क्रिकेट कोच सकीना अख्तर ने कई प्रतिबंधों को पार करके क्रिकेट को अपना जुनून बनाया। उनके अनुसार क्रिकेट मेरा जुनून था, मैं हमेशा उसी बारे में सोचती रहती थी। कई सामाजिक और पारिवारिक प्रतिबंधों ने मेरा रास्ता रोकने की कोशिश की, लेकिन मैंने सबको पीछे किया और क्रिकेट की कोचिंग देकर अपना सपना साकार कर रही हूं। अपने सपने के सच होने के बाद मैं बेहद खुश हूं।
नई दिल्ली। बतौर सकीना मैं जम्मू-कश्मीर की रहने वाली हूं। मुझे क्रिकेट बचपन से ही पसंद था। यूं तो मैं एक मध्यवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखती हूं। लेकिन बतौर कश्मीरी लड़की मेरे सामने अनेक परेशानियां और सामाजिक प्रतिबंध थे। उस समय मेरी उम्र यही कोई बारह साल रही होगी, जब मैंने घर वालों से छुपकर पहली बार क्रिकेट बैट पकड़ा था। धीरे-धीरे मैंने पड़ोस के लड़कों के साथ घर वालों की नजर में आए बिना क्रिकेट खेलना शुरू किया। खेल के दौरान कई बार मेरी उन लड़कों से लड़ाई भी होती थी। एक बार चाचा ने मुझे क्रिकेट खेलते देख लिया था, तब मेरी पिटाई भी हुई। लेकिन मैंने खेलना जारी रखा और कुछ दिन बाद स्कूल की क्रिकेट टीम में शामिल हो गई। 1998 में मैंने अपना पहला अंडर-19 क्रिकेट मैच खेला, जिसमें सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज और सर्वाधिक रन बनाने की उपलब्धि मिली। लेकिन मैं अधिक दिनों तक खेल न सकी। मेरे परिवार के लोग चाहते थे कि मैं पहले अपने करियर पर ध्यान दूं। मैंने उच्च शिक्षा के लिए कश्मीर विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, लेकिन जल्द ही कॉलेज छोड़ दिया और खेल में डिप्लोमा के लिए दिल्ली चली गई। मैंने बीसीसीआई से लेवल ‘ए’ कोचिंग कोर्स पास किया। कोर्स के दौरान मुझे आश्चर्य हुआ कि देश के अलग-अलग हिस्सों में खेल के अलग-अलग मायने हैं। यही बदलाव मैं कश्मीर में लाना चाहती थी, जहां लड़कियों का खेलना टैबू माना जाता रहा है।
क्रिकेट की कोचिंग देती है सुकून
क्रिकेट कोचिंग देना एक ऐसा तरीका था, जो मुझे क्रिकेट से जोड़े रख सकता था। मैं खुद को उपयोगी बनाना चाहती थी और युवा पीढ़ी के साथ अपने कौशल और तकनीकों को साझा करना चाहती थी। कोचिंग ने मेरी विशेषज्ञता और खेल की समझ को सही मंच दिया। कोर्स करने के बाद मैंने जम्मू-कश्मीर स्पोर्ट्स काउंसिल के साथ काम करना शुरू किया, ताकि महिला क्रिकेट को बढ़ावा मिले।
पहले कैंप से खुशी हुई
क्रिकेट के जुनून के चलते, मुझे घाटी में बच्चों को प्रशिक्षण देने का ऑफर मिला। मेरा पहला शिविर पोलो ग्राउंड में था, जहां मैंने विभिन्न स्कूलों से आए हुए करीब चार सौ लड़कों को प्रशिक्षण दिया, जिनमें से कई अब विभिन्न राष्ट्रीय टूर्नामेंट में खेलते हैं।
बदली स्थिति
इसके बाद मुझे कश्मीर विश्वविद्यालय में अनुबंध-आधारित काम मिल गया। वहां मैं लड़के-लड़की, दोनों को प्रशिक्षित करने लगी। हालांकि अब घाटी में स्थिति सुधरने लगी है। दो-तीन दशक पहले के प्रतिबंध से धीरे-धीरे लोग निकल रहे हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.