दीप ग्रेस के कोच तेज कुमार जेस ने उनकका चयन किसी हॉकी स्किल की वजह से नहीं बल्कि उनकी कद-काठी और शारीरिक क्षमताओं के आधार पर किया था। इसके बाद उन्होंने साल 2006 में सुंदरगढ़ स्पोर्ट्स हॉस्टल को ज्वाइन किया। यहीं पर तेज कुमार ने उन्हें हॉकी के गुर सिखाए। इसी दौरान उनके स्कूल में साई ने एक सिविर का आयोजन किया। जिसमें प्रतिभावान खिलाड़ियों का चयन होना था और ग्रेस को इसी दौरान चुन लिया गया।
लगातार दूसरे ओलंपिक में खेलने जा रहीं दीप ग्रेस एक्का का जन्म उड़ीसा में एक साधारण से आदिवासी परिवार में हुआ। हॉकी उनकी रगों में दौड़ती है- उनके पिता, चाचा और बड़े भाई हॉकी के स्थानीय खिलाड़ी हैं। उनका बचपन हॉकी के आस-पास ही बीता। वह शुरू में गोलकीपर बनना चाहती थीं। गोलकीपिंग करते समय कई बार उन्हें बॉल लग जाती थी, लेकिन वह अपना दर्द छुपा लेती थीं। ताकि किसी को पता न चले। लेकिन चूंकि उनके भाई और मामा गोलकीपर हुआ करते थे तो उन्हें सब पता चल जाता था और तब उन्होंने दीप को गोलकीपिंग करने की बजाय डिफेंडर के तौर पर खेलने के लए प्रेरित किया। वह बचपन से ही खेल-कूद में आगे थीं, उन्हें हॉकी ही नहीं बल्कि अन्य खेल जैसे फुटबॉल और कबड्डी भी बहुत पसंद थी। लेकिन जब एक गेम चुनने की बारी आई तो उन्होंने दो बार नहीं सोचा और सीधे हॉकी स्टिक उठा ली। उनके कोच तेज कुमार जेस ने उनको हॉकी खेलते देखा। वह ग्राउंड पर उनकी शारीरिक क्षमता देखकर प्रभावित हो गए। उन्होंने दीप का चयन हॉकी की स्किल की वजह से नहीं बल्कि उनकी कद-काठी और शारीरिक क्षमताओं के आधार पर किया था। इसके बाद जो हुआ वह इतिहास है। उन्होंने साल 2006 में सुंदरगढ़ स्पोर्ट्स हॉस्टल को ज्वाइन कर लिया। यहीं पर तेज कुमार ने उन्हें हॉकी के गुर सिखाए। इसी दौरान उनके स्कूल में साई ने एक सिविर का आयोजन किया। जिसमें प्रतिभावान खिलाड़ियों का चयन होना था और ग्रेस को इसी दौरान चुन लिया गया। साई में चयन के बाद 13 साल की उम्र में उन्होंने स्टेट लेवल पर खेलना शुरू कर दिया। 16 साल की उम्र में वह सोनीपत में सीनियर नेशनल में खेली। अब वह टोक्यो ओलंपिक में हिस्सा लेने जा रही हैं। इस ओलंपिक में हिस्सा लेते ही वह दो ओलंपिक में भाग लेने वाली ओडिशा की पहली महिला खिलाड़ी बन जाएंगी।
साई में चयन के बाद कोच लुसिला एक्का और पीके सारंगी के नेतृत्व में उन्होंने तेजी से तरक्की की, हॉस्टल टीम और फिर विभिन्न राज्य टीमों का हिस्सा रहीं। घरेलू सर्किट में प्रभावशाली प्रदर्शन के बाद उनका चयन राष्ट्रीय शिविर में कर लिया गया। 2011 में बैंकाक में अंडर -18 एशिया कप में भारत के लिए उन्होंने डेब्यू किया, जहां पर भारत ने कांस्य पदक जीता, ग्रेस को उसी साल अर्जेंटीना के दौरे के लिए सीनियर टीम में चुल लिया गया। उन्होंने जर्मनी में खेले गए एतिहासकि एफआईएच जूनियर महिला हॉकी विश्व कप 2013 में देश का पहला कांस्य पदक जिताने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
ग्रेस कहती हैं कि दूसरी बार ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करने का अवसर पाकर बहुत अच्छा लग रहा है। ग्रेस 2016 में रियो ओलंपिक में हिस्सा लेने वाली महिला हॉकी टीम की भी सदस्य थीं। हालांकि रियो ओलंपिक में महिला हॉकी टीम ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया था। वह चार मैच हारी थी और सिर्फ एक ड्रा करवा पाई थी और लीग तालिका में सबसे नीचे रही थी।
इस बार ग्रेस को भरोसा है कि उनकी टीम बेहतर प्रदर्शन करेगी। वह कहती हैं, 'टीम में काफी अनुभवी खिलाड़ी है और टोक्यो खेलों से पहले आत्मविश्वास से भरी है। हम रियो ओलंपिक से काफी बेहतर प्रदर्शन करेंगे।'
वह अब तक 200 से अधिक अंतरराष्ट्रीय मैच खेल चुकी हैं। जिसमें दो राष्ट्रमंडल खेलों (ग्लासगो 2014 और गोल्ड कोस्ट 2018), दो एशियाई खेलों (इंचियोन 2014 और जकार्ता 2018) और 2016 रियो ओलंपिक में भी शामिल है।
उनकी सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धियों में 2014 एशियाई खेलों का कांस्य पदक और 2018 एशियाई खेलों से रजत, साथ ही महिला एशिया कप का स्वर्ण (जापान 2017) पदक शामिल हैं। वर्तमान में पश्चिम रेलवे (मुंबई) में कार्यरत ग्रेस को पिछले साल बीजू पटनायक पुरस्कार से सम्मानित किया गया था और 2019 में दूसरे स्पोर्टस्टार एसेस अवार्ड्स में टीम स्पोर्ट्स में स्पोर्ट्सवुमन ऑफ द ईयर का खिताब मिला था।
टोक्यो में पोडियम तक पहुंचने की उम्मीद के बारे में ग्रेस कहती हैं 'जब हम ओलंपिक में भाग ले रहे हैं, तो हम निश्चित रूप से पदक जीतना चाहते हैं। हम प्रतिद्वंदी की ताकत के हिसाब से हर मैच को एक नई चुनौती की तहर ही खेलेगें। टीम का हर सदस्य टोक्यो में अपना सर्वश्रेष्ठ देने के लिए दृढ़ है।'
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.