'लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती... कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।' ये लाइनें प्रदेश की उन बेटियों पर एकदम सटीक बैठती हैं, जिन्होंने अपने लक्ष्य को पाने के लिए कड़ा संघर्ष किया, लेकिन हार नहीं मानी। राज्य से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक पदक जीत चुकीं इन महिला निशानेबाजों की कामयाबी का सफर काफी मुश्किलों भरा रहा। आइए जानते हैं ऐसे ही आत्मविश्वास से लबरेज महिला शूटरों के बारे में...
आगरा। 'लहरों से डरकर नौका पार नहीं होती... कोशिश करने वालों की हार नहीं होती।' ये लाइनें प्रदेश की उन बेटियों पर एकदम सटीक बैठती हैं, जिन्होंने अपने लक्ष्य को पाने के लिए कड़ा संघर्ष किया, लेकिन हार नहीं मानी। ये तब तक न रुकीं जब तक इन्होंने अपने लक्ष्य को भेद नहीं लिया। राज्य से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक पदक जीत चुकीं इन महिला निशानेबाजों की कामयाबी का सफर काफी मुश्किलों भरा रहा। किसी के पास राइफल खरीदने के पैसे नहीं थे, तो किसी के परिजन उसे शहर से बाहर भेजने को तैयार नहीं थे। इस कारण इन महिला निशानेबाजों को तीन से चार साल तक प्रैक्टिस से दूर रहना पड़ा। इन तमाम परेशानियों के बावजूद महिला शूटरों ने अपना ध्यान नहीं भटकने दिया। आज इनके परिजन के साथ प्रदेश के लोग भी इन पर गर्व महसूस कर रहे हैं। आइए जानते हैं ऐसी ही आत्मविश्वास से लबरेज महिला शूटरों के बारे में...
रश्मि- जादौन खंदारी : उधार की राइफल से शुरू की थी प्रैक्टिस
राश्मि बताती हैं कि वह मूल रूप से शिकोहाबाद की रहने वाली हैं। अब परिवार के साथ खंदारी में रहती हैं। बकौल रश्मि, मेरा बचपन से सपना था कि निशानेबाज बनूंगी, लेकिन यह महंगा खेल है और परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। उधार की राइफल से प्रैक्टिस शुरू तो कर दी, लेकिन पैसे की कमी आड़े आ गई। इस कारण चार साल तक प्रैक्टिस बंद रही, लेकिन दिल और दिमाग से शूटिंग नहीं निकली। मैंने प्राइवेट कंपनी में नौकरी की और पैसे जुटाए। इससे राइफल खरीदी और फिर शूटिंग की प्रैक्टिस में लग गई। परिवार ने भी साथ दिया। दस मीटर एयर राइफल स्टेट शूटिंग चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीता तो पहचान बन गई। अब नेशनल जीतने का सपना है।
ऋषिका कैम- शेखर रेजीडेंसी, पश्चिमपुरी : परिवार का मिला रश्मि, औरों की नहीं की परवाह
ऋषिका कैम के मुताबिक वह हमेशा से ही निशानेबाज बनना चाहती थी। इसमें परिवार ने भी साथ दिया, लेकिन हमारे कई परिचितों को यह ठीक नहीं लगा। वे मानते थे कि लड़कियों का शहर से बाहर जाना सुरक्षित नहीं है। महिला अपराध की कई घटनाओं का उदाहरण देकर वे डराते थे, लेकिन मैंने दृढ़ निश्चय कर रखा था। धीरे-धीरे कामयाबी मिली। मुझे मेडल मिलने लगे, मेरी तस्वीर अखबार में आई, फिर किसी ने मना नहीं किया। इंडियन टीम ट्रायल में तीसरा स्थान मिला, 2018 में चैंपियन ऑफ चैंपियंस रही। इससे पहले 2017 की जोनल गोल्ड मेडलिस्ट रह चुकी हूं।
सोनिया शर्मा- बल्केश्वर : रिश्तेदार बोले, बेटी को शूटर नहीं टीचर होना चाहिए, पर किसी की न सुनी
सोनिया का बचपन से ही सपना था कि वह एक निशानेबाज बनें। बचपन में ही पिता ने उनकी प्रतिभा को पहचान लिया। उन्होंने एयर पिस्टल खरीदकर दी। इसके बाद सोनिया प्रैक्टिस करने में जुट गईं। प्रैक्टिस शुरू करने के साथ ही सोनिया ने मन में यह संकल्प लिया कि अपने मन के सिवाय किसी की नहीं सुनेंगी। इस बीच किसी रिश्तेदार ने कहा कि लड़की को शूटर नहीं, टीचर होना चाहिए, लेकिन इस बात का मुझ पर कोई फर्क नहीं पड़ा। पिता से वादा किया था कि एक दिन लक्ष्य को पाकर दिखाऊंगी। वर्ष 2018 में नेशनल शूटिंग चैंपियनशिप में 10 मीटर एयर पिस्टल में गोल्ड मेडल जीता। बैंकॉक में 10 मीटर एयर पिस्टल में इंटरनेशनल पैरा शूटिंग वर्ल्ड कप में गोल्ड मेडल जीता।
ऐश्वर्या शर्मा- दयालबाग : खुद किया वादा पूरा करके दिखाया
शूटिंग आसान खेल नहीं है, लड़कियों के लिए तो और भी मुश्किल है... बचपन में ऐसा कुछ लोगों से सुना था। उस समय मैंने खुद से वादा किया कि इसे गलत साबित करूंगी। अब मुझे खुशी है कि मैं ऐसा कर पाई। ऐश्वर्या बताती हैं कि जिस दिन एयर राइफल हाथ में ली, उसी दिन से पदक पर निशाना साधने में लग गई। पहला मेडल जीतते ही आत्मविश्वास बढ़ गया। अब तक नॉर्थ जोन शूटिंग चैंपियनशिप में 17 बार मेडल जीत चुकी हूं। कोच विक्रांत सिंह के निर्देशन में तीन से चार घंटे प्रतिदिन शूटिंग की प्रैक्टिस करती हूं। परिवार ने हमेशा मेरा साथ दिया, इससे मेरी राह आसान हो गई।
मलिका सिंह- घटिया आजम खां : मेडल के साथ परिवार का भरोसा भी जीता
मलिका सिंह बताती हैं कि मैंने शूटर सोनिया शर्मा को प्रैक्टिस करते देखा था। मन में ख्याल आया कि क्यों न मैं भी शूटिंग सीख लूं। काम आसान नहीं था। एक तो पैसा बहुत चाहिए। दूसरा परिवार की अनुमति मिलना आसान नहीं था। शुरू में जिले में ही प्रतियोगिता में भाग लिया। यहां जीत मिली तो परिवार के लोगों को लगा कि मैं आगे जा सकती हूं। अनुमति मिल गई। 2019 की यूपी स्टेट इंटर स्कूल शूटिंग चैंपियनशिप में साल 2019 में सिल्वर मेडल जीतने वाली मलिका सिंह को भी शूटिंग में करियर बनाने में परेशानियों का सामना करना पड़ा।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.