गरीब परिवार में जन्मीं कलावती का जन्म उत्तर प्रदेश के सीतापुर में हुआ। तेरह साल की उम्र में उनका विवाह कर दिया गया। जो उम्र उनकी खेलने-पढ़ने की थी, उसमें इतनी बड़ी जिम्मेदारी उन पर थोप दी गई। विवाह के बाद वह सीतापुर से कानपुर आ गईं और कानपुर के स्लम क्षेत्र राजा का पुरवा में रहने लगीं। यह स्लम एरिया पूरी तरह गंदगी से भरा हुआ था। घरों की तो छोड़िए मोहल्ले में भी एक भी सामुदायिक शौचालय नहीं था। सभी खुले में शौच के लिए जाते थे। वहां की स्थिति बेहद दयनीय थी। इसी बीच वहां एक एनजीओ आया और शौचालय को लेकर काम करने लगा। कलावती भी उस एनजीओ से जुड़ गईं और पहली बार उनके मोहल्ले में पहला सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बनकर तैयार हो गया। उनके इस प्रयास के कारण मोहल्ले में शौचालय आ गया, जिससे पूरे मोहल्ले की महिलाएं खुशी से झूम उठीं। इसके बाद कलावती इस अभियान को आगे बढ़ाने का प्रण लिया। स्लम क्षेत्र में जहां एक-एक इंच जमीन के लिए लोग हटने को तैयार नहीं होते, वहां शौचालय के लिए जमीन के लिए लोग एक इंच जमीन देन को तैयार नहीं थे। कड़ी मशक्कत के बाद उन्होंने कुछ लोगों को राजी कर शौचालय बना दिया। इस काम में जब कलावती का हौंसला बढ़ा तो उन्होंने निगम के आयुक्त से मिलकर प्रस्ताव रखा कि उनकी स्लम बस्ती के साथ-साथ कानपुर की अन्य स्लम बस्तियों में भी सामुदायिक शौचालय बनवाया जाए। आयुक्त को योजना रास आ गई। उन्होंने प्रस्ताव रखा कि यदि किसी भी मोहल्ले के लोग शौचालय की कुल लागत का एक तिहाई खर्च उठाने को तैयार हों तो दो तिहाई पैसा सरकारी योजना के तहत लिया जा सकता है। लेकिन मुश्किल यहां थी कि दिहाड़ी मजदूरों से पैसा एकत्र करना नामुमकिन था। फिर भी किसी तरह उन्होंने पैसा जोड़ा और पहली बार अपने हाथों से पचास सीटों का एक सामुदायिक शौचालय तैयार करवा दिया। इसके बाद कलावती ने कभी मुड़कर नहीं देखा और वह अब तक चार हजार शौचालय बनवा चुकी हैं। शौचालय बनाकर वह न सिर्फ पर्यावरण की स्वच्छता में अपना योगदान दे रही हैं बल्कि महिलाओं की गरिमा की रक्षा भी कर रही हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.