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रग्बी ने संध्या को दिखाया कोलकाता का रास्ता 

Published - Thu 07, Jan 2021

चाय बागान क्षेत्रों में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। जरूरत है, उनको तराशने और सही मौके देने की। संध्या अपनी ओर से भरसक सहायता का प्रयास कर रही हैं, और लड़कियों को खेल के लिए प्रोत्साहित भी कर रही हैं। 

sandhya rai

रग्बी का खेल दूसरे देशों में तो काफी लोकप्रिय है। लेकिन, बात अगर भारत की करें तो अपने देश में इसके बहुत कम खिलाड़ी हैं। इसलिए रग्बी के खेल में भारत से एक महिला का खिलाड़ी का नाम कमाना ही अपने आप में एक उपलब्धि है। इस उपलब्धि को हासिल किया है पश्चिम बंगाल की संध्या राई ने। उत्तरी बंगाल में चाय बागान मजदूरों की एक 20 वर्षीय बेटी ने अपने लिए एक बेहतर भविष्य का निर्माण किया है, और कई अन्य लोगों को भी इसी तरह से आगे लाने का प्रयास कर रही हैं। वह आक्रामक तरीके से खेले जाने वाले इस खेल को धन्यवाद कहती हैं। 
संध्या राय को महिलाओं के रग्बी को बढ़ावा देने के लिए एक वैश्विक अभियान में "इंडिया अनस्टॉपेबल" के लिए चुना गया है। वह एशिया रग्बी अनस्टॉपेबल्स प्लेटफॉर्म पर देश का प्रतिनिधित्व करने वाली भारत की तीन महिलाओं में से एक है, इस सूची में शीर्ष 32 एशियाई महिला रग्बी खिलाड़ियों को शामिल किया गया हैं।
विश्व रग्बी 'अनस्टॉपेबल' अभियान ने न केवल एशिया और भारत की लड़कियों और महिलाओं को इस खेल के लिए प्रेरित किया है बल्कि इन लड़कियों और महिलाओं की प्रेरणादायक कहानियों को प्रदर्शित करने और उजागर करने के लिए एक मंच भी प्रदान किया है। 

चाय के बागान से रग्बी के मैदान तक 

संध्या पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी के पास चाय के बागानों में बसे एक गांव से ताल्लुक रखती हैं। उनके माता-पिता चाय बागान में मजदूरी करते हैं। बचपन से ही वह रग्बी क्लब के बिरजू राय को खेलते देखकर बड़ी हुई। लेकिन गांव में इस खेल की कोई सुविधा नहीं थी और लोगों को इसकी कोई जानकारी भी नहीं थी। उनके गांव के चर्च में एक फादर प्रार्थना कराने आते थे। उन्होंने कोलकाता में अपने एक दोस्त को संध्या के बारे में बताया। वह कोलकाता में बड़े अधिकारी थे। उन्होंने संध्या को हरसंभव मदद देने का प्रोत्साहन दिया और एक व्यक्ति को उनका कोच बनाया। इस तरह वर्ष 2013 में संध्या ने चाय बागान के ही एक खाली पड़े मैदान में रग्बी खेलना शुरू किया। शुरुआत में स्थानीय लोगों ने लड़कियों के शॉर्ट्स पहन कर खेलने पर काफी आपत्ति जताई। घरवाले भी कहते थे, पैर टूट गए, तो शादी कौन करेगा? लेकिन उन सबकी आशंकाएं तब खत्म हुईं, जब देश-विदेश के विभिन्न प्रतियोगिताओं में हम प्रदर्शन करने लगीं।

माता-पिता से प्रोत्साहन

संध्या को उनके माता-पिता ने हमेशा सपोर्ट किया। अन्य लड़कियों की तरह उनके घर में सवाल नहीं किए गए न ही उन पर खेलने के लिए कोई पाबंदी नहीं लगाई। अब संध्या की कामयाबी के देखकर गांव के आसपास की और लड़कियां भी रग्बी खेलना चाहती हैं। लेकिन कुछ लोग अब भी यह कहते हुए इसमें रोड़े अटकाते हैं कि यह लड़कियों का खेल नहीं है।

एशिया का प्रतिनिधित्व

रग्बी ने संध्या को गांव से निकालकर पढ़ने के लिए कोलकाता तक का रास्ता दिखाया। कई लोग ऐसे थे, जो उन्हें डर दिखाते थे, लेकिन जिला और राज्य-स्तरीय प्रतियोगिताओं में उनके बेहतर प्रदर्शन के बाद वे लोग चुप हो गए हैं। बीते सप्ताह 'द वर्ल्ड रग्बी अनस्टॉपेबल कैंपेन' के तहत उन्हें एशिया का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया है।

दूसरों को प्रोत्साहन 

संध्या स्पोर्ट्स मैनेजमेंट में अभी स्नातक कर रही हैं। इसके बाद परास्नातक कर स्पोर्ट्स मैनेजर या खेल के क्षेत्र में ही कोई बढ़िया नौकरी करना चाहती हैं, ताकि कच्ची प्रतिभाओं को निखार सकें। उनका मानना है कि अगर वह दो-चार लड़कियों को भी प्रोत्साहित कर सकें, तो यह उनका सौभाग्य होगा।