दुनिया में मां ही एक ऐसी शख्सियत है, जो अपने बच्चों के लिए बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने में कभी पीछे नहीं हटती। इस बात एक बार फिर सही साबित कर दिखाया है राजस्थान के जयपुर जिले के सारंग का बास गांव में रहने वालीं मीरा देवी ने। उनके पति की इच्छा थी कि उनकी तीनों बेटियां अफसर बनें। पति की मौत के बाद मीरा देवी ने इस सपने को पूरा करने के लिए दिन-रात मेहनत की। बेटियों की पढ़ाई न छूटे इसलिए उन्हें मजदूरी तक करनी पड़ी। कई बार आधे पेट भी सोना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। बेटियों ने भी मां को निराश नहीं किया। तीनों सगी बहनों कमला, गीता और ममता चौधरी ने एकसाथ राजस्थान प्रशासनिक सेवा की परीक्षा पास की और अफसर बन मां के संघर्ष व पिता के सपने को पूरा किया। आइए जानते हैं मीरा देवी के संघर्ष के बारे में...
नई दिल्ली। मीरा देवी राजस्थान के जयपुर जिले के सारंग का बास गांव की रहने वाली हैं। 55 वर्षीय मीरा देवी के पति की मौत कई साल पहले हो चुकी है। पति ही घर में कमाने वाले इकलौते सदस्य थे। उनकी मौत के बाद परिवार के सामने अजीविका का संकट खड़ा हो गया। घर में खाने तक की दिक्कत होने लगी। ऊपर से तीन बेटियों कमला, गीता, ममता और बेटे राम सिंह की पढ़ाई का खर्च अलग। परिवार की बिगड़ती माली हालत को देखते हुए मीरा देवी ने मजदूरी करनी शुरू कर दी। लेकिन वह उतना ही कमा पातीं कि परिवार को दो वक्त का खाना नसीब हो सके। ऐसे में बच्चों को कैसे पढ़ाया जाए यह किसी चुनौती से कम नहीं था। मीरा किसी भी हालत में बेटियों की पढ़ाई बंद कराने को तैयार नहीं थीं। दरअसल, उनके पति की इच्छा थी कि तीनों बेटियों को पढ़ा लिखाकर वह अफसर बनाएं। मीरा पति की अंतिम इच्छा को हर हाल में पूरा करना चाहती थीं। पति के सपने को उन्होंने अपना सपना बना लिया था। बेटियों की पढ़ाई न छूटे इसलिए मीरा ने सुबह से देर शाम तक मेहनत करना जारी रखा। इस काम में उनके इकलौते बेटे राम सिंह ने भी सहयोग दिया। परिवार में अभाव के बावजूद मीरा ने बेटियों की पढ़ाई कभी रुकने नहीं दी।
पति की मौत के बाद परिवार पर टूटा मुसीबतों को पहाड़
मीरा देवी के पति की मौत के बाद परिवार पर तमाम मुश्किलों का पहाड़ टूट पड़ा। एक तरफ गृहस्थी की गाड़ी पटरी से उतर गई, तो दूसरी ओर बेटियों के कुछ बड़े होने पर गांववालों और रिश्तेदारों ने मीरा पर उनकी शादी का दबाव डालना शुरू कर दिया। लेकिन मीरा देवी ने इन सबकी बातों को नजरअंदाज करते हुए बेटियों की पढ़ाई जारी रखवाई।
बहनों की पढ़ाई न छूटे इसलिए भाई ने खुद छोड़ दिया पढ़ना
बहनों को अफसर बनाने के लिए दिन-रात मेहनत-मजदूरी करती अपनी मां को देख बेटे राम सिंह ने भी उनका हाथ बंटाने का फैसला किया। बहनों की पढ़ाई में गरीबी आड़े न आए इसलिए राम सिंह ने खुद पढ़ाई छोड़ दी और मां के साथ खेतों में मजदूरी करने लगा। मां और बेटे की दिन-रात खेत में मेहनत का ही नतीजा था कि तीनों बहनों को कभी पैसों के कारण पढ़ाई से समझौता नहीं करना पड़ा। विधवा मीरा देवी की तीनों बेटियां कमला, ममता और गीता चौधरी ने भी अपने दिवंगत पिता की अंतिम इच्छा को पूरी करने के लिए गांव के एक छोटे से कच्चे मकान में रहते हुए न सिर्फ मन लगाकर पढ़ाई की, बल्कि उन्होंने लक्ष्य बनाकर दो साल तक जमकर प्रशासनिक सेवा की तैयारी की।
राजस्थान प्रशासनिक सेवा की परीक्षा में एकसाथ सफल हुईं तीनों
कमला, ममता और गीता ने एकसाथ यूपीएससी (UPSC) का एग्जाम दिया, लेकिन कुछ नंबरों से तीनों का सिलेक्शन नहीं हो सका। यूपीएससी में असफलता के बाद तीनों बहनों ने एकसाथ राजस्थान प्रशासनिक सेवा की परीक्षा दी और उसमें तीनों का चयन हो गया। तीनों बहनों में सबसे बड़ी कमला चौधरी को ओबीसी रैंक में 32वां स्थान मिला, जबकि गीता को 64वां और ममता को 128वां स्थान मिला। बेटियों की इस सफलता के साथ ही मीरा देवी का संघर्ष भी खत्म हुआ और उनके दिवंगत पति का सपना भी पूरा हुआ।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.