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टीचर ने कहा था-तुमसे ना हो पाएगा पर सोना झरिया मिंज ने कर दिखाया

Published - Mon 15, Jun 2020

रांची की प्रोफेसर सोना झरिया मिंज सिद्धो-कान्हू मुर्मू विवि दुमका की नई वीसी नियुक्त हुई हैं। डॉ. इंदु धान के बाद वे दूसरी आदिवासी महिला हैं, जो इस पद पर आसीन हुई हैं और संभवत: अभी देश में एकमात्र आदिवासी महिला हैं, जो किसी भी यूनिवर्सिटी में कुलपति हैं।

Sona Jharia Minz

कहते हैं पूत के पांव पालने में ही नजर आ जाते हैं। सोना झरिया मिंज ने भी छोटी उम्र में ही जतला दिया था कि वो किसी से कम नहीं हैं। झारखंड में आदिवासी जनजाति में उनका जन्म हुआ। स्कूल के दिनों में उनके साथ भेदभाव होता था। सोना गणित विषय में बहुत होशियार थीं। तीन बार 100 फीसदी स्कोर करने के बाद भी उनके गणित के अध्यापक उससे खुश नहीं थे। उन्हें लगता था कि एक आदिवासी और ऊपर से वो भी एक लड़की.. भला ये गणित विषय को लेकर क्या करेगी। एक दिन इसी गणित के टीचर ने सोना को नसीहत दे डाली कि वह ग्रेजुएशन में मैथ्स ना पढ़े, ये उनसे ना हो पाएगा।
मेहनती और दिमाग से तेज सोना झरिया मिंज के दिल में यह बात चुभ गई, लेकिन वे हताश नहीं हुईं बल्कि उन्होंने गणित में और अधिक पढ़ने का दृढ़ संकल्प ले लिया। आदिवासी होने के कारण अंग्रेजी स्कूल में उनकी पढ़ाई नहीं हो पाई तो उन्होंने रांची के हिंदी मीडियम स्कूल में पढ़कर इतना अच्छा स्कोर किया कि उनकी हर कोई तारीफ करने लगा। 
 
गणित विषय में की एमएससी
सोना यहीं पर ही नहीं रूकीं। अभी तो और भी कई मंजिलें उन्हें तय करनी थीं। अतः वह झारखंड में निकलकर चेन्नई जा पहुंचीं और यहां के महिला क्रिश्चियन कॉलेज में उन्होंने गणित में स्नातक की पढ़ाई की और फिर मद्रास क्रिश्चियन कॉलेज में गणित में ही एमएससी की। मिंज 1986 में देश की राजधानी दिल्ली आ गईं और यहां जवाहर लाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) में उन्होंने कंप्यूटर साइंस विषय चुना। जिस समय भारत में कंप्यूटर पैर पसार रहा था उस समय उन्होंने आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस पर पीएचडी की।
 
सीढ़ी दर सीढ़ी ऊपर बढ़ती गईं
जेएनयू में कंप्यूटर सांइस में एमफिल और पीएचडी करने के बाद सोना वहां के ‘स्कूल ऑफ कंप्यूटर एंड सिस्टम साइंस’ विभाग में प्रोफेसर बन गईं। वे 2009-11 तक जेएनयू की डीन रहीं और 2018-19 में जेएनयू टीचर्स एसोसिएशन की अध्यक्ष रहीं। उन्होंने 28 साल जेएनयू में काम किया। जेएनयू में प्रोफेसर नियुक्त होने से पहले उन्होंने मध्यप्रदेश के बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय और मदुरई के कामराज यूनिवर्सिटी में भी असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर काम किया था। डेटा एनालिस्ट के तौर पर उनकी खास पहचान हैं और इसमें उन्हें महारत हासिल है। इस विषय पर उन्होंने अनेक व्याख्यान भी दिए हैं।
 
पिता का सीना हुआ चौड़ा
गुमला के जारी प्रखंड के सीकरी पंचायत के आवरा टोली गांव की बेटी सोना झरिया मिंज अपनी इस सफलता को अपने पिता के नाम करती हैं। झारखंड आंदोलन के बौद्धिक अगुवा और जाने-माने स्वतंत्रता सेनानी निर्मल मिंज का सीना उनकी इस बड़की बिटिया ने चौड़ा कर दिया है। मिंज की तीन छोटी बहने हैं। 93 साल के हो चुके डॉक्टर निर्मल मिंज ने हजारीबाग के सेंट कोलंबा से पढ़ाई की। उन्होंने रांची के गोस्सनर कॉलेज की स्‍थापना की। यहां वे संस्थापक प्राचार्य एवं एनडब्लू जी एल चर्च के प्रथम बिशप रहे। उन्होंने 'कहानी आदिवासी राजनीति की' नाम से किताब लिखी। वह उरांव जाति की बोलियों, खासकर कुडुख आदिवासी भाषा के शिक्षक हैं। कुडुख के विकास में योगदान के लिए उन्हें सरकार ने 2016 में भाषा सम्मान ने नवाजा था।
 
अब आगे क्या
सोना झरिया मिंज कहती हैं, आजकल स्कूलों-कॉलेजों में एजुकेशन का काम नहीं होता, सिर्फ इन्फॉर्मेशन पहुंचाने का काम हो रहा है। मैं जेएनयू में अपने स्टूडेंट्स को बोलती रही हूं, ‘लिटरेसी हैपैन टू इनसाइड द क्लासरूम एंड एजुकेशन आउटसाइड’। यानी क्लासरूम की पढ़ाई से छात्र सिर्फ साक्षर हो रहे हैं, शिक्षा तो उन्हें बाहर ही मिल रही है। साक्षरता से आगे बढ़कर शिक्षा की ओर जाने का समय आ गया है। ट्राइबल कल्चर, जो हमारे आदिवासी-मूलवासियों के मूल संस्कृति है, उसे लेकर शिक्षा को आगे बढ़ाया जाए। कितनी अच्छी बातें हमारी संस्कृति में छुपी है, उन्हें शिक्षा से जोड़कर पढ़ाई करवाऊं, यही मेरा सपना है।