देर से खेलना शुरू करने के बावजूद उन्होंने बहुत तेजी से हॉकी की स्किल्स सीखी। अपने कौशल को और बेहतर करने के लिए उन्होंने ग्वालियर में मध्य प्रदेश महिला हॉकी अकादमी का रुख किया। यह उनकी मेहनत और प्रतिभा ही थी कि महज 5 साल के अंदर ही वह अंतरराष्ट्रीय लेवल पर खेलने लगीं।
सुशीला चानू 7 साल की उम्र में एक लाइव फुटबॉल मैच देखने गईं और वहीं से उनका मन स्पोर्ट की ओर आकर्षित हो गया। उनका पूरा परिवार खेल से बहुत प्यार करता है। इसलिए सभी ने उनका पूरा सपोर्ट किया। इन सब के बीच काफी समय निकल गया। 11 साल की उम्र में सुशीला ने पहली बार हॉकी स्टिक पकड़ी। देर से खेलना शुरू करने के बावजूद उन्होंने बहुत तेजी से हॉकी की स्किल्स सीखी। अपने कौशल को और बेहतर करने के लिए उन्होंने ग्वालियर में मध्य प्रदेश महिला हॉकी अकादमी का रुख किया। यह उनकी मेहनत और प्रतिभा ही थी कि महज 5 साल के अंदर ही वह अंतरराष्ट्रीय लेवल पर खेलने लगीं। 2008 में उन्हें जूनियर एशिया कप में खेलने का मौका मिला और टीम ने ब्रांज मेडल जीता। इसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। जूनियर लेवल पर उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि 2013 में आई जब उन्होंने जर्मनी के मोनचेंग्लादबाक में आयोजित जूनियर विश्व कप में अपनी कप्तानी में टीम को कांस्य पदक जिताया। रियो ओलंपिक में भी वह टीम की कप्तान थी और अब टोक्यो ओलंपिक में हिस्सा लेने जा रही टीम का भी हिस्सा हैं।
उनके करियर के सबसे बुरे दौर की बात करें तो 2017 की शुरुआत में घुटने की चोट उनके लिए सबसे ज्यादा परेशान करने वाली रही। जिसे केवल सर्जरी से ही ठीक किया जा सकता था। इस दौरान भी उन्होंने हिम्मत से काम लिया। सर्जरी के बाद व्यायाम और फिजियोथेरेपी में मेहनत की और महज 8 सप्ताह में प्रशिक्षण पर लौट आईं। अब टोक्यों ओलंपिक में खेलने जा रही सुशीला ने लॉकडाउन में मजबूरन मिले ब्रेक के दौरान अपनी कमियों में सुधार की लिए खूब मेहनत की। जब खेल ग्राउंड पर नहीं खेला जा रहा था तब टीम ने विरोधी टीमों के वीडियो देखकर खेल की समीक्षा की। पूरी टीम की नजर ओलंपिक में पदक जीतकर इतिहास रचने पर है।
वह कहती हैं, 'टोक्यो ओलंपिक हम सभी के लिए एक बहुत बड़ा टूर्नामेंट है। इसके लिए हमने और हमारी टीम ने खूब मेहनत की है। ताकि हम उस लक्ष्य को पा सके जिसे टीम ने निर्धारित किया है।' सुशीला बहुत ही प्यार से बात करती हैं। वह 2010 से सेंट्रल मुंबई रेलवे में जूनियर टिकट कलेक्टर के रूप में काम कर रही हैं। उन्हें यह नौकरी स्पोर्ट कोटे से मिली है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.