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दिव्यांगता के बाद भी नहीं मानी हार, आज दूसरों को आत्मनिर्भर बना रहीं हैं सुमनलता

Published - Wed 23, Oct 2019

सुमनलता ने दिव्यांगता को कभी अपने सपनों की राह में बाधा नहीं बनने दी। तमाम परेशानियों के बीच सुमनलता ने पहले ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की फिर खुद के लिए रोजगार का साधन जुटाया। आज महिला सशक्तिकरण की मिसाल बन चुकीं सुमनलता दूसरों को रोजगार मुहैया कर रही हैं।

Sumanlata

हल्द्वानी। मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है। ये लाइनें एकदम सटीक बैठती हैं हल्द्वानी के डहरिया में रहने वालीं सुमनलता कश्यप पर। इन्होंने दिव्यांग होने के बावजूद कभी हार नहीं मानी। सुमनलता ने दिव्यांगता को कभी अपने सपनों की राह में बाधा नहीं बनने दी। तमाम परेशानियों के बीच सुमनलता ने पहले ग्रेजुएशन तक की पढ़ाई की फिर खुद के लिए रोजगार का साधन जुटाया। आज महिला सशक्तिकरण की मिसाल बन चुकीं सुमनलता दूसरों को रोजगार मुहैया कर रही हैं। सुमनलता अब तक 5 हजार से अधिक महिलाओं को सिलाई, बुनाई, कढ़ाई का प्रशिक्षण देकर उन्हें आत्मनिर्भर बना चुकी हैं। यह क्रम आज भी निरंतर जारी है।

माता-पिता पर नहीं बनना चाहती थीं बोझ
सुमनलता कश्यप बचपन से ही दोनों पैरों से अक्षम हैं। इसके बावजूद उन्होंने कभी भी हिम्मत नहीं हारी। तमाम दिक्कतों के बीच ग्रेजुएशन किया। फिर खुद का रोजगार करने का मन बनाया। सुमनलता नहीं चाहती थीं कि वह अपने माता-पिता पर बोझ बनें। इसी सोच ने उन्हें कुछ नया करने का जज्बा दिया और आत्मनिर्भर बनने का उनका इरादा और मजबूर हो गया। इसी बीच उन्हें  सिलाई-कढ़ाई सीखाने के लिए लगाए गए एक कैंप की जानकारी मिली तो वे वहां प्रशिक्षण लेने पहुंच गईं। कैंप में प्रशिक्षण पूरा करने के बाद सुमनलता ने एक पुरानी सिलाई मशीन खरीदी और सिलाई, कढ़ाई का काम शुरू कर दिया। जल्द ही इससे उनका अपना खर्चा निकलने लगा। इसके बाद सुमनलता ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। सुमनलता का कारोबार बढ़ा तो उन्होंने अन्य महिलाओं को भी आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्हें भी प्रशिक्षण देने की ठानी। महिलाओं को सिलाई के गुर सीखाने के साथ ही सुमनलता करीब 50 बच्चों को किताबी शिक्षा भी देती हैं।

मदद के लिए कभी किसी के सामने नहीं फैलाया हाथ
सुमनलता ने बताया कि दिव्यांग होने के बावजूद आज तक मदद के लिए उन्होंने किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया। ना ही सरकार और समाज कल्याण विभाग से उन्हें आज तक कोई मदद मिली। उन्होंने बताया कि ग्रेजुएशन के बाद यदि वो चाहती तो नौकरी कर सकती थीं, लेकिन आत्म सम्मान और दूसरे महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उन्होंने स्वरोजगार को चुना। जिसके बाद से वो स्वरोजगार के जरिये सैकड़ों महिलाओं को रोजगार दिलाकर उनके आर्थिक उत्थान में अहम भूमिका निभा रही हैं। सुमनलता ने एक संस्था के सहयोग से अपना स्वरोजगार प्रशिक्षण खोला है।