Aparajita
Aparajita

महिलाओं के सशक्तिकरण की एक सम्पूर्ण वेबसाइट

मां ने मजदूरी कर अनुराधा को बनाया चैंपियन

Published - Tue 06, Apr 2021

अगर मां अपने बच्चों के सपनों को पूरा करने की ठान ले तो वह कुछ भी कर सकती है। कुछ ऐसा ही किया है वेटलिफ्टर अनुराधा की मां ने। उन्होंने पति की मौत के बाद भी बेटी के हर सपने को पूरा किया और उसे चैंपियन बना दिया।

waitlifting

नई दिल्ली। आज अनुराधा को कौन नहीं जानता। वेटलिफ्टिंग में नाम कमा चुकीं अनुराधा स्वर्ण पदक जीतकर चैंपियन बन गईं, लेकिन इसके पीछे एक कड़े संघर्ष की कहानी छुपी है। इस कामयाबी के पीछे उनकी मां का रोल भी बेहद अहम है। अनुराधा के पिता बचपन में गुजर गए थे। मां ने खेतों में मजदूरी कर उन्हें और उनके भाई को बड़ा किया। कड़े संघर्ष के बीच अनुराधा ने गांव के स्कूल से सरकारी कॉलेज में दाखिला लिया तो यहीं एक अध्यापक ने उन्हें वेटलिफ्टिंग शुरू करा दी। कॉलेज और यूनिवर्सिटी स्तर पर उनके पदक आने लगे तो गांव के कोच ने समझाया एनआईएस का कोचिंग डिप्लोमा कर लो नौकरी लग जाएगी। 21 साल की उम्र में अनुराधा को पटियाला में दाखिला मिल गया। यहां चीफ कोच ने कहा तुम्हारी उम्र कोच बनने की नहीं बल्कि लिफ्टिंग करने की है। डिप्लोमा करने के दौरान ही अनुराधा ने पहली बार सीनियर राष्ट्रीय चैंपियनशिप खेल पदक जीता और दो साल के अंदर ही तमिलनाडु पुलिस में सब इंस्पेक्टर की नौकरी हासिल कर ली। अनुराधा यहीं पीछे नहीं हटीं। उन्होंने इसके बाद लगातार दो राष्ट्रीय चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतकर भारतीय टीम में जगह बनाई और राष्ट्रमंडल चैंपियनशिप के साथ सैफ खेलों में भी स्वर्ण पदक जीता। 

सरकारी नौकरी हासिल करने वाली गांव की इकलौती महिला 

तमिलनाडु के पुडुकोडोई जिले के नेमेलिपट्टी गांव की अनुराधा गर्व से कहती हैं कि वह अपने गांव में सरकारी  नौकरी हासिल करने वाली एकमात्र महिला हैं। वह अपने बचपन को याद कर भावुक हो जाती हैं। मां और भाई ने उनके लिए बड़ा त्याग किया है। भाई ने हमेशा वेटलिफ्टिंग में कुछ करने के लिए प्रेरित किया। मां के साथ मिलकर भाई खुद भूखे रह जाते थे लेकिन उन्हें खाने के लिए देते थे क्योंकि उन्हें वेटलिफंर्टग करना होता था। यही कारण था कि वह कॉलेज में यही सोचती रहती थीं कि किसी तरह इस खेल के जरिए नौकरी मिल जाए तो वह भाई और मां का सहारा बन जाएं। इसके लिए वह एनआईएस कोच जीएस बरीकी का धन्यवाद करती हैं, जिन्होंने उन्हें कोच नहीं बल्कि वेटलिफंर्टग खेलने को प्रेरित किया। अनुराधा इस वक्त ओलंपिक और राष्ट्रमंडल खेलों की तैयारियों को चल रहे राष्ट्रीय शिविर में शामिल हैं। उनका अगला लक्ष्य 87 किलो भार वर्ग में ब्रिस्बेन राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक जीतना है।