पहले बाजरे से कई पारंपरिक पकवान बनाए जाते थे। लेकिन, पिछले कुछ वर्षों से किसानों ने इसकी खेती से मुंह मोड़ लिया और अन्य फसलों पर निर्भरता बढ़ा दी। विशाला का लक्ष्य बाजरे का उत्पादन दोबारा शुरू करना और किसानों की आय बढ़ाना है।
जब एक देश अपनी भाषा खोने लगे, अपनी जनजाति, यहां तक कि अपना पारंपरिक भोजन खोने लगे तो हम कह सकते हैं कि वहां की संस्कृति खतरे में है। ऐसा ही कुछ अहसास हुआ आंध्र प्रदेश के चित्तूर जिले की रहने वाली विशाला रेड्डी को। विशाला का बचपन अपने गांव में ही बीता। पढ़ाई-लिखाई के बाद वह हैदराबाद चली गई और सामाजिक उद्यमी के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। लॉकडाउन ने एक बार फिर उन्हें अपने गांव वापस आने को मजबूर किया और इस बार महीनों गांव में रुकना भी पड़ा। इस दौरान उन्होंने देखा कि बाजरे की खेती धीरे-धीरे खत्म होती जा रही है। उन्हें अहसास हुआ कि अगर इसके संरक्षण के लिए कुछ नहीं किया तो यह पूरी तरह विलुप्त हो जाएगी। इस दौरान वह अपने बचपन में जा पहुंची। अपने बचपन को याद करते हुए वह कहती हैं, 'मुझे याद है कि बचपन में हमारे खेतों के आसपास बाजरे का उत्पादन किया जाता था। अक्सर त्योहारों पर घर में बाजरे के पकवान बनाए जाते थे। साथ ही प्राकृतिक आपदाओं के समय उपयोग करने के लिए बाजरे का संग्रहण भी किया जाता था। बाजरे के साथ एक पूरी संस्कृति जुड़ी हुई है, जो समुदायों को एकत्रित कर उनकी खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करती थी।' इस लॉकडाउन के दौरान उन्होंने अपने गांव में देखा कि कभी बाजरे का उत्पादन करने वाले किसान दालें उगा रहे हैं। जबकि बाजरा पोषण के लिए बेहतर अनाज माना जाता है। इसलिए उन्होंने एक बाजरा बैंक की शुरुआत करने के बारे में सोचा, जिससे कि उत्पादन को बढ़ावा दिया जा सके और बाजार को बेहतर दाम में बेचा जा सके।
करीब 40 किसान सहमत हुए
बाजरा बैंक की शुरुआत के लिए विशाला ने किसानों से बात की। पहली बातचीत के बाद, तकरीबन चालीस किसान बाजरा बैंक के विचार पर सहमत हो गए। विशाला और उनके परिवार के समझाने के बाद सात किसानों ने 25 एकड़ की जमीन पर बाजरे की खेती शुरू की। विशाला के परिवार के पास एक ट्रैक्टर भी है, इसलिए प्रोत्साहित करने के लिए उन किसानों की जमीन की जुताई फ्री में करने का फैसला किया।
सामुदायिक केंद्र
विशाला की इस मुहिम से लोग प्रभावित हुए। गांव के दर्जनों लोगों अब उनके साथ थे। जिनकी मदद से उन्होंने आने खेत में कृषि उत्पादों के लिए बने झोपड़े को सामुदायिक सेंटर में बदल दिया। यहां किसानों को बाजरे की खेती से संबंधित जानकारियां दी जाती हैं। सामुदायिक सेंटर में एक टीवी भी लगाया गया है, जिसके माध्यम से कृषि तकनीकों की ऑनलाइन प्रसारित किया जाता है।
आमदनी में बढ़ोतरी
हालांकि अभी तो यह एक शुरुआत है। लेकिन विशाला धीरे-धीरे इसे सामुदायिक व्यवस्था की ओर ले जाने का प्रयास कर रही हैं। उनका लक्ष्य 150 से 200 एकड़ शुष्क भूमि पर पुन: बाजरा उगाने के लिए किसानों को प्रोत्साहित करना है। उनकी कोशिश है कि बिखरे भूखंड के बजाय एक ही जगह पर बड़ी कृषि इकाई में बाजरे का उत्पादन किया जाए, ताकि प्रसंस्करण संयंत्र लगाकर उत्पाद बना सकें और किसानों की आमदनी में बढ़ोतरी हो।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.