अपनी खूबसूरती और आतंकी वारदातों को लेकर हमेशा चर्चा में रहने वाले जम्मू-कश्मीर में महिलाओं की शिक्षा को लेकर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। कई लोग बेहतर माहौल न होने का हवाला देते हैं, तो कुछ लोग संसाधनों के अभाव को इसकी वजह बताते हैं। इन तमाम दलीलों के बीच घाटी की बहादुर बेटियां अब देश की सर्वोच्च प्रशासनिक सेवा के लिए होने वाली यूपीएससी परीक्षा को क्रैक कर बदलाव का साफ संदेश दे रही हैं। ऐसी ही एक बहादुर बेटी हैं रुवेदा सलाम। इनका पूरा बचपन आतंकवाद के साये में गुजरा। किसी अनहोनी के डर से कुपवाड़ा स्थित अपने पैतृक आवास को छोड़कर श्रीनगर में रहना पड़ा। तमाम परेशानियों के बीच रुवेदा ने पहले एमबीबीएस की परीक्षा पास की फिर केएएस को क्लीयर किया। फिर पिता का सपना पूरा करने के लिए दो बार यूपीएससी की परीक्षा क्लीयर की। आइए जानते हैं रुवेदा के सफर के बारे में...
नई दिल्ली। उत्तर कश्मीर के कुपवाड़ा की रहने वालीं रुवेदा के पिता सलामुद्दीन बजद दूरदर्शन केंद्र के उपनिदेशक रह चुके हैं। वह अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। उनकी मां एक स्कूल में हेडमास्टर हैं। पिता ने बचपन से ही रुवेदा को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित किया। वह चाहते थे कि बेटी बड़ी होकर आईएएस अफसर बने। पिता की इन बातों को रुवेदा ने गंभीरता से लिया। वह शुरू से ही पढ़ने में काफी होशियार थीं। इस कारण 12वीं की परीक्षा पास करने के बाद 2004 में उनका एमबीबीएस में सिलेक्शन श्रीनगर के सरकारी मेडिकल कॉलेज में हो गया। साल 2009 में जब वह महज 27 साल की थीं तभी उन्होंने एमबीबीएस की पढ़ाई पूरी कर ली और मरीजों की सेवा करने लगीं। इस बीच रिश्तेदारों की ओर से उन पर शादी का दबाव बनाया जाने लगा। रिश्तेदार और आस-पास के लोग ताने मारते कि लड़की को इतना मत पढ़ाओ, शादी कर दो, उम्र निकल गई, तो कोई अच्छा लड़का नहीं मिलेगा। ये तमाम दबाव रुवेदा के पिता पर कोई असर नहीं डाल सके। उन्होंने बेटी को अपनी पढ़ाई जारी रखने और यूपीएससी की तैयारी करने पर फोकस रहने को कहा।
केएएस की परीक्षा पास कर बंद किया आलोचकों का मुंह
पिता के उत्साहवर्द्धन का असर यह हुआ कि रुवेदा मन लगाकर पढ़ाई में जुट गईं। इसी का नतीजा था कि साल 2009 में ही रुवेदा ने कश्मीर एडमिनिस्ट्रेटिव सर्विस (केएएस) की परीक्षा क्लीयर कर ली। इसके बाद शादी का दबाव डाल रहे रिश्तेदारों के मुंह बंद हो गए। बेटी की सफलता से उत्साहित पिता ने रुवेदा को नौकरी ज्वाइन करने की बजाय यूपीएससी की तैयारी जारी रखने को कहा। साल 2013 में उन्होंने पहले ही प्रयास में यूपीएससी की परीक्षा पास कर इतिहास रच दिया। उन्हें 25वीं रैंक हासिल हुई। रिजल्ट के बाद रुवेदा ने पुलिस में जाना तय किया। इस तरह उन्हें कश्मीर की पहली महिला होने का गौरव मिला, जिसने सिविल सर्विसेज की परीक्षा पास की। वह कश्मीर की पहली महिला आईपीएस अफसर भी हैं।
दूसरे प्रयास में बनीं आईएएस
आईपीएस बनने के बाद रुवेदा की ट्रेनिंग हैदराबाद के सरदार बल्लभ भाई पटेल एकेडमी में हुई। ट्रेनिंग के बाद रुवेदा को चेन्नई में असिस्टेंट पुलिस कमिश्नर के तौर पर नियुक्त किया गया। उनकी गिनती देश के तेज-तर्रार आईपीएस अफसरों में होती थी। उनके काम के लिए उन्हें कई सम्मानों से नवाजा गया। लॉ एंड ऑर्डर को बिगड़ने नहीं देना उनकी प्राथमिकता है। आईपीएस की ट्रेनिंग के दौरान भी रुवेदा ने यूपीएससी की तैयारी जारी रखी और दूसरे प्रयास में 2015 में आईएएस बन पिता के सपने को साकार किया। वह इस समय गृह मंत्रालय में तैनात हैं। पिता भी बेटी की सफलता से काफी खुश हैं।
कविता के साथ खाना बनाने का शौक
आईएएस रुवेदा को कविताओं का काफी शौक है। उन्हें कई मशहूर शायरों और कवियों की रचनाएं कंठस्थ हैं। रुवेदा का खाना बनाने का भी काफी शौक है। वह नए-नए पकवान भी बनाती हैं। वह स्थानीय लोगों से मिलने और उनकी संस्कृति के बारे में जानने को काफी उत्सुक रहती हैं।
कश्मीर के प्रति लोगों की सोच बदलना मकसद
रुवेदा की मानें तो जैसे ही देश के बाकी हिस्सों में लोगों को मालूम चलता है कि आप कश्मीर से हैं, तो उनके दिमाग में यह बात आ जाती है कि इसकी सोच जरूर देश के खिलाफ होगी। उन्हें इस मानसिकता को बदलना है और इसके लिए वह हमेशा कोशिश करती रहेंगी।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.