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300 शेर, 500 तेंदुए, मगरमच्छ और अजगर को बचा चुकी हैं रसीला

Published - Thu 20, Aug 2020

आपने कई दिलेर लोगों के बारे में सुना होगा लेकिन रसीला वधेर की दिलेरी और बहादुरी के किस्से सुनकर आप दांतों तले अंगुलियां दबा लेंगे। वह गुजरात में वन विभाग कर्मी हैं और अपने काम के प्यार के जरिए अभी तक वह हजार से अधिक खूंखार जानवरों को बचा चुकी हैं। जिसमें 300 शेर, 500 तेंदुए और मगरमच्छ व पायथन शामिल हैं। वह जंगल में यहां के राजा से भी ज्यादा आत्मविश्वास के साथ चलती हैं।

rasila vadher

नई दिल्ली। कुछ दिनों पहले अपने टि्वटर अकाउंट पर आईएफएस ऑफिसर परवीन कासवान ने एक तस्वीर शेयर की। जिसका कैप्शन दिया,  ..मिलिए रसीला वाढेर से, वो गिर में फॉरेस्टर हैं। अभी तक वो 1000 से ज्यादा जानवरों को रेस्क्यू कर चुकी हैं। जिसमें 300 शेर, 500 तेंदुए, मगरमच्छ और .. पायथन हैं। वो इन्हें कुओं में से वो रेस्क्यू करती हैं और जंगल के राजा से भी ज्यादा आत्मविश्वास के साथ यहां चलती है। उनके इस ट्वीट के बाद लोग रसीला वाढेर को सर्च करने लगे। रसीला एक वन विभाग कर्मी हैं और बहुत ही शिद्दत से अपना करती हैं। उन्हें जानवरों से बेहद लगाव है। 
वह कहती हैं कि वन विभाग की नौकरी मैंने सिर्फ अपने परिवार को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए की थी, लेकिन धीरे-धीरे मुझे जानवरों से प्रेम हो गया। अब उनके बचाव और संरक्षण के लिए में 
हमेशा तैयार रहती हूं। जानवरों को बचाने में जोखिम उठाने से भी अब डर नहीं लगता। दिन हो या रात हर समय मैं तैयार रहती हूं। 

मां ने मजदूरी करके पढ़ाया 
बतौर रसीला, मैं गुजरात के एक मध्यवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती हूं और यहां के गिर राष्ट्रीय उद्यान में वन​ विभाग में कार्यरत हूं। स्कूली पढ़ाई के बाद मैंने हिंदी साहित्य से स्नातक किया। बचपन में ही हमारे सिर से पिता का साया उठ गया था। मां ने मेरे और मेरे भाई का पालन-पोषण करने के लिए मजदूरी तक की इसलिए स्नातक करने के बाद मेरा एकमात्र उद्देश्य मां को बेहतर जीवन देने के लिए रोजगार से जुड़ना था। लिहाजा पढ़ाई पूरी करने के बाद मैंने सरकारी नौकरियों के लिए आवेदन करना शुरू किया। 

पहले ऑफिस का काम देकर हतोत्साहित किया जाता था, लेकिन मैंने धैर्य नहीं खोया
वर्ष 2007 में ही गुजरात में वन विभाग में 33 फीसदी आरक्षण के साथ महिलाओं की नियुक्ति प्रक्रिया शुरू हुई। मैंने फॉरेस्ट गार्ड की नौकरी के लिए आवेदन किया और कई तरह के पड़ाव को पार करते हुए मुझे गिर राष्ट्रीय उद्यान की महिला फॉरेस्ट गार्ड टीम में तैनाती मिल गई। हालांकि शुरुआती दिनों में मुझे कार्यालय का काम देकर हतोत्साहित भी किया जाता रहा, लेकिन मैंने धैर्य खोने के बजाय अपना काम जारी रखा। दो साल के बाद मुझे तरक्की दी गई और मैं रेस्क्यू अभियानों में शामिल होने लगी। 

जान हमेशा हथेली पर रहती है
गिर राष्ट्रीय उद्यान की महिला टीम रोजाना अपनी जान हथेली पर रखकर कभी बाइक से, तो कभी पैदल ही जंगल में पेट्रोलिंग करती है। हमें जंगली जानवरों से ही नहीं, बल्कि शिकारियों से भी खतरा रहता है। कई बार रेस्क्यू अभियानों के दौरान जानवर हम पर हमला कर देते हैं। अपनी शादी से पहले मैंने पति को यह बात बता दी थी कि मैं जंगलों में देर तक दूसरे लोगों के साथ काम करूंगी।

हजारों जीवों को बचाया, किसी की नहीं गई जान
बारह वर्ष से अधिक समय से बचाव अभियानों का नेतृत्व करते हुए मैंने हमेशा यह प्रयास किया है कि पहले से ही घायल जानवरों को अतिरिक्त नुकसान न पहुंचे। हमारे बचाव अभियानों में अब तक एक भी जान नहीं गई है। साथ ही, मेरी सफलता की दर सौ प्रतिशत है। अपनी टीम के साथ मैंने हजार से ज्यादा जानवरों को बचाया है। इनमें शेर, तेंदुए, मगरमच्छ, अजगर आदि शामिल हैं। 

सीख मिली, जानवरों से प्यार करेंगे तो प्यार मिलेगा
अब तक के बचाव अभियानों से मुझे यही सीख मिली है कि जानवर जंगली हों या घरेलू, आपको तब तक परेशान नहीं करेंगे, जब तक आप से उन्हें खतरा महसूस न हो। मुझे नहीं पता कि डर या खतरा क्या है, लेकिन मुझे पता है कि प्यार क्या है। उनके प्रति प्यार दिखाएं, तो बदले में वे भी आपसे प्यार करेंगे।