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पैरालिसिस को मात देकर दोबारा अखाड़े में लौटीं सोनम, ओलंपिक में गोल्ड जीतना लक्ष्य

Published - Wed 07, Jul 2021

महज 19 साल की उम्र में टोक्यो ओलंपिक का टिकट हासिल करने वालीं सोनम जब 12 साल की थीं तो कुश्ती का दांव-पेच सीखने पहली बार अखाड़े में उतरीं। समय के साथ उनका खेल निखरता गया। 2017 में जब वह 16 साल की थीं तब बंगलूरू में हुई एशियन कैडेट चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज और इसी साल वर्ल्ड कैडेट चैंपियनशिप में दो गोल्ड मेडल जीतकर अपने इरादे जाहिर कर दिए थे। लेकिन इसके बाद शुरू हुआ उनका मुश्किल दौर। वह पैरालिसिस की शिकार हो गईं। इलाज कर रहे डॉक्टरों ने भी उनके ठीक होने की उम्मीद छोड़ दी थी, लेकिन अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति और पिता की देखभाल के कारण वह 6 महीने में ठीक होकर दोबारा मैट पर लौट आईं और ओलंपिक का कोटा हासिल किया। आइए जानते हैं सोनम के सफर के बारे में...

नई दिल्ली। हरियाणा के सोनीपत जिले के मदिना गांव की रहने वालीं सोनम मलिक कुश्ती की दुनिया में किसी पहचान की मोहताज नहीं हैं। वह भारत की उभरती हुई महिला पहलवान हैं। 19 वर्षीय सोनम मलिक ने इसी साल अप्रैल में कजाकिस्तान में एशियन ओलंपिक क्वॉलिफायर्स में 62 किलोग्राम वर्ग में सिल्वर मेडल जीतकर टोक्यो ओलंपिक का टिकट हासिल किया है। हालांकि यह सफर आसान नहीं था। पैरालिसिस से उबरने के बाद ओलंपिक का टिकट हासिल करने के लिए उन्हें अपनी फिटनेस साबित करने के साथ नामी महिला पहलवानों को पटखनी भी देनी थी। सोनम के लिए ओलंपिक क्वॉलिफायर्स में पहुंचने के लिए सबसे बड़ी चुनौती 2016 रियो ओलंपिक की ब्रॉन्ज मेडल विजेता साक्षी मलिक थीं। सोनम को खुद को साबित करने के लिए साक्षी को एक या दो बार नहीं, बल्कि चार बार ट्रायल्स में हराना पड़ा। लखनऊ में हुए इस टूर्नमेंट में सोनम के दांव के आगे साक्षी की एक न चली और इसके साथ ही उनके लिए ओलंपिक के दरवाजे भी बंद हो गए।

विरासत में मिली कुश्ती

सोनम को कुश्ती विरासत में मिली। इनके पिता राजेंदर भी पहलवानी किया करते थे। बाद में रोजगार के लिए वह अपने पुश्तैनी गांव मदिना में शुगर मिल में डिलिवरी की गाड़ी चलाने लगे। सोनम ने 12 साल की उम्र में कोच अजमेर सिंह मलिक की निगरानी में नेताजी सुभाष चंद्र बोस स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स में ट्रेनिंग शुरू की। सोनम ने जल्द ही कुश्ती के दांव-पेच में महारत हासिल करनी शुरू कर दी। 2017 में एशियन कैडेट चैंपियनशिप बंगलुरू में वह 56 किलोग्राम भार वर्ग में खेल रही थीं। यहां उन्होंने ब्रॉन्ज मेडल जीता। इसी साल उन्होंने वर्ल्ड कैडेट चैंपियनशिप में दो गोल्ड मेडल भी जीते।

एक वक्त ऐसा भी आया, जब लगा खत्म हो जाएगा कॅरियर

भारत की महिला कुश्ती में तेजी से सफलता की सीढ़ियां चढ़ रहीं सोनम की जिंदगी में उस समय बड़ा मोड़ आया जब नर्व की समस्या के चलते उनके हाथ में हलचल कम हो गई। एक वक्त ऐसा आया कि वह लिंब पैरालिसिस की स्थिति में पहुंच गईं। सोनम के कोच अजमेर सिंह के मुताबिक, वह हाथ भी नहीं हिला पा रही थीं। डॉक्टरों को भी कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही थी। सोनम को कुछ और करने की सलाह भी दी गई थी। अजमेर सिंह ने बताया, 'डॉक्टर ने तो यहां तक कहा दिया था कि अगर किस्मत होगी तो सोनम रिकवर हो पाएंगी।' सोनम के पिता महंगा इलाज कराने में सक्षम नहीं थे। लेकिन उन्होंने इस नियती मानने की बजाय बेटी को ठीक करने का फैसला किया। उन्होंने घर पर ही आयुर्वेदिक दवाएं ऊगाई और उससे सोनम को देना शुरू किया। यह सोनम की दृढ़ इच्छाशक्ति और पिता की मेहनत का ही कमाल था कि वह छह महीने के भीतर ही मैट पर लौट आईं।