फायर सीजन और गर्मी के दिनों में पर्वतीय जिलों में पानी की समस्या देखते हुए अमर उजाला की पहल पर जालली मैदान में महिलाएं एकत्र हुईं। पर्यावरणविद् मोहन चंद्र कांडपाल ने गगास नदी के सहायक गधेरों को पुनर्जीवित करने के तरीकों पर जोर दिया और महिलाओं से इसमें सक्रिय भागीदारी करने का आह्वान भी किया। इस दौरान गगास नदी के सहायक गधेरों का जल स्तर बढ़ाने, वनों को आग से बचाने पर मंथन भी किया गया।
रानीखेत/द्वाराहाट (अल्मोड़ा)। जल संरक्षण और वनों को आग से बचाने के लिए एक बार फिर महिलाएं आगे आई हैं। अमर उजाला अपराजिता 100 मिलियन स्माइल्स के तहत द्वाराहाट ब्लॉक के कई गांवों से पहुंची महिलाओं ने गगास और रिस्कन नदी के साथ जल स्रोतों को संरक्षित करने का संकल्प लिया। इस दौरान महिलाओं ने अपने अधिकार भी जाने।
फायर सीजन और गर्मी के दिनों में पर्वतीय जिलों में पानी की समस्या देखते हुए अमर उजाला की पहल पर जालली मैदान में महिलाएं एकत्र हुईं। पर्यावरणविद् मोहन चंद्र कांडपाल ने गगास नदी के सहायक गधेरों को पुनर्जीवित करने के तरीकों पर जोर दिया और महिलाओं से इसमें सक्रिय भागीदारी करने का आह्वान भी किया। इस पर महिलाओं ने चाल, खाल बनाने, नदी के उद्गम स्थल पर पौधरोपण करने और वनों को आग से बचाने के लिए एकजुट होकर व्यापक मुहिम चलाने की शपथ ली। साथ ही जंगली जानवरों से छुटकारे के लिए सरकार से ठोस नीति बनाने की मांग भी की। दरअसल, पारंपरिक जल स्रोत कम रिचार्ज हो पाते हैं, जिससे ग्रामीणों को भारी परेशानी होती हैं। इस दौरान गोष्ठी में पहुंचे वरिष्ठ अधिवक्ता दिनेश तिवारी ने महिलाओं को घरेलू हिंसा सहित कई कानूनों की जानकारी दी।
गर्मियों में की जाती है पानी की व्यवस्था
महिला मंगल दल को साथ लेकर हमने शिलंग गांव में पारंपरिक जल स्रोतों से योजना बनाने का काम किया है। इससे ग्रामीणों को लाभ मिल रहा है। प्राकृतिक स्रोतों की नियमित रूप से सफाई की जाती है। गर्मियों के वक्त नौलों में बारी-बारी से पानी की व्यवस्था बनाई गई है।
-हेमा नेगी, प्रधान शिलंग।
सरकार को ठोस नीति बनानी चाहिए
गांव आज भी विकास की बाट जोह रहे हैं। सरकारों ने मुंह फेर लिया है। जंगली जानवर फसलों को तबाह कर रहे हैं। बंदरों ने खेती किसानी पूरी तरह से चौपट कर दी है। इन हालातों में कैसे गांवों का विकास होगा और पलायन रुकेगा। सरकार को ठोस नीति बनानी चाहिए।
-पुष्पा रावत, महिला मंगल दल अध्यक्ष सनणैं।
ठोस कार्ययोजना बने
गगास नदी के संरक्षण के लिए हमने महिला एकता परिषद के माध्यम से पूर्व में भी कई अभियान चलाए। पुराने चाल, खाल बंद हो गए हैं। लेकिन वन विभाग के चाल खाल खोदने की अनुमति नहीं देने से कार्य में व्यवधान आ रहा है। इसके लिए ठोस कार्ययोजना बनाई जाएगी।
-मधुबाला कांडपाल, सचिव महिला एकता परिषद।
बंदरों की समस्या से मिले निजात
-सरकार एक ओर किसानों की आय दोगुनी करने की बात कर रही है। दूसरी ओर पहाड़ के गांवों में खेती चौपट हो रही है। पूर्व में भी जनप्रतिनिधियों ने ठोस नीति बनाने का आश्वासन दिया था, लेकिन आज तक बंदरों की समस्या से निजात नहीं मिली है। ऐसे में कैसे किसानों की आय दोगुनी होगी।
-भावना रावत, ईड़ा।
यह मुहिम शानदार
अमर उजाला ने अपराजिता अभियान चलाकर महिलाओं को सशक्त करने की वास्तव में सही मुहिम चलाई है। इस तरह के जागरूकता कार्यक्रमों के माध्यम से ही महिलाएं अधिकारों के प्रति जागरूक होंगी। यह मुहिम शानदार है। सुदूरवर्ती गांवों तक इस मुहिम का प्रचार प्रसार करना होगा।
-कैलाश हर्बोला, प्रवक्ता इतिहास, सुरईखेत।
पर्यावरणविद् मोहन चंद्र कांडपाल ने बताया ऐसे होगा गगास नदी का संरक्षण
1-गगास नदी के उद्गम स्थल दूनागिरि, कुकूछिना, भटकोट, पांडवखोली में प्राचीन जल स्रोतों को रिचार्ज करना।
2-नदी के स्रोत से ही छोटे-छोटे गड्ढे बनाकर उनमें वर्षा जल एकत्र करने के साथ-साथ घासों और वृक्षों का रोपण कर हरियाली बढ़ाई जाएगी। इससे एक ओर वर्षा का पानी सीधे बहने की बजाय गड्ढों में जमा होगा और भूजल भंडारों का पुनर्भरण करेगा, वहीं नमी के संरक्षण से क्षेत्र में हरियाली बढ़ेगी तथा भूक्षरण व भूस्खलन पर रोक लगेगी।
3-उद्गम स्थल पर पूर्व में बनी लुप्त हो चुकी खाल, खंतियों, चालों को दोबारा से पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाएंगे।
4-इन स्थानों पर पूर्व में बने खत्ते भी खत्म हो गए हैं। फारेस्ट एक्ट से क्लीयरेंस दिलाने के प्रयास करने होंगे।
5-पहले भी नदी के संरक्षण को लेकर कार्य किए गए, लेकिन फारेस्ट एक्ट आड़े आ रहा है। इस बारे में सरकार से वार्ता करेंगे।
वरिष्ठ अधिवक्ता दिनेश तिवारी ने बताए महिलाओं को उनके अधिकार
1-एक महिला होने के नाते आपको पता होना चाहिए कि आपको भी कानूनी मदद लेने का अधिकार है और आप इसकी मांग कर सकती हैं। यह राज्य सरकार की जिम्मेदारी है कि वह आपको मुफ्त में कानूनी सहायता मुहैया करवाए।
2-सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला दिया है कि बलात्कार या छेड़छाड़ की घटना होने और शिकायत दर्ज करने के बीच काफी वक्त बीत जाने के बाद भी एक महिला अपने खिलाफ यौन अपराध का मामला दर्ज करा सकती है।
3-एक महिला यदि किसी कारणवश पुलिस स्टेशन नहीं जा सकती है, तो वह एक पंजीकृत डाक के माध्यम से लिखित शिकायत भेज सकती है, जो पुलिस उपायुक्त या पुलिस आयुक्त के स्तर के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी को संबोधित की गई हो। कोई भी पुलिस स्टेशन इस बहाने से एफआईआर दर्ज करने से इंकार नहीं कर सकता है कि वह क्षेत्र उनके दायरे में नहीं आता।
4-दहेज अधिनियम 1961 की धारा 3 और 4 में न केवल दहेज देने या लेने, बल्कि दहेज मांगने के लिए भी दंड का प्रावधान है। इस धारा के तहत एक बार इस पर दर्ज की गई एफआईआर इसे गैर-जमानती अपराध बना देती है। शारीरिक, मौखिक, आर्थिक, यौन संबंधी या अन्य किसी प्रकार का दुर्व्यवहार धारा 498-एक के तहत आता है। आईपीसी की इस धारा के अलावा, घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 भी महिलाओं को उचित स्वास्थ्य देखभाल, कानूनी मदद, परामर्श और आश्रय गृह संबंधित मामलों में मदद करता है। घरेलू हिंसा होने पर महिलाएं सीधे पटवारी अथवा नजदीकी थाना इंचार्ज को सूचित करें तत्काल एक्शन होगा।
5-इंटरनेट पर सुरक्षा का अधिकार : सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम (आईटी एक्ट) की धारा 67 और 66-ई बिना किसी भी व्यक्ति की अनुमति के उसके निजी क्षणों की तस्वीर को खींचने, प्रकाशित या प्रसारित करने को निषेध करती है। आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम 2013 की धारा 354-सी के तहत किसी महिला की निजी तस्वीर को बिना अनुमति के खींचना या साझा करना अपराध माना जाता है।
6-समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 समान कार्य के लिए पुरुष और महिला को समान भुगतान का प्रावधान करता है। यह भर्ती वसेवा शर्तों में महिलाओं के खिलाफ लिंग के आधार पर भेदभाव को रोकता है।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.