सिद्धार्थनगर की बांसी तहसील की रहने वाली निधि पांडेय को प्रधानमंत्री रिसर्च फेलोशिप मिली है। आईआईटी मुंबई से केमिकल इंजीनियरिंग में पीएचडी कर रहीं निधि को यह फेलोशिप केमिकल इंजीनियरिंग में किए गए शोध में मिली है।
लखनऊ। अक्सर जब कोई बेटी कुछ अच्छा करती हैं, तो ज्यादातर लोग कहते हैं कि क्षेत्र का असर है, वो शहर में रहने वाली लड़की है आदि-आदि। लेकिन ऐसा नहीं है। प्रतिभा गांव, शहर, कस्बे हर जगह होती हैं और अपनी पहचान बना ही लेती हैं। ऐसी ही एक प्रतिभा उत्तर प्रदेश के सिद्धार्थनगर के बांसी तहसील के गांव नागचौरी में भी है। यहां की रहने वाली निधि पांडेय को हाल ही में प्रधानमंत्री रिसर्च फैलोशिप मिली है। इसके तहत उन्हें पांच साल तक 12-12 लाख रुपये की स्कॉलरशिप मिलेगी।
शुरू से ही पढ़ाई में रहीं हैं अव्वल
निधि पांडेय बचपन से ही पढ़ने-लिखने में अव्वल रही हैं और कक्षा में हमेशा श्रेष्ठ स्थान प्राप्त करती रही हैं। फिलहाल निधि का परिवार उत्तराखंड में रह रहा है। उनके पिता केशरीनंदन पांडेय उत्तराखंड के खटीमा में नौकरी करते हैं। केमिकल इंजीनियरिंग में किए गए शोध के कारण ही उनका चयन प्रधानमंत्री फेलोशिप के लिए हुआ है। निधि ने बारहवीं तक की पढ़ाई शिक्षा भारती इंटर कॉलेज खटीमा से की थी। इसके बाद निधि ने बीटेक और आईआईटी गांधीनगर से एमटेक किया। वर्तमान में आईआईटी मुंबई से केमिकल इंजीनियरिंग में पीएचडी कर रही हैं। पिता केशरीनंदन पांडेय चंपावत जिले के राष्ट्रीय इंटर कॉलेज में अर्थशास्त्र के प्रवक्ता और माता निर्मला पांडेय सरस्वती शिशु पब्लिक स्कूल खटीमा में प्रधानाचार्य हैं। निधि ने सफलता का श्रेय प्रो. डॉ. जयेश वेल्लारे और परिजनों को दिया है। निधि की सफलता पर राधेरमण त्रिपाठी, अनिरुद्ध प्रसादपांडेय, भोलानाथ पांडेय, ओमशंकर पांडेय, घनश्याम पांडेय, बालमुकुंद पांडेय ने खुशी व्यक्त की है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.