कुछ महिलाओं ने नृत्य के प्रति लोगों का नजरिया बदला और घुंघरू पहनकर एक नया मुकाम हासिल किया।
आगरा। ये वो महिलाएं हैं जिन्होंने नृत्य को बंधनों से आजादी की अभिव्यक्ति बनाया। मुश्किलें कई आईं। कभी सामाजिक बंधन तो कभी घरवालों का दबाव। लोगों के ताने तो कभी पारिवारिक जिम्मेदारी। बचपन से शुरू हुआ चुनौतियां का अंत शादी के बाद भी नहीं हुआ लेकिन वह डटी रहीं। अपनी बात रखी, समझाया और सोच को बदला। बेड़ियों को तोड़ते हुए नृत्य क्षेत्र में मुकाम हासिल किया।
1. सात साल तक नृत्य से रहीं दूर
लखनऊ घराने से ताल्लुक होने से नृत्य के प्रति शुरुआत से ही असीम प्रेम रहा। कुकुमधर मेरी गुरु हैं। तबला, सितार, वोकल, कथक में मास्टर डिग्री ली। वर्ष 2000 में शादी हुई। सात साल तक मजबूरन नृत्य से दूरी बनानी पड़ी। 2007 में बच्चों को सिखाना शुरू किया। नए शहर में अपना नाम और जगह बनाना चुनौतीपूर्ण रहा। दो बच्चों के साथ म्यूजिक मंत्रा एकेडमी शुरू की। आज 400 बच्चों को कथक सिखा रही हूं। 30 बच्चे ऐसे हैं, जिनके पास फीस देने के पैसे नहीं हैं, उन्हें निशुल्क प्रशिक्षण देती हूं।
-वीरा सक्सेना, अदनबाग, दयालबाग
2. बेटी ने दिलाई नृत्य करने की आजादी
पहले नृत्य को अच्छा नहीं समझा जाता था हालांकि अब नजरिया बदला है। शादी से पहले दिल्ली, अलीगढ़, एटा सहित कई जगह प्रस्तुतियां दीं। पति को पसंद नहीं था कि नृत्य करूं तो शादी के बाद 10 सालों तक सब छूट गया। बेटी हुई तो उसे सिखाना शुरू किया। जब उसने पहचान बनानी शुरू की तो पति में बदलाव आया। उन्हें समझ आया कि यह बुरी चीज नहीं। इसके बाद परफोर्मेंस द डांस स्टूडियो एकेडमी शुरू की। ऑनलाइन बच्चों को सिखा रही हूं। मेरा डांस ग्रुप चक धूम धूम में 700 में से टॉप 70 तक पहुंचा।
-दीप्ति खन्ना, पथौली
3. डांस में कोर्स करने पर लोग देते ताने
बहुत छोटे से ही नृत्य का प्र्रशिक्षण शुरू कर दिया था। 12वीं के बाद कथक केंद्र लखनऊ गई। छात्रवृत्ति मिली तो परिवार पर आर्थिक बोझ नहीं पड़ा लेकिन सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा। नृत्य को अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता। लोग ताने देते थे। कार्यक्रम में प्रस्तुति देकर लौटने में देर हो जाती तो आसपास के लोग ऐसे देखते कि पता नहीं क्या गलत करके आई हूं। आगरा आने के बाद उर्वशी डांस एकेडमी शुरू की। 40 बच्चे कथक की ट्रेनिंग ले रहे हैं। गंधर्व सम्मान, ब्रज भूषण सम्मान मिल चुके हैं।
-रुचि शर्मा, सेक्टर 4, बोदला
4. मां चाहती थीं कि मैं टीचर बनूं
इलाहाबाद में नृत्य की शिक्षा ली। पिता ने प्रोत्साहित किया। मां को मेरा डांस करना पसंद नहीं था। वह मुझे शिक्षक बनने के लिए कहतीं। नौ गुरुओं से मैंने प्रशिक्षण लिया। शादी से पहले मुंबई, कटनी, सतना, उन्नाव आदि स्थानों पर प्रस्तुति दी। संगीत में प्रभाकर, कथक में प्रवीण किया। तबले में जूनियर डिप्लोमा किया। शादी के बाद आगरा आई तो खुद को स्थापित करने में काफी संघर्ष करना पड़ा। एक बच्चे के साथ नमिता डांस एकेडमी शुरू की। आज 32 बच्चों को कथक सिखा रही हूं। शादी के बाद प्रस्तुति देना बंद है।
-नमिता बाजपेयी, सेक्टर 1, आवास विकास
5. नौकरी से आकर बच्चों को सिखाती
लोग कहते कि लड़की है, नृत्य सीखकर क्या करेगी लेकिन मैंने पढ़ाई के साथ अपने इस जुनून को भी जिंदा रखा। गायन, नृत्य, वादन में प्रभाकर किया। सरकारी नौकरी लगने के बाद आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को नृत्य सिखाना शुरू किया। नौकरी से आने के बाद रोजाना दो घंटे बच्चों को प्रशिक्षण देती। स्वर संगम कला केंद्र संगीत विद्यालय चला रही हूं। लोक विधाओं को बचाने का काम कर रही हूं। करीब 2000 बच्चों को नृत्य सिखा चुकी हूं। मेरा डांस ग्रुप ‘सारेगामा, बूगी बूगी’ जैसे शो में भी प्रतिभाग कर चुका है।
-विजय लक्ष्मी, शाहगंज
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.