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अपने उत्पीड़न से सीखकर सुमित्रा ने महिलाओं के लिए शुरू की मुहिम

Published - Mon 07, Oct 2019

सहारनपुर की सुमित्रा देवी आज बहत्तर साल की हो चुकी हैं, लेकिन उम्र के इस दौर में भी वो घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाओं के लिए संघर्ष कर रही हैं।

sumitra devi

उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में एक छोटा सा गांव है डिगोली। इस गांव में दशकों पहले सुमित्रा देवी नाम की एक नवविवाहिता को उसके ससुराल वालों ने बेहद परेशान किया और वह घरेलू हिंसा का शिकार रहने लगीं। इस दर्द को सहते हुए सुमित्रा देवी ने पीड़ित महिलाओं के लिए आवाज उठाई और उनके लिए लड़ भी रही हैं। सुमित्रा देवी के प्रयासों की बदौलत ही उन्हें नोबल पुरस्कार के लिए नामित भी किया जा चुका है।

सुमित्रा का जीवन बेहद मुश्किलों में गुजरा। बचपन में ही पिता का साया सिर से उठ गया। महज पंद्रह साल की उम्र में भी वो ब्याह दी गईं। ससुराल में भी दुख कम न हुआ। रोज पति और ससुराल वालों के हाथों पिटतीं।  ससुराल में उनकी पिटाई की एक ही वजह होती कि वह दहेज में कुछ लेकर नहीं आई थीं। मां मजदूरी करती थीं, तो वो दहेज की मांग को पूरा नहीं कर सकती थीं। अपने ऊपर होते जुल्म से परेशान सुमित्रा के अंदर प्रतिशोध की आग भड़कने लगी। वो महिलाओं की सामूहिक बैठकों में जाने लगी और अपने स्तर पर जानकारी जुटाने लगीं। खुद के लिए ससुरालियों से तो भिड़ी हीं, साथ ही पीड़ित महिलाओं के लिए भी आवाज उठाना शुरू कर दिया।  इस तरह कुछ साल बाद पुलिस अधिकारी उनके प्रतिरोध को जायज मानते हुए मामले निपटाने में उनसे मदद लेने लगे। दशकों पहले जब वह सहारनपुर में महिला समाख्या की ओर से आयोजित 'नारी अदालत' से जुड़ीं, वह एक बड़ी शख्सियत के रूप में पहचानी जाने लगी थीं। वर्ष 2005 में सुमित्रा देवी को नोबेल पुरस्कार के लिए भी नामित किया गया था। वह आज भी खास कर अपने इलाके की पीड़ित-परेशान तमाम महिलाओं को लेकर थाना, कचहरी, स्वास्थ्य और शिक्षा विभाग, ग्राम पंचायतों के चक्कर लगाती रहती हैं।
सुमित्रा देवी अब हजारों महिलाओं के न्याय की लड़ाई लड़ती हुई जिले के पांच ब्लॉक में पांच नारी अदालतों में होने वाली सुनवाई में भाग लेकर खुद को गौरवान्वितमहसूस करती हैं। 'समाख्या' के उद्देश्य हैं- महिलाओं की आत्मछवि तथा आत्मविश्वास का विकास, उनके लिए ज्ञान और सूचना उपलब्ध कराने में पहले, प्रबंधन की विकेंद्रीकृत तथा सहभागी पद्घति तैयार करना, महिला संघों को गांवों में शैक्षिक कार्यकलापों की सुविधा, उनके लिए शिक्षा के अवसर उपलब्ध कराना और औपचारिक-अनौपचारिक शिक्षा कार्यक्रमों में महिलाओं तथा लड़कियों की अधिकाधिक सहभागिता।
सुमित्रा देवी की उम्र इस समय 72 साल हो चुकी है। वो अनपढ़ हैं, लेकिन हौंसले देखकर वो किसी भी तरह अनपढ़ नहीं लगती। इस उम्र में वो घरेलू हिंसा की शिकार महिलाओं, दहेज उत्पीड़ित महिलाओं के लिए लड़ रही हैं और स्वयं ग्राम पंचायत से लेकर थाना, कोर्ट-कचहरी तक में न्याय दिलाने में जुटी हैं। वह 1990 के दशक से 'महिला समाख्या' की राहों पर चलती हुई हजारों महिलाओं के शिक्षा और स्वास्थ्य सम्बंधी कार्यों में भी मदद कर चुकी हैं। महिला समाख्या के संयोजन में अभी पिछले महीने लखनऊ में जब 'नई पहचान' नाम से घरेलू हिंसा पीड़ित महिलाओं का राज्य स्तरीय सम्मेलन हुआ तो उसमें राज्य के 19 जनपदों की लगभग सात सौ महिलाओं में एक नाम नेतृत्व के तौर पर सुमित्रा देवी का भी रहा।