विदिशा श्रवण बाधित हैं, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी लगन और दृढ़ इच्छाशाक्ति की बदौलत दक्षिण अफ्रीका में चल रही मिस वर्ल्ड डेफ प्रतियोगिता जीतकर इतिहास रच दिया है।
नई दिल्ली। विदिशा श्रवण बाधित हैं। बचपन में स्कूल में बच्चे इसी कारण परेशान किया करते थे। हताश होकर विदिशा घर आकर खूब रोतीं। सुनने में होने वाली परेशानी के कारण उनकी पढ़ाई भी बाधित हो रही थी। परिजनों ने उनका ध्यान इस कमी से हटाने के लिए उनको खेलों की ओर मोड़ा। विदिशा ने लॉन टेनिस में राष्ट्रीय स्तर पर दो बार सिल्वर मेडल जीता और डिफलॉम्पिक्स में पांचवां स्थान भी हासिल किया, लेकिन चोट की वजह से उसे लॉन टेनिस को अलविदा कहना पड़ा। विदिशा ने फिर भी हार नहीं मानी। उन्होंने फैशन की दुनिया में कदम रखकर आगे बढ़ना शुरू किया और आज विदिशा ने वो कर दिखाया, जिसके आगे दिव्यांगता बौनी नजर आ रही है। विदिशा ने दक्षिण अफ्रीका में चल रही मिस वर्ल्ड डेफ प्रतियोगिता जीतकर इतिहास रच दिया है और आज उनकी चर्चा विश्वभर में हो रही है। विदिशा उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर से ताल्लुक रखती हैं। वहीं मुजफ्फरनगर जिसे क्राइम कैपिटल के नाम से जाना जाता है और जहां बेटियों को सपने पूरे करने की आजादी कम भी होती है। लेकिन तमाम मुश्किलों को पार करते हुए आज विदिशा ने देश और यूपी दोनों का नाम रोशन कर दिया है।
विदिशा बालियान के सपने को पूरा करने में उनकी मां सबसे बड़ी मददगार बनीं। उनकी मां डॉ. दीपशिखा मोदीनगर के डिग्री कॉलेज में प्रोफेसर हैं। पिता हरियाणा में चीनी मिल के जीएम है। दिव्यांग होने के चलते सोसायटी में फिट बैठने के लिए विदिशा को काफी संघर्ष भी करना पड़ा। लेकिन विदिशा ने रुकावटों के आगे हार नहीं मानी। उनकी मां ने हमेशा बेटी को केवल यही सिखाया कि खुद को कमजोर समझने की बजाय अपनी कमजोरी को ताकत बना लो। विदिशा ने दिखा दिया कि सपनों को पूरा करने के लिए अगर जी-जान से लगा जाए, तो सपने जरूर पूरे होते हैं।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.