआ अंग्रेजी से...
गांव की टॉपर जब शहर के कॉलेज में आईं तो उसके सामने बड़ी चुनौतियां थीं। गांव और शहर के माहौल में बड़ा अंतर था। सुरभि गांव के हिंदी मीडियम में पढ़ी थीं, जबकि कॉलेज में अधिकतर बच्चे इंग्लिश मीडियम स्कूलों से थे। सुरभि के साथ यहां वही सब हो रहा था, जो हिंदी मीडियम बच्चों के साथ होता है। लेकिन सुरभि डरी नहीं, बल्कि उसने अंग्रेजी ना बोल पाने की अपनी कमजोरी को दूर करना शुरू कर दिया। सुरभि कहती हैं, "मैं गांव में अपनी क्लास में पहली सीट पर बैठने वाली लड़की थी, लेकिन जब शहर में आई तो इंग्लिश न आने की वजह से सबसे पीछे बैठती थी। मुझे बहुत बुरा लगता था। मैं सोचती थी, मैं कहां आ गई। यहां तो मुझे कोई जानता ही नहीं। मेरे लिए ये सबकुछ बहुत अजीब था, जिसके चलते मैंने खूब मेहनत की। बाकि विष्यों  के साथ साथ इंग्लिश पर भी अपनी पकड़ बनाई और फर्स्ट सेमिस्टर में ही यूनिवर्सिटी टॉप कर ली और मुझे चांसलर अवॉर्ड मिल गया। इंग्लिश सुधारने के लिए मैं किताबों से स्पेलिंग ढूंढ-ढूंढ कर सीखती थी। रोज अंग्रेजी के 5-10 नए शब्द लिखकर दीवारों पर चिपकाती थी और सुबह उठकर उन्हें देखती थी। सोते समय उन्हें देखती थी और उन शब्दों को उठाकर खुद से बातें करती थी। कोई भी नया अंग्रेजी का शब्द सुनने के बाद मन में बार-बार दोहराती थी। अपनी इन्हीं कोशिशों से मैंने धीरे-धीरे इंग्लिश लिखनी और बोलनी सीखी।"
 
कॉलेज में नहीं की मौज-मस्ती
कॉलेज के अन्य बच्चों की तरह नहीं थीं सुरभि। वो जानती थीं, कि वो एक छोटे से गांव से आई हैं और इस तरह कुछ करने का मौका उन्हें अपनी मेहनत के बल पर मिला है। उस मौके को वो गंवाना नहीं चाहती थीं। उसने कोई दोस्ती नहीं की, वे फिल्में देखने भी नहीं जाती थीं और न ही घूमने-फिरने, यानी कॉलेज के दिनों में उसने कोई मौज-मस्ती नहीं की। सुरभि बस अपनी पर्सनैलिटी, अपने बायोडेटा और अंक सुधार पर फोकस करती थीं। 
 
हर परीक्षा में अपना लोहा मनवाया
12वीं पास करने के बाद सुरभि ने स्टेट इंजीनियरिंग का एंट्रेंस एग्जाम दिया। इसमें उनके काफी अच्छे नंबर आए। अब आगे की पढ़ाई के लिए उन्हें शहर आना पड़ा। सुरभि भोपाल आ गईं और यहां उन्होंने एक सरकारी कॉलेज से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्यूनिकेशन्स में इंजीनियरिंग की। सुरभि कॉलेज में गोल्ड मेडल हासिल करने के साथ-साथ यूनिवर्सिटी की भी टॉपर रहीं।
कॉलेज के बाद सुरभि का पहला प्लेसमेंट टाटा कंसलटेन्सी में हुआ, लेकिन उन्होंने वहां नौकरी जॉइन नहीं की। वे बीएआरसी यानी भाभा एटोमिक रिसर्च सेंटर से जुड़ गईं और एक साल न्यूक्लियर साईंटिस्ट के तौर पर काम किया। गेट इसरो में  उन्होंने ऑल इंडिया में दूसरा स्थान प्राप्त किया। सेल (स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया) की परीक्षा भी पास की। एमपीपीएससी प्री, एसएससी, एलजीएल, दिल्ली पुलिस और एकसीआई की परीक्षाएं अच्छे नंबरों से पास कीं। 2013 के आईईएस परीक्षा में सुरभि को ऑल इंडिया फर्स्ट रैंक मिली और इन सबके बाद 2016 के आईएएस एग्जाम में उन्हें ऑल इंडिया 50वीं रैंक मिली। सुरभि ने अपनी मेहनत के दम पर हर परीक्षा में अपना लोहा मनवाया। 
 
और भी कई हुनर...
पढ़ाकू सुरभि बचपन से ही बहुत अच्छी पेंटिंग बनाती थीं। वे कविताएं भी लिखती थीं। स्केचिंग, रंगोली, कढ़ाई-बुनाई में भी उनका मन रमता था।