आर्थिक परेशानी और तमाम तरह की आलोचनाओं के बीच केवल अपने हौसले के दम पर गांव से निकली एक बेटी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर की बॉक्सर बनने का अपना सपना न केवल पूरा किया, बल्कि पोलैंड में हुए 13वें इंटरनेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर देश का नाम भी रोशन कर दिया।
नई दिल्ली। पिता ऑटो चालक, घर में आमदनी का कोई और साधन नहीं, पारिवारिक आर्थिक पृष्ठभूमि भी काफी कमजोर, लेकिन हौसले की कोई कमी नहीं। इसी हौसले के दम पर गांव से निकली एक बेटी ने अंतरराष्ट्रीय स्तर की बॉक्सर बनने का अपना सपना न केवल पूरा किया, बल्कि पोलैंड में हुए 13वें इंटरनेशनल बॉक्सिंग चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीतकर देश का नाम भी रोशन कर दिया। हम यहां बात कर रहे हैं युवा भारतीय बॉक्सर संदीप कौर की। संदीप कौर ने 52 किलो वर्ग में पोलैंड की कैरोलीना एमपुस्का को 5-0 से हराकर दुनिया के सामने अपना दमखम साबित करते हुए अपने आलोचकों का मुंह बंद कर दिया।
पिता ने आलोचकों को दिया करारा जवाब
महज 16 साल की उम्र में बॉक्सिंग के क्षितिज पर अपनी छाप छोड़ने वाली संदीप कौर के चैंपियन बनने की राह आसान नहीं रही। पटियाला के छोटे से गांव हसनपुर की रहने वाली संदीप कौर के घर की आर्थिक स्थिति काफी खराब है। पिता सरदार जसवीर सिंह पटियाला में ऑटो चलाकर किसी तरह परिवार का भरण-पोषण करते हैं। ऐसे में संदीप ने जब बॉक्सर बनने का फैसला किया तो आर्थिक समस्या उसके सामने दीवार बनकर खड़ी हो गई। गांव के लोगों और रिश्तेदारों ने भी विरोध किया। संदीप के पिता को बेटी को बॉक्सिंग की राह पर जाने से रोकने को कहा, लेकिन संदीप ने अपना इरादा नहीं बदला। पिता ने भी बेटी का पूरा सहयोग किया और उसे अपने सपनों की तस्वीर में रंग भरने के लिए प्रोत्साहित किया। संदीप को बॉक्सर बनने से रोकने वालों को उनके पिता जसवीर सिंह ने करारा जवाब देते हुए कहा कि बेटी जो करना चाहती है मैं उसे वो कराकर ही मानूंगा। उन्होंने कहा- ‘मैं इतना कमाता हूं कि कोई भूखा नहीं सोएगा।’ पिता से मिले संबल ने संदीप को आगे बढ़ने का हौसला दिया और फिर उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
चाचा ने बॉक्सर बनने को कहा, महज 8 साल की उम्र में थाम लिए ग्लब्स
संदीप कौर को अपने चाचा सिमरनजीत सिंह से बॉक्सर बनने की प्रेरणा मिली। चाचा ने भी उसे खूब प्रेरित किया। संदीप बतातीं हैं, बचपन में मैं चाचा के साथ गांव के पास स्थित बॉक्सिंग अकादमी में जाया करती थी। वहां लोगों को बॉक्सिंग करता देख, मेरे मन में बॉक्सर बनने का ख्याल आया और महज 8 साल की उम्र में मैंने बॉक्सिंग ग्लब्स उठा लिए। इसके बाद शुरू हुआ ट्रेनिंग का सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है। संदीप कौर की लगन को देख सुनील कुमार ने उन्हें बॉक्सिंग की बारीकियां सीखाने का आग्रह स्वीकार कर लिया। इसी बीच गांव वाले संदीप और उसके परिवार को तरह-तरह के ताने देते रहे, लेकिन उसने लक्ष्य से अपना ध्यान कभी भटकने नहीं दिया।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.