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नेहा गोयल गरीबी से लड़कर गोल तक पहुंची

Published - Wed 07, Jul 2021

टोक्यो ओलंपिक में भारत की तरफ से टीम हॉकी में प्रतिनिधित्व करने वाली भारत की महिला हॉकी टीम की मिड फिल्डर नेहा गोयल ने गरीबी से लड़ाई लड़ी और आगे बढ़ती रहीं। उन्होंने अपनी मजबूरी को हौसला बनाया और हार नहीं मानी। आज वो ओलंपिक जैसे बड़े खेल आयोजन में भारतीय टीम का हिस्सा हैं।

neha goyal

नई दिल्ली। ओलंपिक जैसे आयोजन में भाग लेने का सपना हर खिलाड़ी का होता है और यहां तक वही पहुंचता है, जो मेहनत करता है। कुछ का सपना पूरा होता है तो कुछ खिलाड़ी इस सपने को पूरा नहीं कर पाते, लेकिन जो मेहनत करते हैं वो आगे बढ़ते हैं। ऐसी ही एक खिलाड़ी हैं भारतीय हॉकी टीम की नेहा गोयल। हरियाणा की नेहा भारतीय महिला हॉकी टीम की मिड फिल्डर हैं। नेहा के जीवन में हॉकी एक बेहद अहम पड़ाव है। जब वो कक्षा छह में थीं, तो उनकी एक सहेली ने उन्हें हॉकी खेलने के लिए प्रेरित किया और हाथ में हॉकी स्टिक थमा दी। तीन बहनों में सबसे छोटी नेहा हॉकी में आगे बढ़ना चाहती थीं, लेकिन परिवार के हालात ठीक नहीं थे। पिता शराब बहुत पीत थे। आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, तो वो सपने को मन में ही मार करकर रह गईं। एक दोस्त ने बताया कि अगर वो हॉकी खेलने के लिए आगे बढ़ती हैं, तो उन्हें अच्छे जूते, कपड़े पहनने को मिलेंगे। नेहा ने उस समय अच्छे कपड़े और जूतों के लिए हॉकी खेलना शुरू किया। एक बार उन्होंने एक जिला स्तर का मुकाबला जीता, तो उन्हें दो हजार रुपये की इनाम राशि मिली। बस यहीं से उन्हें लगा कि अब घर की आर्थिक स्थिति सुधरेगी और खेल के जरिये ही वो घर को अच्छा माहौल दे सकती हैं। पिता उनको आगे नहीं बढ़ाना चाहते थे, लेकिन मां ने उनका पूरा साथ दिया। पिता इस खेल में नेहा को बढ़ावा नहीं देना चाहते थे, पर मां ने अपनी बेटी का पूरा साथ दिया। नेहा भी समझ चुकी थीं कि उन्हें अपनी मजबूरी को हौसला बनाना है। वे मानसिक तौर पर खुद को तैयार कर चुकी थीं कि वो हॉकी में एक दिन नाम करेंगी।
परेशानियों ने नहीं छोड़ा पीछा
जब नेहा ने अपना पूरा जीवन खेल को समर्पित कर दिया, तो वो धीरे-धीरे खेल को जीने लगीं। नेहा की मेहनत और लगन का ही नतीजा था कि उन्हें भारतीय हॉकी टीम में जगह मिली। खेल की ही बदौलत 2015 में रेलवे ने उन्हें अपने यहां नौकरी दी। नेहा की नौकरी लगी तो घर की स्थिति कुछ सुधरी पर इसी बीच उनके जीवन में एक दर्दनाक झटका लगा। 2017 में बीमारी के कारण पिता चल बसे। पिता की मौत के बाद वो टूट गईं। घर का खर्च चलाने के साथ-साथ हॉकी किट से लेकर खेल से जुड़ी हुई कई जरूरते भी पूरा करना उनके लिए चुनौती थी। पिता की मौत के बाद नेहा की मां ने फैक्ट्रियों में काम करना शुरू किया। कभी जूतों की फैक्ट्री में काम करतीं, तो कभी साइकिल के कारखाने में एक घंटे का 4 रुपए मेहनताना कमातीं। नेहा ने कहा कि उन दिनों वो प्रैक्टिस के बाद अपनी दोनों बहनों के साथ अपनी मां की घर और फैक्ट्री के काम में हाथ बटातीं। नेहा की आर्थिक स्थिति को देखते हुए उनकी कोच प्रीतम रानी सिवाच ने नेहा की ओर मदद का हाथ बढ़ाया और उनकी जरूरतों को पूरा करने के लिए आर्थिक मदद दी। नेहा की दो बड़ी बहनें थीं, जो शादी लायक हो चुकी थीं। नेहा ने एक-एक पैसा जोड़कर उनकी शादी कराई। घर के हालातों से समझौता करने की बजाए नेहा गोयल ने हर मुश्किल का सामना डटकर किया। अपने खेल में भी उतनी ही मेहनत की।
अब ओलंपिक पदक पर है नजर
रेलवे में सीनियर नेशनल की प्रतियोगिताओं में नेहा भाग लेतीं रहीं और हर बार उनकी टीम गोल्ड मेडल जीतती। नेहा के मुताबिक उनकी हॉकी के मैदान में सबसे बड़ी उपलब्धि रही साल 2018 के एशियाई खेलों में भारतीय महिला हॉकी टीम के लिए फाइनल के मुकाबले में गोल दागना जिसने भारत को एशियाई खेल में रजत पदक जिताया। नेहा का लक्ष्य अब सिर्फ और सिर्फ ओलंपिक है। ओलंपिक के लिए टीम में चयन होने के बाद नेहा का कहना है कि उनकी जिम्मेदारी और बढ़ गई है। जब देश ने उनपर भरोसा जताया है, तो उनकी भी जिम्मेदारी है कि वो ओलंपिक में भारत को गोल्ड मेडल दिलवाए। नेहा ओलंपिक की तैयारियों में जी-जान से जुटी हैं। उनका कहना है कि हम लड़ेंगे और आगे बढ़ेंगे। हमारी टीम बेहतर हे और हम गोल्ड लेकर ही लौटेंगे।