बिकरू कांड में शहीद हुए तीन पुलिसकर्मियों की विधवाओं ने एसआई के लिए आवेदन किया है। सभी अपराजिताएं फिजिकल की तैयारी के लिए छोटे-छोटे बच्चों को घर में छोड़कर रोज दौड़ने जाती हैं।
कानपुर। ‘दुखों का पहाड़ सिर पर है...तो क्या, तुम तो अपराजिता हो। जिम्मेदारियों का बोझ कंधों पर है...तो क्या, तुम तो अपराजिता हो। तुमने तो बड़े से बड़ा दुख हंसते-हंसते सहा है, तुम्हारी इस हिम्मत से तो हारा जहां है।’ ऐसी ही हिम्मत दिखाई है बिकरू कांड में शहीद हुए पुलिसकर्मियों की पत्नियों ने। दुख की घड़ी में भी इन विधवाओं ने अपने पति के अधूरे सपनों को पूरा करने की ठानी है। शहीद एसआई अनूप कुमार सिंह की पत्नी नीतू सिंह, आरक्षी सुल्तान सिंह की पत्नी उर्मिला सिंह और राहुल कुमार की पत्नी दिव्या ने एसआई पद के लिए आवेदन किया है। हालांकि इनके सामने भी आम अभ्यर्थियों की तरह लिखित और शारीरिक परीक्षा पास करने की चुनौती है लेकिन इन्होंने हिम्मत नहीं हारी है। छोटे-छोटे बच्चों को घर पर छोड़कर सवेरे-सवेरे निकल पड़ती हैं दौड़ लगाने ताकि शारीरिक परीक्षा की बाधा को पार कर सकें।
पति की शहादत पर बहाए आंसुओं ने पत्नी के चेहरे पर तो कभी न मिटने वाली काली लकीरें खींच दीं हैं, लेकिन एक मां के जज्बे को हिला तक नहीं पाएं। पति की यादों को अपने मन में और पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ कंधे पर रखकर वह नौकरी पाने के बीच में आने वाली हर बाधा को पार करने को तैयार हैं। कभी घर से अकेली बाहर न निकलने वाली यह महिलाएं बच्चों के लिए घर की दहलीज लांघने को तैयार हैं। हालांकि एसआई पद के लिए उनको भी सामान्य लोगों की तरह लिखित परीक्षा और फिजिकल टेस्ट पास करना होगा, जिसकी एक टीस मन में है। उनका कहना है कि फिजिकल टेस्ट में पास होने के लिए न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रूप से स्वस्थ होना भी बेहद जरूरी है। लेकिन अभी न तो वह शारीरिक फिट हैं और न ही मानसिक। उनकी मांग हैं कि सरकार अपनी सुविधानुसार उनको थोड़ी रियात दे दें। अमर उजाला से बातचीत कर साझा किया अपना दर्द...
जो सपने बच्चों के लिए पति ने देखे उन्हें मैं पूरा करूंगी : नीतू सिंह
हर दिन उन्होंने बस यही सपना देखा, बेटी को डॉक्टर बनाऊंगा और बेटे को क्रिकेटर बनाऊंगा। बस अब उनके सपने को पूरा करना ही मकसद है। उसके लिए मुझे चाहे कितनी भी बाधाओं से क्यों न गुजरना पड़े। ये कहते हुए शहीद एसआई अनूप की पत्नी नीतू सिंह का गला भर गया। अपनी ससुराल इलाहाबाद में रह रहीं नीतू कहती हैं इस घटना के बाद से सब कुछ बिखर गया है। आंखों में आंसू होते हैं, लेकिन बच्चों के लिए सामान्य रहती हूं। बेटा पांच साल का और बेटी 10 साल की है। बेटी तो समझती है, लेकिन बेटा अक्सर कहता है कि पापा नहीं आए। बेटे के सवाल झकझोर देते हैं। ऐसे में फिजिकल टेस्ट पार करना बेहद मुश्किल है, लेकिन अगर सरकार की यही मंशा है तो नौकरी पाने, बच्चों के बेहतर भविष्य के लिए खुद को तैयार करूंगी।
संघर्षों का दौर शुरू हो गया, खुद को तैयार कर रही हूं : उर्मिला सिंह
आरक्षी सुल्तान सिंह की पत्नी उर्मिला कहती हैं कि जीवन में संघर्ष का दौर शुरू हो गया है, लेकिन अब हर संघर्ष के लिए तैयार हूं। खुद तो तैयार हो रही हूं और अपनी पांच साल की बेटी को भी धीरे-धीरे इसके लिए तैयार कर रही हूं। फिजिकल टेस्ट पास करने के लिए रोजाना सुबह दौड़ने जाती हूं। मानसिक मजबूती पर भी ध्यान दे रही हूं। उर्मिला का मायका उरई में है और झांसी में ससुराल है। कहती हैं कि पहले कभी नौकरी नहीं की न ही कभी फिटनेस पर ध्यान दिया। सरकार ने अपने सारे वायदे निभाए हैं, लेकिन अगर भर्ती में भी थोड़ी छूट दे दें तो अच्छा होगा।
सात माह की बच्ची को दूध पिलाकर रोज जाती हूं दौड़ने : दिव्या
सात महीने की बेटी है। पति जब शहीद हुए थे तो वह महज दो माह की थी। मेरी पीड़ा और मानसिक अवसाद को कोई नहीं समझ सकता। लेकिन यह जानती हूं कि जो कुछ करना है खुद करना है। यह कहते हुए शहीद राहुल की पत्नी दिव्या फोन पर ही फफक पड़ीं। अपनी ससुराल दिल्ली में रह रहीं दिव्या कहती हैं कि बेटी दूध पीती है, खुद भी पूरी तरह से स्वस्थ नहीं हूं। फिर भी फिजिकल टेस्ट पास करने का जुनून है। इसलिए रोजाना दौड़ने जाती हूं। बेटी को दूध पिलाकर पार्क में दौड़ने जाती हूं। पैरों में सूजन आ जाती है। कभी-कभी तो बेटी को भी गोद में उठाना मुश्किल हो जाता है। बहुत रोना आता है, लेकिन बेटी के भविष्य के लिए एक बार फिर से नए जोश से उठ जाती हूं। 13 महीने की शादी में पति के साथ मुश्किल से दो-तीन महीने ही रह पाई थीं। उनका सपना एसआई बनने का था, मैं उसे पूरा करूंगी। दिव्या का मायका गाजियाबाद में है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.