रानी रामपाल कहती हैं, 'मुझे अफसोस के साथ जीना अच्छा नहीं लगता। मुझे डिसिप्लिन और रूटीन में रहना पसंद है। मैं हार्ड वर्क में विश्वास रखती हूं फिर चाहे मेरा मकसद पूरा हो या न हो, कम से कम मैं शीशे में खुद को देख कर कह सकूंगी कि मैंने अपना सब कुछ दिया।'
रानी रामपाल, आज हॉकी की दुनिया में यह नाम किसी पहचान का मोहताज नहीं है। उन्होंने अपनी कप्तानी में भारतीय महिला हॉकी टीम को टोक्यो ओलंपिक का टिकट दिलाया। लेकिन रानी का जीवन बहुत संघर्ष भरा रहा है। उनका जन्म बेहद ही गरीब परिवार में हुआ था। उनके पिता तांगा चलाकर घर चलाते थे और मां गृहणी हैं। रानी अपने घर में सबसे छोटी हैं। उनके दो बड़े भाई हैं। रानी को बचपन से ही हॉकी खेलना बहुत पसंद था। लेकिन जब वह थोड़ी बड़ी हुईं तो घर वालों और रिस्तेदारों ने उनके हॉकी खेलने पर पाबंदी लगा दी।
रिश्तेदार अक्सर ताने देते थे कि छोटी-छोटी स्कर्ट पहनकर मैदान पर खेलेगी और घर की इज्जत खराब करेगी। इसके अलावा हॉकी किट, जूते और ट्रेनिंग आदि का खर्चा भी उनके पिता नहीं उठा सकते थे। ऐसे मुश्किल वक्त में रानी का साथ उनके कोच सरदार बलदेव सिंह ने दिया। उन्होंने रानी के घर वालों को समझाया कि वह खुद अपनी देखरेख में एक बेटी की तरह उनको ट्रेनिंग देंगे। तब जाकर उनके घर वालों ने खेलने की इजाजत दी। रानी चंडीगढ़ में ट्रेनिंग लेने आई तो उनके पास किराय पर रहने के लिए पैसे नहीं थे। तब उनके कोच ने उनके रहने की व्यवस्था अपने ही घर पर करवाई। साथ ही, अपनी पत्नी के साथ मिलकर, रानी के अच्छे खान- पान की जिम्मेदारी भी ली। इसके अलावा हॉकी किट से लेकर जूते खरीदने तक में उनके कोच ने उनकी मदद की। रानी मेहनत को ही अपनी सफलता की सीढ़ी मानती हैं। अर्जुन अवार्ड और पद्मश्री अवार्ड जीत चुकी खिलाड़ी का कहना है 'मुझे अफसोस के साथ जीना अच्छा नहीं लगता। मुझे डिसिप्लिन और रूटीन में रहना पसंद है। मैं हार्ड वर्क में विश्वास रखती हूं फिर चाहे मेरा मकसद पूरा हो या न हो, कम से कम मैं शीशे में खुद को देख कर कह सकूंगी कि मैंने अपना सब कुछ दिया।'
रानी रामपाल ने यह सोचकर खेलना नहीं शुरू किया था कि वह एक दिन महान खिलाड़ी बनेंगी। बल्कि वह सिर्फ अपने परिवार के लिए एक घर बनाना चाहती थी। क्योंकि उनके टूटे घर में बरसात में पानी भर जाता था। आज शाहाबाद में उनका खूबसुरत घर बना है। जिसे उन्होंने साल 2016 में अपने परिवार के लिए बनवाया था। साथ ही, घर की छत पर ओलिंपिक के पांच रिंग भी बने हुए हैं।
इस दिग्गज खिलाड़ी ने महज 14 साल की उम्र में अपना पहला अंतरराष्ट्रीय मैच खेला था। इसके बाद साल 2010 में 15 साल की उम्र में उन्हें विश्व कप में शामिल किया गया। इस तरह वह विश्व कप खेलने वाली सबसे युवा खिलाड़ी बनीं। उन्होंने 2009 में एशिया कप के दौरान भारत को रजत पदक दिलाने में अहम भूमिका निभाई। वह 2010 के राष्ट्रमंडल खेल और 2010 के एशियाई खेल के दौरान भारतीय टीम का हिस्सा थीं।
उन्होंने साल 2013 में जूनियर महिला हॉकी टीम ने कांस्य पदक जीता जो कि विश्व कप हॉकी प्रतिस्पर्धा में 38 साल बाद भारत का पहला कोई मेडल है। इस जीत का श्रेय रानी रामपाल और मनजित कौर का है। वह आमतौर पर सेंटर फॉरवर्ड पर खेलती हैं।
रानी की कप्तानी में, भारतीय हॉकी टीम ने साल 2018 में एशियाई खेलों में रजक पदक जीता था। इसी के साथ, राष्ट्रमंडल खेलों में भारत चौथे पायदान पर और लंदन विश्व कप में आठवें स्थान पर रहा है। इन सब के बावजूद जब भी कोई उनसे बड़ी उपलब्धि के बारे में पूछता है तो उनका जवाब होता है कि भारतीय टीम का नेतृत्व करना ही उनके लिए सबसे बड़ी उपलब्धि है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.