परंपरागत रास्ते से हटकर कुछ अलग करने की राह चुनने वालों का माखौल उड़ाना लोगों की पुरानी आदत है। लेकिन जब वही शख्स अपने लिए चुनी गई मंजिल पर पहुंच जाता है तो आलोचक ही उसके प्रशंसक बन जाते हैं। उसके हौसले ही तारीफ करते नहीं थकते। लोगों को उसकी मिसाल देते हैं। ऐसी ही एक शख्सियत का नाम है सीता देवी। आइए जानते हैं इस बहादुर महिला के बारे में....
नई दिल्ली। परंपरागत रास्ते से हटकर कुछ अलग करने की राह चुनने वालों का माखौल उड़ाना लोगों की पुरानी आदत है। लेकिन जब वही शख्स अपने लिए चुनी गई मंजिल पर पहुंच जाता है तो आलोचक ही उसके प्रशंसक बन जाते हैं। उसके हौसले ही तारीफ करते नहीं थकते। लोगों को उसकी मिसाल देते हैं। ऐसी ही एक शख्सियत का नाम है सीता देवी। उत्तराखंड के टिहरी जिले के दुवाकोटी गांव में रहने वाली सीता देवी ने कुछ साल पहले जब कीवी के पौधे लगाकर इसके फलों का व्यापार करने का फैसला किया तो गांव वाले उनपर हंसने लगे। कहां यह कौन सा विदेशी फल उगाने की बात कर रही हो, बड़ा नुकसान उठाना पड़ेगा। परंपरागत फसलों के क्षेत्र में इसकी पैदावार रंग ही नहीं लाएगी। दरअसल, इस समय तक गांव के लोगों ने कीवी फल का नाम और उसके बारे में कभी सुना ही नहीं था। तमाम लोगों की आलोचना और उपेक्षा के बाद भी सीता देवी अपने फैसले पर अडिग रहीं। आज इसी फल की बदौलत वह हर साल लाखों रुपये कमा रही हैं। अब क्षेत्र के लोग उन्हें 'कीवी क्वीन' के नाम से बुलाते हैं।
बंदरों के उत्पात से परेशान हो कीवी की ओर किया रूख
चार साल पहले तक सीता देवी गांव के अन्य लोगों की तरह अपने खेत में आलू और मटर जैसी पारंपरिक फसलों की खेती करती थीं। लेकिन जंगली जानवरों और बंदरों की वजह से सारी फसल चौपट हो जाती थी। बंदरों के उत्पात से बचने के लिए सीता देवी ने कई जतन किए, लेकिन कोई भी कारगर साबित नहीं हुआ। इससे दुखी सीता देवी ने परंपरागत खेती से अलग हटकर कुछ करने की ठानी। इसके लिए अपने पति राजेंद्र से भी कई बार राय-सलाह की। इसी बीच उन्हें उद्यान विभाग की कीवी प्रोत्साहन योजना के बारे में जानकारी मिली। यह भी पता चला कि बंदर कीवी को नुकसान नहीं पहुंचाते। फिर क्या था सीता देवी सीधे उद्यान विभाग के कार्यालय पहुंच गईं और कीवी कि उत्पादन की जानकारी ली। उन्होंने उद्यानिकी के अफसरों को बताया कि उन्हें अपने बगीचे में कीवी उगाना है। उन्होंने इसके लिए हिमाचल प्रदेश में ट्रेनिंग ली और लौटकर खेतों में ऑर्गेनिक कीवी के उत्पादन की कवायद शुरू कर दी।
लोगों की नहीं की परवाह
सीता देवी ने कीवी की खेती करने की ठानी तो गांव के लोगों ने उनका मजाक उड़ाना शुरू कर दिया। उन्हें हतोउत्साहित करने के लिए कहा- ऐसी कौन सी फसल है जिसे जानवर नुकसान नहीं पहुंचाते हैं। कुछ का कहना था कि कीवी विदेशी फल है, उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र में इसकी पैदावार होना संभव ही नहीं है। इन बातों से कुछ समय के लिए सीता देवी भी परेशान हो गईं, लेकिन उन्हें अपने फैसले से पीछे हटना गवारा नहीं था। उन्हें अपनी ट्रेनिंग पर भी पूरा भरोसा था। सीता देवी ने खुद से वादा किया कि चाहे जो हो वह कीवी का उत्पादन करके ही रहेंगी।
पहले ही साल की बेहतर पैदावार
सीता देवी की लगन और दृढ़ इच्छाशक्ति का ही कमाल था कि उन्होंने पहले ही साल 2018 में एक क्विंटल से ज्यादा कीवी का उत्पादन किया। यह देख उनके आलोचकों और गांव के लोगों का मुंह बंद हो गया। सीता देवी ने यह सारा फल टिहरी जिले में बेचा और इससे उन्हें अच्छा खासा मुनाफा भी हुआ। इससे उत्साहित सीता देवी ने अपने बगीचे में करीब 50 पौधे और लगाए हैं। इस बार उन्हें पहले से ज्यादा कीवी के उत्पादन की संभावना है। कम संख्या में पौधे रोपने की वजह पूछने पर वह साफ-साफ कहती हैं, मैं उतने ही पौधे लगाती हूं, जितने का बेहतर ढंग से देखभाल कर सकूं। आज सीता देवी से कीवी के उत्पादन की जानकारी लेने के लिए कई किसान रोजाना उनके घर तक आते हैं। दुवाकोटी के किसान सीता देवी से काफी प्रभावित हैं।
परिवार भी मिला भरपूर साथ
सीता देवी की इस पहल का उनका पूरा परिवार भरपूर सहयोग करता है। सीता के पति की मैक्स गाड़ी चलाते हैं। वह कीवी के पौधों के लिए खाद लाने से लेकर उनकी देखभाल में अपनी पत्नी का पूरा सहयोग करते हैं। फसलों का बाजार तक पहुंचाने में भी वह पत्नी के कदम से कदम मिलाकर चलते हैं। सीता देवी के दो बेटे भी हैं। एक ने पढ़ाई छोड़ दी है। वह भी पिता की तरह ही ड्राइविंग करता है। वहीं, छोटा बेटा 12वीं में पढ़ने के बाद अब कंप्यूटर का कोर्स कर रहा है। दोनों बेटे भी अपनी मां का पूरा सहयोग करते हैं।
महज 10वीं तक पढ़ी हैं सीता
सीता देवी महज 10वीं तक पढ़ी हैं। टिहरी जिले के जड़धार स्थित उनके मायके की पारिवारिक स्थिति ठीक न होने के कारण वह ज्यादा पढ़-लिख नहीं सकीं। 19 साल की उम्र में ही उनकी शादी हो गई थी। ऐसे में उनके सामने खुद को साबित करने के बहुत ही सीमित विकल्प थे। कम शिक्षा के बाद भी उन्हें अपनी मेहनत पर पूरा भरोसा था और यही उनकी सफलता में सबसे मददगार साबित हुआ। सीता देवी के मुताबिक वह भी बचपन में पढ़ लिखकर कुछ बड़ा करने का सपना देखतीं थीं, लेकिन इसका मौका नहीं मिल सका। शादी के बाद एक बार तो ऐसा लगा कि सारे सपने कहीं पीछे छूट गए, लेकिन कीवी ने उन्हें एकबार फिर खुद को साबित करने का मौका दिया और इसके लिए उन्होंने अपना पूरा दमखम लगा दिया।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.