टीवी धारावाहिक रामायण में सीता का किरदार निभाने वाली दीपिका चिखलिया ने अपराजिता संवाद में कहा
लखनऊ। 'कहावत है कि हर कामयाब पुरुष के पीछे किसी महिला का हाथ होता है, मगर आज मैं कहना चाहूंगी कि हर कामयाब महिला के पीछे भी एक महिला का ही हाथ होता है। महिलाओं को एक-दूसरे के साथ खड़ा होना होगा। हम किसी से कम नहीं हैं, फल अपके सामने पड़ा है, क्षमता है तो उसे उठा लीजिए।' यह कहना है रामानंद सागर के मशहूर टीवी धारावाहिक रामायण में सीता का किरदार निभाने वाली अभिनेत्री दीपिका चिखलिया का। अब एक सफल उद्यमी के तौर पर पहचान बना चुकीं दीपिका ने अभिनय क्षेत्र से जुड़े संघर्षों की चर्चा करते हुए कहा, सिर्फ 14 वर्ष की उम्र में मैं फिल्म इंडस्ट्री में आई और बतौर अभिनेत्री कॅरिअर शुरू किया। तब इस क्षेत्र को अच्छी नजर से नहीं देखा जाता था। हालांकि मेरे पिता ने मेरा पूरा साथ दिया। कॅरिअर में उतार-चढ़ाव के दौरान जो लोग सवाल खड़े करते थे, वही मेरी सफलता के बाद मुझे अपना रिश्तेदार बताने में गर्व महसूस करने लगे।
सीताजी से बहुत प्रभावित हूं
दीपिका ने कहा, सीताजी से मैं बहुत प्रभावित हूं, क्योंकि उन्होंने कई ऐसे मजबूत निर्णय लिए जो आसान नहीं थे। जैसे श्रीराम के साथ वन जाने का निर्णय। वहीं, हनुमानजी के लाख कहने के बावजूद वे उनके साथ लंका से चलने को तैयार नहीं हुईं। उनका स्पष्ट कहना था कि जब तक श्रीराम उन्हें यहां से लेकर नहीं जाते, वह किसी के साथ नहीं जाएंगी। अग्नि परीक्षा देने का भी निर्णय उनका खुद का था।
महिला की सफलता पर भी सवाल उठते हैं
दीपिका ने कहा, महिला असफल हो जाए तो समाज सवाल उठाता है, मगर उसकी सफलता को भी सवालों के घेरे में लाया जाता है, इसे रोकना होगा। महिला को सम्मान देने की शुरुआत हमें अपने घर से करनी होगी। पहली बार लखनऊ आईं दीपिका ने कहा, मैं सोचती थी कि यह संकरी गलियों वाला पुराना शहर होगा, मगर यहां की चौड़ी सड़कों और विकास की रफ्तार ने मेरी सोच बदल दी।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.