Aparajita
Aparajita

महिलाओं के सशक्तिकरण की एक सम्पूर्ण वेबसाइट

महिलाओं के काम आई कलावती की कोशिश

Published - Thu 26, Sep 2019

गरीब परिवार में जन्मीं कलावती का जन्म उत्तर प्रदेश के सीतापुर में हुआ। तेरह साल की उम्र में उनका विवाह कर दिया गया। जो उम्र उनकी खेलने-पढ़ने की थी, उसमें इतनी बड़ी जिम्मेदारी उन पर थोप दी गई। विवाह के बाद वह सीतापुर से कानपुर आ गईं और कानपुर के स्लम क्षेत्र राजा का पुरवा में रहने लगीं। यह स्लम एरिया पूरी तरह गंदगी से भरा हुआ था। घरों की तो छोड़िए मोहल्ले में भी एक भी सामुदायिक शौचालय नहीं था। सभी खुले में शौच के लिए जाते थे। वहां की स्थिति बेहद दयनीय थी। इसी बीच वहां एक एनजीओ आया और शौचालय को लेकर काम करने लगा। कलावती भी उस एनजीओ से जुड़ गईं और पहली बार उनके मोहल्ले में पहला सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र बनकर तैयार हो गया। उनके इस प्रयास के कारण मोहल्ले में शौचालय आ गया, जिससे पूरे मोहल्ले की महिलाएं खुशी से झूम उठीं। इसके बाद कलावती इस अभियान को आगे बढ़ाने का प्रण लिया। स्लम क्षेत्र में जहां एक-एक इंच जमीन के लिए लोग हटने को तैयार नहीं होते, वहां शौचालय के लिए जमीन के लिए लोग एक इंच जमीन देन को तैयार नहीं थे। कड़ी मशक्कत के बाद उन्होंने कुछ लोगों को राजी कर शौचालय बना दिया। इस काम में जब कलावती का हौंसला बढ़ा तो उन्होंने निगम के आयुक्त से मिलकर प्रस्ताव रखा कि उनकी स्लम बस्ती के साथ-साथ कानपुर की अन्य स्लम बस्तियों में भी सामुदायिक शौचालय बनवाया जाए। आयुक्त को योजना रास आ गई। उन्होंने प्रस्ताव रखा कि यदि किसी भी मोहल्ले के लोग शौचालय की कुल लागत का एक तिहाई खर्च उठाने को तैयार हों तो दो तिहाई पैसा सरकारी योजना के तहत लिया जा सकता है। लेकिन मुश्किल यहां थी कि दिहाड़ी मजदूरों से पैसा एकत्र करना नामुमकिन था। फिर भी किसी तरह उन्होंने पैसा जोड़ा और पहली बार अपने हाथों से पचास सीटों का एक सामुदायिक शौचालय तैयार करवा दिया। इसके बाद कलावती ने कभी मुड़कर नहीं देखा और वह अब तक चार हजार शौचालय बनवा चुकी हैं। शौचालय बनाकर वह न सिर्फ पर्यावरण की स्वच्छता में अपना योगदान दे रही हैं बल्कि महिलाओं की गरिमा की रक्षा भी कर रही हैं।