8 मार्च 2021, अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में एक आदिवासी महिला हिडमे मरकम को पुलिस ने घसीटकर पुलिस वाहन में डाल दिया और उसे लेजाकर जेल में ठूंस दिया। पुलिस का कहना है कि महिला पहले कुछ नक्सली हमलों में शामिल रह चुकी है, जबकि सोशल एक्टिविस्ट्स कह रहे हैं कि हिडमे को आदिवासियों पर हो रहे अत्याचारों के खिलाफ एक न्याय की आवाज बनने की वजह से गिरफ्तार किया गया है। पुलिस ने हिडमे के खिलाफ कुछ ऐसे गंभीर आरोप लगाए हैं, जो लोगों को हजम नहीं हो रहे? उसके बाद से सोशल मीडिया पर #हिडमे मरकम की रिहाई लगातार ट्रेंड कर रहा है...
दक्षिण छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले की आदिवासी कार्यकर्ता
उस दिन महिला दिवस था यानी आठ मार्च का दिन। महिलाओं को सम्मानित करने का दिन। लेकिन देश के एक आदिवासी इलाके में एक ऐसी घटना घटी, जिसने महिला दिवस की सार्थकता को मानों तार-तार कर दिया। छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा के एक आदिवासी गांव समेली में भी महिला दिवस पर कार्यक्रम चल रहा था। 300 से ज्यादा आदिवासी महिला-पुरुष कार्यकर्ता इस कार्यक्रम में शिरकत कर रहे थे। कार्यक्रम में आदिवासी कैदियों को जेल से रिहाई के साथ ही और छत्तीसगढ़ की आदिवासी महिलाओं के अधिकारों और अडानी प्राइवेट लिमिटेड से पवित्र आदिवासी पहाड़ को बचाने की भी बातें हो रही थीं। अचानक पुलिस का एक दस्ता कार्यक्रम में पहुंचा और उसने आदिवासियों की आवाज कहलाई जाने वाली हिडमे मरकम को गिरफ्तार कर लिया और उसे घसीटकर पुलिस वाहन में डाल दिया। वहां मौजूद कार्यकर्ताओं ने हिडमे को पुलिस की कैद से छुड़ाने की खूब कोशिश की, लेकिन पुलिस ने उनके साथ धक्केबाजी की और हिडमे को ले गए और उसे कोर्ट में पेश कर दिया, जहां से उन्हें जुडिशियल रिमांड में भेज दिया गया। हिडमे जगदलपुर की जेल में बंद हैं।
कौन हैं हिडमे मरकम
30 साल की हिडमे मरकम छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के बरगम गांव की रहने वाली हैं। वह गोंड जनजाति की हैं, जो भारत की सबसे बड़ी आदिवासी जनजाति है। बरगम गांव में एक हजार से अधिक घर हैं और यहां पुरुषों की तुलना में महिलाएं अधिक हैं। महिला साक्षरता की बात की जाए तो 2011 की जनगणना के आधार पर 7% से भी कम महिलाएं औपचारिक शिक्षा के लिए कभी स्कूल जा पाईं। वैसे भी इस इलाके में पुलिस और माओवादियों में जंग छिड़ी हुई है, जिसके चलते यहां के स्कूल सालों तक नहीं खुलते हैं। ऐसे माहौल में हिडमे भी नहीं पढ़ पाईं। हालांकि एक सरकारी स्कूल में हिडमे को मिड डे मील बनाने का काम मिल गया।
नंदराज पर्वत को बचाने के लिए अडानी के खिलाफ खोला मोर्चा
हिडमे स्कूल में रसोइया बनकर खुश थीं। बेहद विनम्र और मृदुभाषी हिडमे मरकम को जब पता चला कि स्कूल के पास लौह अयस्क कारखाना लग रहा है तो उसे यह बात पसंद नहीं आई। वह अपने लोगों और जल-जंगल-जमीन को बचाने के लिए हो रहे संघर्ष में कूद पड़ीं। अपने अधिकारों को पाने के लिए उसमें धधक रही ज्वाला ने उसे क्रांतिकारी बना दिया और जब उसने आदिवासी कैदियों को मुक्त करने के साथ ही देश के एक बड़े उद्योगपति के खिलाफ मोर्चा खोला दिया। दरअसल, छत्तीसगढ़ में एक पवित्र पर्वत है-नंदराज। आदिवासियों का मानना है कि इस पर्वत पर देवताओं का वास है। पर्वत पर धार्मिक आयोजन भी किए जाते हैं। लेकिन पिछले कुछ अरसे से नंदराज पहाड़ पर देश के बड़े उद्योगपतिअडानी की कंपनी ने कई तरह के प्रोजेक्ट्स शुरू किए हैं। हिडमे मरकम नंदराज पर्वत को बचाने वाले मूवमेंट का हिस्सा हैं। साथ ही हिडमे ऐसे कई सारे प्रोजेक्ट्स के खिलाफ आवाज उठा रही हैं, जिनसे जमीन, जलीय खनिज औरकई सारे पेड़ नष्ट हो सकते हैं। गौरतलब है कि नंदराज पहाड़ संघर्ष ने हजारों अनपढ़ों, गरीब आदिवासी ग्रामीणों को प्रेरित किया, जो अक्सर नक्सल के आरोपी थे।
हिडमे पर पुलिस ने लगाए गंभीर आरोप, लगाईं ये धाराएं
हिडमे को पुलिस गिरफ्तार करके ले गई और उन्हें कोर्ट में पेश किया गया, जहां से उन्हें 19 मार्च तक के लिए जुडिशियल रिमांड में भेज दिया गया। दंतेवाड़ा पुलिस कह रही है कि हिडमे के खिलाफ नक्सल एक्टिविटी से जुड़े पांच अपराध दर्ज हैं, जिनका स्टेटस अभी पेंडिंग है। उनके ऊपर एक लाख 10 हजार का इनाम भी घोषित था। यही नहीं, दंतेवाड़ा के सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस अभिषेक पल्लव कहते हैं, पुलिस मुखबिर होने के शक में तीन गांववालों की हत्या हुई थी, इस हत्या में हिडमे का भी हाथ था। दंतेवाड़ा के अरनपुर पुलिस के तहत आने वाले इलाके में हिडमे के नाम के कई बैनर और पोस्टर्स भी लगाए गए थे। उसका आत्मसमपर्ण करवाने के लिए गांव के सरपंच की भी सलाह ली ग थी। स्पॉट करने वालों ने जब हिडमे की पहचान की, तब उसके खिलाफ जरूरी कानूनी कार्रवाई की गई। साल 2016 की शुरुआत से उसके खिलाफ मामले दर्ज थे, यानी वो कम से कम छह सालों से एक्टिव थी।
अभिषेक पल्लव की मानें तो अरनपुर थाने में हिडमे मरकम के खिलाफ 2016 से लेकर 2020 तक पांच बार केस दर्ज हुए थे, जिन सेक्शन्स के तहत केस हो रखे हैं, उनमें मुख्य तौर पर आईपीएस की धारा 147 यानी उपद्रव, सेक्शन 302 यानी हत्या, सेक्शन 364 यानी हत्या के मकसद से किसी का अपहरण करना, सेक्शन 307 यानी कुछ ऐसा काम करना, जिससे किसी व्यक्ति की हत्या हो जाए, सेक्शन 506 यानी धमकी, 366 यानी किसी महिला की जबरन शादी करवाने के लिए उसका अपहरण, शामिल हैं। इसके अलावा हिडमे पर पुलिस को जान से मारने के लिए फायरिंग और विस्फोट करने की घटना में शामिल होने के भी आरोप हैं। बस्तर डिवीजन के आईजी पी सुंदरराज का कहना है कि हिड़मे को गिरफ्तार करने के लिए पहले भी कोशिशें हो चुकी थीं, लेकिन वो फरार चल रही थीं।
नक्सली नहीं, सामाजिक कार्यकर्ता हैं हिडमे
वहीं, छत्तीसगढ़ पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) और छत्तीसगढ़ महिला अधिकार मंच का दावा है कि हिडमे मरकम नक्सली नहीं, बल्कि सामाजिक कार्यकर्ता हैं। महिला अधिकार मंच और पीयूसीएल ने एक जॉइंट स्टेटमेंट में कहा कि “हिडमे एंटी-माइनिंग और ट्राइबल राइट्स एक्टिविस्ट हैं। महिला दिवस के प्रोग्राम के दौरान उनका अपहरण कर लिया गया। ये प्रोग्राम, कवासी पांडे और कवासी नंदे नाम की दो औरतों की याद में किया गया था, जो छत्तीसगढ़ पुलिस और पैरामिलिट्री फोर्स के द्वारा कस्टडी के दौरान यौन हिंसा और शारीरिक हिंसा का शिकार हुई थीं, जिसके चलते उन्हें मजबूरी में अपनी जान लेनी पड़ी। हिडमे को करीब 300 गांववालों और कार्यकर्ताओ के सामने घसीटकर ले जाया गया। इस गिरफ्तारी का विरोध भी कार्यकर्ताओं ने किया। वहां मौजूद ट्राइबिल एक्टिविस्ट सोनी सोरी ने भी विरोध किया, लेकिन उन्हें धक्का देकर अलग कर दिया गया। ये नोट करना जरूरी है कि हिडमे अपने इलाके में पैरामिलिट्री कैम्प्स बनाने का विरोध कर रही थीं और जेल बंदी रिहाई कमिटी की संयोजक के तौर पर उन्होंने गवर्नर, मुख्यमंत्री, एसपी, कलेक्टर और कई बड़े अधिकारियों से मुलाकात की थी। इन सबके सामने उन्होंने गलत आरोपों के तहत और नक्सली बताकर जेल में बंद किए गए आदिवासियों की रिहाई का मुद्दा उठाया था। इससे पुलिस से सामने ये सवाल उठता है कि अब क्यों उन्हें गिरफ्तार किया गया?”आगे इस जॉइंट स्टेटमेंट में ये कहागया कि हिडमे नंदराज पहाड़ को बचाने वाले मूवमेंट का भी हिस्सा थीं। ये मूवमेंट अडानी प्राइवेट लिमिटेड जैसे कॉर्पोरेशन्स से पवित्र आदिवासी पहाड़ को बचाने के लिए शुरू किया गया था। साथ ही ये भी कहा गया कि हिडमे मरकम ऐसे कई सारे प्रोजेक्ट्स के खिलाफ आवाज उठा रही थीं, जिनसे जमीन, वाटर बॉडीज और कई सारे पेड़ नष्ट हो सकते थे। इसके बाद कहा गया-“हिडमे जो एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं, वो पुलिस के हैरेसमेंट का शिकार हुईं।आज हिडमे की रिहाई की जो मांग हो रही है, वो केवल पुलिस की ज्यादतियों का विरोध या हैरेसमेंट का विरोध नहीं है, बल्कि ये वो मामला है, जो इस बात पर जोर देने की बात करता है कि छत्तीसगढ़ के लोगों की बातों को सुनाजाए। हम चाहते हैं कि हिडमे मरकम को तुरंत रिहा किया जाए। ‘लोन वर्राटू’ स्कीम को खत्म किया जाए, जिसके तहत लोगों को गलत तरीके से जबरन ‘सरेंडर’ करवाया जा रहा है। असंवैधानिक डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड्स फोर्स (डीआरजीएफ) को खत्म कर दिया जाए।
कौन थीं कवासी पांडे
कवासी पांडे दंतेवाड़ा के एक गांव में रहती थीं। 20 बरस की थीं। ये खबर आई थी कि एक कथित नक्सली ने खुद को पुलिस के सामने सरेंडर कर दिया है, ये कवासी पांडे ही थीं। लेकिन सरेंडर के चार दिन बाद ही उन्होंने दंतेवाड़ा पुलिस लाइन में कथित तौर पर सुसाइड कर लिया था। कवासी की मां ने तब कहा था कि उनकी बेटी माओवादी नहीं थी, उसने कोई सरेंडर भी नहीं किया था, उसे पुलिस ने जबरन हिरासत में ले लिया था और सरेंडर के लिए टॉर्चर किया था।
हिडमे को तब क्यों नहीं गिरफ्तार किया गया
पिछले चार-पांच साल में हिडमे ने मुख्यमंत्री से, राज्यपाल से, आईजी से, पुलिस अधीक्षक से लगातार मुलाकात की थी। ऐसे में सवाल ये उठता है कि अगर 2016 से उनके खिलाफ केस दर्ज था, तो पुलिस ने इन मुलाकातों के दौरान उन्हें गिरफ्तार क्यों नहीं किया? इतने बरसों में हिडमे के खिलाफ न तो कोई वारंट जारी किया था, न ही पुलिस उनके घर गई थी।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.