फूलबासन का बचपन गरीबी में बीता, विवाह के बाद भी आर्थिक समस्याएं कम नहीं हुई। अंततः फूलबासन ने इसे बदलने के बारे में सोचा। उन्होंने दस महिलाओं के साथ दो मुट्ठी चावल और हर सप्ताह दो रुपये जमा करने की योजना से एक स्वयं सहायता समूह की शुरुआत की। उनके समूह से अब तक लगभग दो लाख महिलाएं जुड़ चुकी हैं।
छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव की रहने वाली फूलबासन यादव का जन्म एक गरीब परिवार में हुआ। उनका बचपन गरीबी से संघर्ष करते हुए बीता। परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उनकी पढ़ाई छूट गई और कम उम्र में ही विवाह कर दिया गया। उनके पति के पास न तो जमीन थी, न रोजगार। ऐसे में ससुराल में भी आर्थिक आमदनी शून्य के बराबर थी। दो वक्त की रोटी जुटाना भी मुश्किल था। कई बार भूखे रह जाना पड़ता था। कुछ ही वर्षों में वह चार बच्चों की मां बन गई। लोग अक्सर उनकी गरीबी का मजाक उड़ाते थे। ऐसे मुश्किल समय में फुलबासन को किसी ने स्वयं सहायता समूह के बारे में पता बताया। तब उन्होंने एक स्वयं सहायता समूह शुरू करने का फैसला किया। फुलबासन ने दस महिलाओं के साथ दो मुट्ठी चावल और हर सप्ताह दो रुपये जमा करने की योजना बनाई। उनके पति को उनका यह यह काम पसंद नहीं आया। उनके पति ने इसका विरोध किया। यही नहीं, सामाजिक विरोध भी शुरू हो गया। लेकिन फूलबासन ने ठान लिया कि अपनी दशा बदलनी है। उन्होंने महिलाओं की मदद से जल्द ही आम और नींबू के अचार तैयार करना शुरू कर दिया। इसे उन्होंने राज्य के करीब तीन सौ से अधिक स्कूलों में बेचा। धीरे-धीरे उनके समूह ने अगरबत्ती, डिटर्जेंट पाउडर, मोमबत्ती आदि भी बनाना शुरू किया। उन्होंने अबतक लगभग दो लाख महिलाओं को स्वावलंबन से जोड़ा है।
सामाजिक कार्य
समूह की महिलाओं को तीन से पांच हजार रुपये तक प्रतिमाह की आय होने लगी। इस राशि से आपस में ही कर्जा लेने की वजह से उन लोगों को सूदखोरों के चंगुल से छुटकारा मिल गया। बचत राशि से समूह ने सामाजिक सरोकार के भी कई कार्य शुरू किए, जिसमें अनाथ बच्चों की शिक्षा-दीक्षा, बेसहारा बच्चियों की शादी, गरीब परिवार के बच्चों का इलाज आदि शामिल है।
आत्मनिर्भरता की राह
पढ़ाई, भलाई और सफाई की सोच के साथ फुलबासन के समूह ने तय किया कि महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अभियान चलाया जाए। इसके पीछे सोच यह थी कि महिलाओं में आत्मविश्वास आएगा और वे सामाजिक कुरीतियों से लड़ना सीखेंगी।
पद्मश्री सम्मान
शराबबंदी, बाल विवाह जैसी कई सामाजिक समस्याओं के खिलाफ उनके स्वयं सहायता समूह ने जोरदार आंदोलन किया। इसका असर यह हुआ कि अब दर्जनों गांवों में शराब की ब्रिकी बंद हो गई है। इसके अलावा दर्जनों गांव ऐसे हैं, जहां उनके आंदोलन के कारण अब बाल विवाह नहीं होते। इन्हीं सामाजिक कार्यों के चलते वर्ष 2012 में भारत सरकार ने फूलबासन यादव को पद्मश्री से भी सम्मानित किया था।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.