भारतवंशी तथा कनाडा की नागरिक आकांक्षा अरोड़ा ने खुद को संयुक्त राष्ट्र के महासचिव पद का प्रत्याशी घोषित किया है। वह अपने अभियान में सफल होती हैं, तो महासचिव पद पर पहली महिला होंगी। शरणार्थी परिवार से होने तथा संयुक्त राष्ट्र की मौजूदा स्थिति से स्तब्ध होकर ही उन्होंने महासचिव के पद के लिए अपनी दावेदारी पेश की है। जबकि मौजूदा महासचिव एंटोनियो गुतेरस को दूसरा कार्यकाल देने के बारे में इस विश्व संस्था में आम सहमति है।
इस पर ध्यान मत दीजिए कि आकांक्षा अरोड़ा ने संयुक्त राष्ट्र में मात्र चार साल ही काम किया है। इस पर भी ध्यान मत दीजिए कि वह महज चौंतीस साल की है और उनका कोई कूटनीतिक अनुभव नहीं है। और इसे भी भूल जाइए कि जिनकी जगह वह लेना चाहती हैं, उनकी आधी उम्र की भी वह नहीं हैं। मौजूदा महासचिव एंटोनियो गुतेरस 71 साल के हैं। आकांक्षा एक शरणार्थी परिवार की तीसरी पीढ़ी से हैं।
अपने चुनाव अभियान के लिए उनके पास वेतन से बचाए गए 30,000 डॉलर, एक वेबसाइट और सोशल मीडिया पर एक प्रमोशनल कार्यक्रम है, जिसकी शुरुआत ही इस तरह होती है, 'मेरे पेशे के लोगों से जिम्मेदारी उठाने के लिए पहल करने की अपेक्षा नहीं की जाती।' अरोड़ा ने खुद को संयुक्त राष्ट्र के अगले महासचिव पद का प्रत्याशी घोषित किया है। विगत 17 फरवरी को भारतवंशी तथा कनाडा की नागरिक अरोड़ा ने वर्ष 2022-27 के महासचिव पद के लिए औपचारिक आवेदन पत्र दिया। अपने पत्र में उन्होंने लिखा, 'हम अपने उद्देश्य या वादे पर खरा नहीं उतरते। हम उनके उद्देश्यों को विफल कर रहे हैं, जो हमें यहां भेजते हैं।' अभी तक किसी भी देश ने अरोड़ा की उम्मीदवारी का समर्थन नहीं किया है। पर उनके साहस ने 193 देशों के संगठन को प्रभावित करने के साथ-साथ महासचिव पद के चयन में व्याप्त अपारदर्शिता की ओर भी ध्यान खींचा है। बेशक महासचिव का चयन अब बंद दरवाजे के भीतर नहीं होता, लेकिन गुतेरस को महासचिव के तौर पर दूसरा कार्यकाल देने पर कमोबेश सहमति है।
अरोड़ा ने संदेश देने की कोशिश की है कि संयुक्त राष्ट्र कठोर, बर्बादी भरा, नियंत्रणहीन, पितृसत्तात्मक तथा दुनिया भर में फैले अपने 44,000 कर्मचारियों में से कुछ युवाओं को ही बढ़ावा देने की नीति पर चलता है। यू-ट्यूब पर उनका एक वीडियो बताता है कि संयुक्त राष्ट्र के सालाना 56 अरब डॉलर राजस्व में से प्रत्येक डॉलर का केवल 29 सेंट ही वास्तविक उद्देय पर खर्च होता है। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम की ऑडिट को-ऑर्डिनेटर अरोड़ा ने एक इंटरव्यू में कहा, 'हम कॉन्फ्रेंस आयोजित करने तथा रिपोर्ट लिखने में अपने संसाधन खर्च करते हैं। ये सारी ओछी गतिविधियां विज्ञापन करना ही हैं। हम भूल गए हैं कि हमारा अस्तित्व क्यों है, हम क्या करने के लिए हैं। अगर संयुक्त राष्ट्र कोई निजी उद्यम होता, तो अब तक कारोबार से बाहर हो चुका होता।' अरोड़ा के दोस्त और समर्थक उनके साहस की तारीफ कर रहे हैं।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव का पद बहुत महत्वपूर्ण है, पर उनके पास वास्तविक ताकत शायद ही होती है। इस पद पर कोई व्यक्ति सुरक्षा परिषद के पांचों स्थायी सदस्यों-ब्रिटेन, चीन, फ्रांस, रूस और अमेरिका द्वारा चुने जाते हैं और महासचिव इन्हीं के फैसलों के बंधक होते हैं। संयुक्त राष्ट्र के पूर्व महासचिव कोफी अन्नान के भाषण लेखक एडवर्ड मोर्टाइमर कहते हैं, 'मैं निश्चित हूं कि अरोड़ा के महासचिव चुने जाने की कोई संभावना नहीं है, और यह बात खुद वह भी जानती हैं। अलबत्ता संस्था के प्रति नाराजगी जताने का यह शानदार तरीका है।' गुतेरस के प्रवक्ता कहते हैं, 'आम तौर पर उम्मीदवारी पेश करने वालों के बारे में हम कुछ नहीं कहते।' अरोड़ा पहली व्यक्ति हैं, जिन्होंने आधिकारिक रूप से महासचिव पद पर बैठे व्यक्ति को चुनौती दी है। और अगर वह अपने अभियान में सफल होती हैं, तो संयुक्त राष्ट्र महासचिव के पद पर पहली महिला होंगी। हालांकि 2016 में भी महासचिव पद की दौड़ में गुतेरस के साथ सात महिलाएं थीं।
अरोड़ा का महासचिव पद की दौड़ में शामिल होने का सबसे बड़ा कारण शरणार्थी पृष्ठभूमि का होना है। युगांडा में उनका बचपन कुपोषण के बीच बीता था। वर्ष 1947 में दूसरे अनेक हिंदू परिवारों की तरह उनका परिवार भी पाकिस्तान से भारत चला गया था। उनका जन्म भारत के हरियाणा में हुआ, तो कुछ साल सऊदी अरब में बीते। उनके माता-पिता, दोनों डॉक्टर थे। बाद में वह भारत के एक बोर्डिंग स्कूल में चली गईं। उसके बाद उनका परिवार कनाडा शिफ्ट हो गया, जहां की यॉर्क यूनिवर्सिटी से ऑनर्स ग्रेजुएट की डिग्री लेने के बाद अरोड़ा ऑडिटिंग मैनेजर की नौकरी करने लगीं।
वर्ष 2016 में संयुक्त राष्ट्र से जुड़ने के थोड़े ही समय बाद इस विश्व संस्था के प्रति उनका सम्मान हैरानी में बदल गया। यूगांडा में काम करते हुए उन्होंने एक बच्चे को कीचड़ खाते देखा था। परेशान अरोड़ा ने जब संयुक्त राष्ट्र में अपने एक साथी को इस बारे में बताया, तो उसका जवाब था, 'कीचड़ में आयरन होता है!' यह सुनकर अरोड़ा स्तब्ध रह गईं। बेशक बड़ी हस्तियां अभी तक अरोड़ा के समर्थन में नहीं आई हैं, पर आयरलैंड की पूर्व राष्ट्रपति मैरी रॉबिन्सन ने उनकी उम्मीदवारी का स्वागत किया है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.