जिंदगी में तमाम तरह की मुश्किलों को दरकिनार कर सफलता पाने वाले कई लोगों के बारे में आपने सुना होगा। लेकिन हम आज आपको एक ऐसी महिला के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके संघर्ष की दास्तां सुनकर आप हैरान रह जाएंगे। हम बात कर रहे हैं आंध्र प्रदेश (अब तेलंगाना) के वारंगल जिले के गुडेम में जन्मीं ज्योति रेड्डी के बारे में। ज्योति का बचपन बेहद गरीबी में बीता। घर में दो वक्त की रोटी का इंतजाम न होने के कारण उन्हें अनाथालय में रहना पड़ा। 5 रुपये के दिनभर खेतों में मजदूरी करनी पड़ी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। ज्योति आज अमेरिका में एक कंपनी की मालकिन हैं। उनकी कंपनी का सालाना टर्नओवर 15 मिलियन अमेरिकी डॉलर है। आइए जानते हैं ज्योति के फर्श से अर्श तक के सफर के बारे में.....
नई दिल्ली। ज्योति का जन्म 1970 में तेलंगाना के वारंगल जिले के गुडेम में हुआ था। पांच भाई-बहनों में ज्योति सबसे छोटी हैं। उनके पिता वेंकट रेड्डी किसान थे। परिवार की माली हालत ठीक न होने के कारण ज्योति को बचपन से ही आभावों में गुजर-बसर करना पड़ा। इस कारण वह ज्यादा पढ़ भी नहीं सकीं। बचपन में उन्हें भाई-बहनों के साथ नंगे पैर ही स्कूल जाना पड़ता था। वक्त बीतने के साथ परिवार की आर्थिक स्थिति और खराब होती गई। ज्योति जब महज 9 साल की थीं, तब हालात यह हो गए कि उनके पति के पास सभी बच्चों को दो वक्त की रोटी खिला पाना भी मुश्किल हो गया। पिता दिनभर मजदूरी करते, लेकिन फिर भी बच्चों के लिए निवाले का इंतजाम नहीं कर पा रहे थे। बच्चों को भरपेट खाना मिल सके इसलिए मजबूरी में पिता ने एक दिन ज्योति और उनकी बहन को एक अनाथालय में भेज दिया।
बहन घर लौट गई, लेकिन ज्योति डटी रहीं
अनाथालय में कुछ दिन रहने के बाद ज्योति की बहन घर लौटने की जिद पर अड़ गई। वह माता-पिता को याद कर खूब रोती थी। इस कारण उसे घर वापस भेज दिया गया। लेकिन नन्ही ज्योति ने अनाथालय में ही रहकर आगे की पढ़ाई जारी रखने का फैसला किया। इस बारे में आज भी बात करते हुए ज्योति की आंखें नम हो जाती हैं। वह कहती हैं, अनाथालय में उन्हें घर की याद सताती थी, मां की याद आती थी, पर वहां रहना मजबूरी थी। इसे ही उन्होंने अपना भाग्य मान लिया था।
चप्पल खरीदने के नहीं थे पैसे, नंगे पांव जाती थीं स्कूल
ज्योति ने अनाथालय में रहकर ही कक्षा 5वीं से 10वीं तक की पढ़ाई की। ज्योति ने 10वीं का परीक्षा फर्स्ट डिवीजन से पास की थी। उन्हें अनाथालय से ढाई किलोमीटर दूर स्थित सरकारी बालिका विद्यालय में पढ़ने जाना पड़ता था। वह रोजाना पैदल ही वहां जाती थीं। गरीबी का आलम यह था कि ज्योति के पास चप्पल खरीदने तक के पैसे नहीं थे। इस कारण वह नंगे पांव की स्कूल आती-जाती थीं। ज्योति स्कूल में हमेशा पीछे वाली सीट पर बैठती थीं। इसकी वजह यह थी कि उनके पास पहनने के लिए अच्छे कपड़े नहीं होते थे। ज्योति स्कूल के साथ ही वोकेशनल ट्रेनिंग लेती थीं, ताकि काम करके पिता की कुछ मदद कर सकें। ज्योति ने पढ़ाई के दौरान ही कपड़े सिलने, धोने समेत अन्य घरेलू काम भी सीखे। अनाथालय की सुप्रिटेंडेंट के घर पर भी काम करती थीं। हाईस्कूल के बाद ज्योति ने सुप्रिटेंडेंट से 110 रुपये उधार लिए और आंध्रा बालिका कॉलेज में बायोलॉजी, फिजिक्स और केमिस्ट्री विषयों के साथ एडमिशन लिया, लेकिन गरीबी के चलते वो आगे की पढ़ाई नहीं कर पाई।
महज 16 साल की उम्र में हो गई शादी
उम्र बढ़ने के साथ ज्योति की मुश्किलें भी बढ़ती जा रही थीं। वह जब महज 16 साल की थीं तभी उनकी शादी 26 वर्षीय किसान सम्मी से करा दी गई। शादी के दो साल बाद ही ज्योति के दो बेटियां बीना और बिंदू हो गईं। घर की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उन्हें बच्चों की परवरिश में मुश्किलें आने लगी। कई दिनों तक सोच-विचार के बाद ज्योति ने हालात बदलने की ठानी और घर के पास ही एक खेत में काम करने लगीं। यहां 10 घंटे काम करने के एवज में ज्योति को सिर्फ 5 रुपये मिलते थे। इस बीच वह धीरे-धीरे लोगों से मिलती-जुलती रहीं। इस बीच उन्हें केंद्र सरकार की एक योजना के बारे में पता चला। इसके तहत वह नेहरू युवा केंद्र से जुड़ीं। इस संस्थान का सदस्य बनकर ज्योति ने फिर से अपनी पढ़ाई शुरू की। इस दौरान उन्होंने टाइपिंग भी सीख ली। थोड़े समय के बाद साल 1992 में उन्होंने एक स्कूल में पढ़ाना शुरू किया, जहां उन्हें 398 रुपए का वेतन मिलता था। ज्योति को घर से स्कूल आने-जाने में 4 घंटे लगते थे। उन्होंने इसका भी उपयोग करने का मन बनाया और स्कूल आने-जाने के दौरान साड़ियां बेचनी शुरू कर दी। रात में भी वह पेटीकोट सिलती थीं, ताकि और अधिक पैसे कमा सकें। कुछ साल बाद उन्हें जन शिक्षा निलयम वारंगल में लाइब्रेरियन की नौकरी मिल गई। उन्होंने डॉ. भीमराव अंबेडकर ओपन यूनिवर्सिटी से 1994 में बीए की डिग्री और 1997 में काकातिया यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएट की डिग्री ली। कंप्यूटर साइंस में पीजी डिप्लोमा भी किया।
इस तरह बदल गई जिंदगी, पहुंच गईं अमेरिका
साल 2000 में अमेरिका में रहने वाली ज्योति की एक चचेरी बहन गांव आई। मुलाकात के दौरान उसने ज्योति को अमेरिका आने का ऑफर दिया। इसे ज्योति ने स्वीकार कर लिया। ज्योति ने बेटियों को हॉस्टल भेज दिया और अमेरिका निकल गईं। वहां उन्हें शुरुआती दिनों में गैस स्टेशन में नौकरी करनी पड़ी। बेबी सिटिंग, विडियो शॉप में काम करती रहीं। इसी दौरान वीजा के काम को लेकर ज्योति का अक्सर वीजा दफ्तर और कोर्ट में आना-जाना भी होता था। यहां ज्योति ने देखा कि वीजा प्रोसेसिंग कराने के लिए लोग मुंहमांगी रकम देने को तैयार रहते थे। यहीं से उनके दिमाग में वीजा प्रोसेसिंग के लिए कंसल्टिंग कंपनी खोलने का आइडिया आया। लेकिन फिर हालात कुछ ऐसे बने कि डेढ़ साल के संघर्ष के बाद उन्हें भारत लौटना पड़ा।
दोबारा गईं अमेरिका और बनाई खुद की कंपनी
भारत लौटने के बाद भी ज्योति ने हिम्मत नहीं हारी। कुछ समय बाद वह दोबारा अमेरिका गईं। वहां वीजा प्रोसेसिंग के लिए एक कंसल्टिंग कंपनी खोली। धीरे-धीरे ज्योति का ये काम चलने लगा जिसके बाद उन्होंने वीजा मामले में कंसल्टिंग देने के लिए एक सॉफ्टवेयर बनाया और इसे कंपनी में बदल दिया। ज्योति की बनाई इस कंपनी की सॉफ्टवेयर सॉल्युशंस के रियालंस समेत कई बड़ी कंपनी क्लाइंट है। ज्योति की कंपनी की वैल्यू करीब 15 मिलियन अमेरिकी डॉलर से ज्यादा है। उनकी कंपनी अमेरिका के फोनिक्स में है। अब उनके पास अमेरिका में 6 घर के आलावा भारत में भी उनकी कई महंगी संपत्तियां हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.