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हैंडबॉल छोड़ हॉकी अपनाने से बदल गई उदिता की जिंदगी

Published - Fri 02, Jul 2021

ओलंपिक में खेलने के लिए टोक्यो जाने वाली भारतीय महिला हॉकी टीम में उदिता का नाम भी शामिल है। उदिता पहले हैंडबॉल खेलती थीं, एक दिन अचानक किसी कारणवश उन्होंने इसे छोड़कर हॉकी खेलने का मन बना लिया। उसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।

udita duhan

नई दिल्ली। उदिता दूहन भारतीय सीनियर हॉकी टीम में मिड फील्डर प्लेयर हैं। कच्चे ग्राउंड से इंटरनेशनल एस्ट्रोटर्फ पर हॉकी का जादू दिखाने तक पहुंचने की कहानी हौसलों से भरी है। इस कामयाबी के पीछे है,  पिता का सपना, मां के मजबूत इरादे और बेटी की कड़ी मेहनत। खीर के जिक्र के बिना भी उनके खेल का किस्सा अधूरा है। उदिता मूलरूप से भिवानी के नांगल गांव की रहने वाली हैं, लेकिन अब वह हिसार में रहती हैं।  23 साल की इस खिलाड़ी का जीवन हॉकी ने पूरी तरह बदल दिया। उदिता अभी तक देश के लिए कुल 32 मैच खेल चुकी हैं। उदिता को ड्राइंग बनाने और कलर करने का बहुत शौक है। लॉकडाउन में जब सब कुछ थम गया था, तब उन्होंने अपने इस हुनर को निखारा। उदिता की मानें तो इस समय उन्होंने अपने शौक को खूब समय दिया। कई खूबसूरत पेंटिंग भी बनाईं। उदिता की मानें तो एक बार मेरे हैंडबॉल कोच लगातार तीन दिनों तक अनुपस्थित थे, उसके बाद मैंने इस खेल को छोड़ने का फैसला लिया। वैकल्पिक खेल के रूप में मैंने हॉकी को चुना। हॉकी खेलने के विकल्प ने मेरे जीवन को पूरी तरह से बदल दिया। वह कहती हैं कि शायद नियति को यही मंजूर था कि मैं हॉकी में नाम कमाऊं। मैंने छह साल पहले ही हॉकी खेलना शुरू किया था, इससे पहले मैं हैंडबॉल खेलती थी। 

खीर का किस्सा और खेल

दरअसल, उदिता को खीर बहुत पसंद है। शुरुआत में उदिता जब खेल से जी चुराने लगती तो मां गीता देवी उसे खीर बनाकर खिलाने की बात कहती। खीर खाने का मौका चला जाए, इसलिए वह अभ्यास करने मैदान पर पहुंच जाती। साथ ही मां उसे उसके पिता का सपना याद दिलाती। जिसे पूरा करने के लिए उदिता ने भी मेहनत शुरू की। शुरुआती जीत ने उसे हौसला दिया। मां की खीर के लालच ने हॉकी के अभ्यास से नियमित जोड़ा।

पिता के साथ जाती थीं मैदान में 

उदिता के पिता एएसआई जसबीर सिंह खेल से जुड़े हुए थे। वे खेल मैदान में जाते तो अपनी बेटी को साथ लेकर जाते थे वहीं से खेल के प्रति उदिता आकर्षित हुई। उदिता ने शुरू में हैंडबॉल खेलना शुरू किया। एक बार हैंडबॉल कोच किसी कारण से मैदान में नहीं आए। उदिता ने मैदान में हॉकी खिलाड़ियों को देखा। वहां मौजूद कोच ने उसे हॉकी खेलने के बुलाया उदिता ने हॉकी खेली और उसे उसी खेल में रुचि बन गई। 

बीमारी ने छीना पिता का साया

खिलाड़ी उदिता के पिता जसबीर सिंह हरियाणा पुलिस में ईएसआई के पद पर कार्यरत थे। वर्ष 2015 में बीमारी के चलते उनका निधन हो गया। उनके पिता उन्हें आगे बढ़ते हुए नहीं देख पाए। इसके बाद उनकी मां ने पूरी जिम्मेदारी संभाली और उन्हें आगे बढ़ाया। उन्हें अपनी बेटी पर गर्व है और वह कहती हैं कि हॉकी टीम ओलंपिक में पदक जरूर जीतेगी। 

अगले कुछ सप्ताह बेहद महत्वपूर्ण 

बतौर उदिता अगले कुछ सप्ताह उनके जीवन के सबसे महत्वपूर्ण दिन होने जा रहे हैं। इस समय हमारी टीम का सिर्फ एक ही चीज पर ध्यान है और वह है टोक्यो। अब हम जो कुछ भी करेंगे, वह हम टोक्यो ओलंपिक में सर्वश्रेष्ठ परिणाम देने के उद्देश्य से करेंगे और हर हाल में मेडल जीतकर अपने देश का नाम रोशन करेंगे। 

सीनियर टीम में 2017 में हुईं शामिल

सीनियर टीम के लिए 2017 में पदार्पण करने वाली उदिता 2018 एशियाई खेलों में रजत पदक विजेता टीम का हिस्सा थीं। उन्हें अपने करियर में काफी बड़े खेल आयोजनों में खेलने का मौका मिल चुका है। उदिता की मानें तो घरेलू टूर्नामेंटों में कुछ प्रभावशाली प्रदर्शन के बाद मुझे 2015 में जूनियर राष्ट्रीय शिविर के लिए चुना गया था। इसके बाद 2016 में मैंने जूनियर टीम के लिए पदार्पण किया। मेरी कप्तानी में जूनियर भारतीय टीम ने चौथे अंडर-18 महिला एशिया कप (2016) में कांस्य पदक जीता था। 2017 में मैं सीनियर टीम में शामिल हुइ। बतौर उदिता, मैं बहुत भाग्यशाली रही हूं कि मुझे एशियाई खेलों और लंदन में विश्व कप जैसे कुछ सबसे बड़े आयोजनों में भारत के लिए खेलने का मौका मिला। हमने इन टूर्नामेंटों में एक टीम के रूप में कुछ शानदार प्रदर्शन किए थे। 

रानी और वंदना कटारिया हैं आदर्श

उदिता हॉकी खिलाड़ी रानी रामपाल और वंदना कटारिया को अपना आदर्श मानती हैं। वह कहती हैं उन्होंने इन अनुभवी खिलाड़ियों से काफी कुछ सीखा है। उन दोनों को काफी अनुभव है और उनके बीच बहुत अच्छा तालमेल है। उन्होंने हमेशा मेरा सपोर्ट किया है।