सविता पूनिया के दादा जी चाहते थे कि बेटी स्पोर्ट में ही करियर बनाए। इसके लिए उन्हाेंने खेल अकादमी में उनका दाखिला भी करा दिया। लेकिन सविता का मन बिल्कुल नहीं लग रहा था। बच्ची का मन लगाने के लिए उनके पिता ने 20 हाजर रुपये की नई हॉकी किट लाकर दी।
सविता पूनिया, बचपन में बेहद शर्मीली व शांत किस्म की बच्ची थी। उनको देखकर नहीं लगता था कि वह स्पोर्ट में करियर बनाएगी। बचपन में उनको स्पोर्ट पसंद भी नहीं था। लेकिन उनके दादा जी चाहते थे कि बेटी स्पोर्ट में ही करियर बनाए। उनके दादा ने एक खेल अकादमी में उनका दाखिला भी करा दिया। लेकिन सविता का मन बिल्कुल नहीं लग रहा था। बच्ची का मन लगाने के लिए उनके पिता ने 20 हाजर रुपये की नई हॉकी किट ला कर दी। नई-नई हॉकी किट देखकर उनका भी मन खेलने के लिए मचलने लगा। इसके बाद उन्हें खेल में एक नई रोशनी दिखने लगी और इसके बारे में गंभीर हो गई। ऐसे उनका हॉकी खेलने का सिलसिला शुरू हो गया। लेकिन तभी उनकी मॉ बीमार पड़ गई। इतना बीमार की उन्होंने बिस्तर पकड़ लिया। ऐसे वक्त में उनके परिवार ने सविता को संभाला। उनके करियर को प्रभावित नहीं होने दिया और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया। यही वजह कि वह अपने दादा जी और माता-पिता को अपना सबसे बड़े रोल मॉडल मानती हैं। वह अपनी मेहनत और माता-पिता व दादा जी के आशीर्वाद से अब टोक्यों ओलंपिक में खेलने जा रही हैं। वह टीम की गोलकीपर और उपकप्तान भी हैं।
साल 2007 में, पुनिया को लखनऊ में राष्ट्रीय शिविर के लिए चुना गया था, और तब उन्होंने एक शीर्ष गोलकीपर से प्रशिक्षण लिया। जब उनका चयन पहली बार स्टेट लेवल पर हुआ था तो उनके दादा जी के आंखों में आंसू आ गए थे। उन्हें यकीन हो गया था कि अब बेटी सफलता की सीढ़िया चढ़ेगी। उन्होंने साल 2008 में अपना पहला अंतरराष्ट्रीय दौरा किया। उन्होंने साल 2011 में सीनियर इंटरनेशनल डेब्यू किया। वह अब तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 100 से अधिक मैच खेल चुकी है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्होंने अपनी काबिलियत साबित की उसी का नतीजा है कि आज वह उपकप्तान है और कप्तान रानी रामपाल के साथ मैदान पर रणनीति बनाती है। हालांकि उनका करियर इतना आसान नहीं रहा। साल 2008 में चयन के बावजूद उन्हें टीम में खेलने का मौका नहीं मिल रहा था। कई सालों तक उन्होंने बेंच पर बैठकर इंतजार किया। ऐसे वक्त में उनका परिवार हमेशा उनके साथ खड़ा रहा और यकीन दिलाया कि समय जरूर बदलेगा। साल 2013 में सविता ने टीम के लिए अच्छा प्रदर्शन किया और सुखिर्या बटोरीं। रियो ओलंपिक 2016 में भी उन्होंने अपनी छाप छोड़ी। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। सविता आज के समय में भारतीय महिला हॉकी टीम की सबसे बहतरीन गोलकीपर है। वह दुनिया की नंबर-1 गोलकीपर का खिताब भी जीत चुकी हैं। सविता पूनिया को शूटआउट रोकने में महारत हासिल है। साल 2018 में उन्हें अर्जुन अवॉर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है।
सविता पुनिया टोक्यो ओलंपिक में खेलने जा रही महिला हॉकी टीम का हिस्सा है। पूरे देश को उम्मीद है कि इस बार बेटियां अच्छा प्रदर्शन कर देश के लिए मेडल जरूर लाएंगी। सविता पुनिया हालांकि कोरोना संक्रमित हो गई थीं। लेकिन अब वह पूरी तरह स्वस्थ हैं। अब उनकी निगाहें टोक्यो ओलंपिक पर ही टिकी हैं। उनका कहना है कि 'हम मौजूदा महामारी की स्थिति को अपनी बाधा नहीं बनने दे रहे हैं। हम आशावादी बने हुए हैं, निगाहें अपने लक्ष्य पर टिकी हैं और हम ओलंपिक में सफल होने के लिए हर दिन प्रयास कर रहे हैं,' उन्होंने आगे कहा, 'हमारा ध्यान अभी फिटनेस पर है और हमारा फोकस सत्र खेलने के साथ-साथ अपनी बॉडी क्लॉक को जापान के समय के अनुसार सेट करने पर भी है।'
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.