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दुनिया को कोरोना की पहली वैक्सीन दे सकती हैं सारा

Published - Tue 28, Jul 2020

कोरोना वैक्सीन को लेकर कई तरह के दावे किए जा रहे हैं। इन सबके बीच सारा गिलबर्ट की वैक्सीन की हर तरफ चर्चा है। जिस पर वह तेजी से काम कर रही हैं। अगर उनका प्रयास सफल रहता है तो वह दुनिया की पहली वैक्सीन देने वाली महिला बन सकती हैं।

sara gilbart

नई दिल्ली। कोरोना वैक्सीन बनाने की दिशा में कई कंपनियां काम कर रही हैं। कई देश जुटे हुए हैं लेकिन इन सबके बीच ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैक्सीन टेस्ट की सबसे अधिक चर्चा हो रही है। दावा यह किया जा रहा है कि ऑक्सफोर्ड की वैक्सीन का पहला ह्यूमन ट्रायल कामयाब रहा है। अगर आगे भी सबकुछ ठीक रहता है, तो संभव है कि बहुत जल्दी ही कोरोना वायरस की एक कारगर वैक्सीन तैयार कर ली जाए। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, एस्ट्राजेनेका दवा कंपनी के साथ मिलकर यह वैक्सीन बनाने की दिशा में काम कर रही है। ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक टीम सारा गिलबर्ट के नेतृत्व में इस कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने का काम कर रही है। 

कौन हैं सारा गिलबर्ट
सारा गिलबर्ट ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की उस टीम का नेतृत्व कर रही हैं, जो कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने की दिशा में सबसे आगे मानी जा रही है। प्रोफेसर सारा को हमेशा से अपने बारे में यह पता था कि उन्हें आगे चलकर मेडिकल रिसर्चर बनना है लेकिन 17 की उम्र में सारा को बिल्कुल भी अंदाज़ा नहीं था कि उन्हें शुरुआत कहां से करनी है। यूनिवर्सिटी ऑफ एंजलिया से जीव-विज्ञान में डिग्री हासिल करने के बाद सारा ने बायो-केमिस्ट्री में पीएचडी की। उन्होंने अपनी शुरुआत ब्रुइंग रिसर्च फाउंडेशन के साथ की। इसके बाद उन्होंने कुछ और कंपनियों में भी काम किया और ड्रग मैन्युफैक्चरिंग के बारे में सीखा। इसके बाद वो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर बन एड्रियन हिल्स लैब आ पहुंची। यहां उन्होंने शुरुआत में जेनेटिक्स पर काम किया। इसके अलावा मलेरिया पर भी काफी काम किया। इसके बाद वो वैक्सीन बनाने के काम से जुड़ गईं। 

एक वैक्सीन के ट्रायल में बच्चों ने लिया था भाग 
सारा तीन बच्चों (एक साथ हुए थे) की मां हैं। वह बच्चों के जन्म के एक साल बाद ही यूनिवर्सिटी में लेक्चरर बन गईं और फिर साल 2004 में यूनिवर्सिटी रीडर। 2007 में सारा को वेलकम ट्रस्ट की ओर से एक फ्लू वैक्सीन बनाने का काम मिला और इसी के बाद शुरुआत हुई उनके अपने रिसर्च ग्रुप का नेतृत्व करने के सफर की। सारा के तीनों बच्चे अब 21 साल के हैं। वे सब भी बायोकेमिस्ट्री से पढ़ाई कर रहे हैं। सारा के इन तीनों बच्चों ने कोरोना वायरस के लिए तैयार की गई एक प्रयोगात्मक वैक्सीन के ट्रायल में हिस्सा भी लिया था। खबर के अनुसार, ये ट्रायल वैक्सीन उनकी मां यानी सारा ने ही तैयार की थी। 

मुश्किल था सफर
सारा कहती हैं, काम और पर्सनल लाइफ में तालमेल बिठाकर रख पाना बेहद मुश्किल होता है। यह तब नामुमिन लगते लगता है जब आपके पास कोई सपोर्ट ना हो। मेरे ट्रिपलेट्स थे। नर्सरी फीस मेरी पूरी तनख्वाह से अधिक होती थी। ऐसे में मेरे पार्टनर ने अपना करियर छोड़कर बच्चों को संभाला। वो कहती हैं, साल 1998 में बच्चे हुए और उस समय मुझे सिर्फ 18 सप्ताह की मैटरनिटी लीव मिली थी। यह काफी परेशानी वाला वक्त था क्योंकि मेरे पास तीन प्रीमैच्योर बच्चे थे, जिनकी मुझे देखभाल करनी थी। अब भले ही मैं एक लैब हेड हूं, लेकिन मैंने सिक्के का दूसरा पहलू भी देखा है। वो कहती हैं कि वैज्ञानिक होने की सबसे प्यारी बात ये है कि आपके लिए काम के घंटे तय नहीं होते हैं। ऐसे में एक मां के लिए काम करना आसान हो जाता है।  लेकिन सारा इस बात से भी इनकार नहीं करती हैं कि कई बार ऐसी भी परिस्थिति बन जाती है जब सबकुछ उलझ जाता है और आपको त्याग करने पड़ते हैं। 

योजना के साथ काम करना जरूरी
वह कहती हैं जो महिलाएं विज्ञान के क्षेत्र में भविष्य बनाना चाहती हैं, उन्हें सारा सलाह देती हैं कि पहली बात जो आपके जहन में यह होनी चाहिए कि यह बहुत ही मुश्किल भरी चुनौती है।  सबसे पहले जरूरी है कि आपके पास हर चीज़ के लिए योजना हो। साथ ही यह भी तय करना जरूरी है कि आपके साथ कोई ऐसा हो ही जो उस वक्त घर का ध्यान रख सके जब आप काम पर हों।