गरीबी और लाचारी बचपन से ही देखी, लेकिन फिर भी अपने सपने को मरने नहीं दिया। उसको पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत की और हाल ही में जब राष्ट्रपति के हाथों अर्जुन पुरस्कार पाया, तो पश्चिम बंगाल की इस युवा खिलाड़ी स्वप्ना बर्मन ने दिखा दिया कि बेटियों में अगर कुछ करने की चाह हो, तो उसे कोई भी नहीं रोक सकता।
नई दिल्ली। पिता रिक्शा चालक और मां मजदूर। गरीबी और लाचारी बचपन से ही देखी, लेकिन फिर भी अपने सपने को मरने नहीं दिया। उसको पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत की और हाल ही में जब राष्ट्रपति के हाथों अर्जुन पुरस्कार पाया, तो पश्चिम बंगाल की इस युवा खिलाड़ी स्वप्ना बर्मन ने दिखा दिया कि बेटियों में अगर कुछ करने की चाह हो, तो उसे कोई भी नहीं रोक सकता।
पश्चिम बंगाल का जलपाईगुड़ी इलाका सुविधाओं के नाम पर बहुत ज्यादा समृद्ध नहीं है। वहां आज भी लोग परेशानियों और गरीबी से जूझ रहे हैं। इसी क्षेत्र की बेटी स्वप्ना बर्मन को जब राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने अर्जुन अवार्ड से सम्मानित किया, तो पूरा देश इस बेटी के जज्बे की सराहना कर रहा था। उनका जन्म 29 अक्टूबर 1996 को एक ऐसे परिवार में हुआ था जो भारत की गरीबी रेखा से नीचे जाता है। स्वप्ना का बचपन मुश्किलों में बीता। परिवार की कोई निश्चित आय न होने के कारण स्वप्ना न तो ठीक से पढ़ पातीं न खा पातीं। लेकिन इस बुरे दौर में भी इस जूनूनी लड़की ने खेलों में भविष्य बनाने की ठानी। स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद कोलकाता के चारुचंद्र कॉलेज में एडमिशन लिया। वह हेप्टाथलॉन खिलाड़ी बनने की तैयारियों में जुट गईं। चूंकि परिवार मुश्किलों से गुजर रहा था, तो कोचिंग के लिए पैसा नहीं था। पिता रिक्शा चलाते थे और मां चाय के बागान में पत्तियां तोड़ती हैं। उनकी प्रतिभा को देखकर एक स्थानीय सुकांत सिन्हा ने कोचिंग देना शुरू किया। कोचिंग के साथ-साथ स्वप्ना को हर तरह की मदद दिलाई गई। स्वप्ना को सबसे अधिक संघर्ष जूतों के लिए करना पड़ा। उनके दोनों पैरों में छह-छह उंगलियां है। इसी कारण जूते जल्दी फट जाते थे और उनके पास इतना पैसा नहीं था कि वो जूते खरीद सकें। वह ऊंची कूद के प्रशिक्षण के लिए कोच सुभाष सरकार के पास गईं लेकिन उन्होंने मना कर दिया। बाद में स्वप्ना के जोश को देखते हुए उन्होंने स्वप्ना को कोचिंग देने का फैसला लिया। 2014 में, वह दक्षिण कोरिया के इंचियोन में आयोजित एशियाई खेलों 2014 में 5 वें स्थान पर रहीं।
उन्हें उनकी प्रतिभा की पहचान के लिए 2016 में 1.5 लाख की छात्रवृत्ति दी गई। भुवनेश्वर के कलिंगा स्टेडियम में आयोजित 2017 एशियन एथलेटिक्स चैंपियनशिप में स्वप्ना को हेप्टाथलॉन में पहला स्थान मिला। उसने पटियाला फेडरेशन कप 2017 में भी स्वर्ण पदक जीता। एथलीट ने अपने ही कई रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। जकार्ता, इंडोनेशिया में आयोजित 2018 एशियाई खेलों में, स्वप्ना ने महिलाओं के हेप्टाथलॉन स्वर्ण (100 मीटर, हाई जंप, 200 मीटर, शॉट पुट, जेवलिन थ्रो, लॉन्ग जम्प और 800 मीटर) जीता, जिससे एशियाई में भारत के स्वर्ण पदक में वृद्धि हुई। खेल। वह एशियाई खेलों में स्वर्ण जीतने वाली पहली भारतीय हेप्टेथलीट बन गईं। लंबे समय तक स्वप्ना को कोचिंग और जरूरी सुविधाओं के लिए संघर्ष करना पड़ा। 2017 राहुल द्रविड एथलीट मेंटरशिप प्रोग्राम, प्रोर्ट्स गो स्पोटर्स और ओएनजीसी द्वारा नियमित वजीफा मिलने के बाद से उनका संघर्ष कुछ कम हुआ। राष्ट्रीय स्तर के खेलों में भाग लेने के लिए स्वप्ना जुटी रहीं। चोट लगने के बावजूद भी उन्होंने भाग लेना बंद नहीं किया क्योंकि उन्हें जीतकर पुरस्कार लाना था, ताकि पुरस्कार राशि से वो अपना घर चला सकें। बीच में पिता को बीमारी हो गई, तो वो बिस्तर पर आ गए, लेकिन स्वपना ने हार नहीं मानी। अपनी जिद और लगन के बल पर ही स्वप्ना ने एशियाड खेलों में गोल्ड मेडल जीता है। देश की इस बेटी ने जब राष्ट्रपति के हाथों अर्जुन अवार्ड लिया, तो सभी इस बेटी के जज्बे के आगे झुक गए। स्वप्ना ने दिखा दिया कि अगर मेहनत की जाए, तो मुश्किल समय में भी बेटियां अपनी मंजिल पा ही लेती हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.