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पहाड़ी गांवों में आर्थिक मजबूती देने का प्रयास कर रही हैं रश्मि भारती 

Published - Thu 29, Apr 2021

रश्मि ने जब पहाड़ों में अपना आशियाना बनाया, तो उद्देश्य यही था कि पहाड़ में रहने वालों को आर्थिक रूप से मजबूत करने के लिए उनके कौशल का उपयोग करना सिखाना है और उन्हें हर तरह की सहायता देनी है। वह अपने इस प्रयास में सफल भी रहीं।

Rashmi Bharti

रश्मि भारती यों तो दिल्ली की रहने वाली हैं, लेकिन पिछले दो दशक से उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले के त्रिपुरादेवी में अपना जीवन व्यतीत कर रही हैं। रश्मि दिल्ली में ही पली-बढ़ी हैं और दिल्ली विश्वविद्यालय से गणित विषय में डिग्री ली है। वह पिछले 27 सालों से ग्रामीण विकास के क्षेत्र में उत्तराखंड और उड़ीसा के इलाकों में काम कर रही हैं। वह पहाड़ों पर पहली बार साल 1991 में गई थीं और तभी से उन्हें पहाड़ों से लगाव हो गया। इसके बाद उन्होंने पहाड़ी इलाकों को गुलजार करने के लिए कमा करना शुरू कर दिया। उन्होंने बेयरफुट कॉलेज के कुमाऊं चैप्टर के रूप में काम करना शुरू कर दिया। जब वह यहां के स्थानीय लोगों से मिली तो तो मानों उन्हीं में घुल-मिल गईं। जब उन्होंने यहां के स्थानीय लोगों का शिल्प कौशल देखा तो उन्हें दिल्ली जैसे शहर की चमक फीकी लगने लगी। तब उन्होंने वहीं रहकर वहां के लोगों की ममद करने का फैसला किया। इसके बाद वहां के शौका समुदाय के लोगों के साथ काम करना शुरू कर दिया। शुरुआत में उन्होंने वहां के दुर्गम गांवों में सौर ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना करवाई, साथ ही इसके बारे में लोगों को प्रशिक्षित भी किया। इसके बाद उनकी इस मुहिम से लोग जुड़ने लगे। तब उन्होंने एक अवनि नामक संस्था की स्थापना की। आर्थिक आत्मनिर्भरता बढ़ाने के लिए उन्होंने शौका समुदाय की औरतों को अपने साथ जोड़ा और उन्हें घर में रहकर कताई, बुनाई जैसे कामों के अवसर दिए। वहीं रंगाई के लिए उन औरतों और आदमियों को काम पर रखा जो घर-परिवार से समय निकालकर नियमित रूप से नौकरी करने के लिए तैयार थे।

टेक्सटाइल उत्पाद 

महिलाओं के कौशल को परखने के बाद उनकी टीम ने उच्च स्तरीय टेक्सटाइल उत्पाद बनाना शुरू किया। साथ ही अर्थक्राफ्ट के नाम से एक सहकारिता संगठन की शुरुआत की। इसका उद्देश्य उन उत्पादों को उचित बाजार उपलब्ध कराना है, ताकि उत्पाद से जुड़े लोगों को एक निश्चित धनराशि मिल सके। रशिम ने दुर्गम गांवों में जाकर लोगों को प्रशिक्षित किया। 

स्वरोजगार की मुहिम

पिछले बारह वर्ष से यह संगठन स्वयं सहायता से चल रहा है। अपने उत्पाद की बिक्री से वे अपना खर्च निकालते हैं। रश्मि कहती हैं, हम ऐसे लोगों को स्वरोजगार देने में सफल हुए हैं, जो सामाजिक व आर्थिक रूप से हाशिये पर थे। हमने किसानों के साथ मिलकर प्राकृतिक सूखे रंग बनाए हैं। साथ ही चीड़ की पत्तियों से बिजली भी बनाई जा रही है। इससे प्रत्यक्ष आर्थिक लाभ हो रहा है। महिलाओं के साथ साथ अन्य लोग अपने खर्चों के लिए खुद पर निर्भर हो रहे हैं। 

महिला सशक्तीकरण पर जोर

यहां काम करने वाली औरतें घर का काम निपटाने के बाद, अपनी मर्जी के मुताबिक काम के घंटे चुन सकती हैं। इससे संगठन के साथ हर उम्र और हर तबके की युवतियां और महिलाएं जुड़ने लगीं। आर्थिक आत्मनिर्भता का अभियान अब तकरीबन पिथौरागढ़ और बागेश्वर 64 गांवों के 2,200 परिवारों तक पहुंचकर उन्हें संगठन से जोड़ चुका है।