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निर्भया के गुनहगारों को फांसी में देरी क्यों?

Published - Sun 09, Feb 2020

अमर उजाला अपराजिता 100 मिलियन स्माइल्स के तहत हुई गोष्ठी में बोलीं महिलाएं व छात्राएं

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हाथरस। अमर उजाला अपराजिता-100 मिलियन स्माइल्स के तहत शनिवार को हुई गोष्ठी में महिलाओं व छात्राओं ने सवाल उठाया कि आखिर निर्भया के गुनहगारों को फांसी देने में देरी क्यों की जा रही है। इससे समाज में गलत संदेश जा रहा है। गोष्ठी में निर्भया के गुनहगारों को जल्द से जल्द फांसी पर चढ़ाने की मांग की।
राजेंद्र लोहिया विद्या मंदिर इंटर कॉलेज में हुई गोष्ठी में सभी का यही कहना था कि निर्भया के गुनहगार को किसी भी सूरत में जिंदा नहंीं छोड़ना चाहिए। महिलाओं व छात्राओं का कहना था कि यह गुनहगार तरह-तरह के फंडे अपनाकर अपनी मौत का समय आगे खींच रहे हैं, जबकि यह दोषी साबित हो चुके हैं। ऐसे में इन्हें जल्द से जल्द फांसी पर लटकाया जाना चाहिए। इस मौके पर मधुवाला विमल एडवोकेट, गुंजा शर्मा, सोनल अग्रवाल, अंजली मित्तल, ममता कौशिक एडवोकेट, मनु दीक्षित, आशा कोछड़, कृति, वैदेही जैन, सभ्यता, संध्या सिंह, अलका सिंह, शब्दिता छौंकर, नेहा सिंह, वंदना शर्मा, रेनू जोशी आदि थीं।
बातचीत
निर्भया कांड एक दिल दहलाने वाला कांड है। सजा में देरी से दरिंदों का दुस्साहस बढ़ रहा है। अब देरी नहीं होनी चाहिए। ऐसे कांडों में तो मौके पर ही दोषियों को सजा मिलनी चाहिए। इससे ऐसे जघन्य कांड करने वाला अपराधी पहले दस बार सोचेगा। इस कांड के सभी दोषियों को जल्द से जल्द फांसी पर लटकाया जाना चाहिए। -गुंजा शर्मा, समाजसेविका।

  • इन दरिंदों को सुप्रीम कोर्ट मौत की सजा सुना चुका है। राष्ट्रपति दया याचिका खारिज कर चुके हैं। कानून तो पीड़ितों के लिए है। अपराधियों के लिए नहीं। यदि इसकी आड़ में दोषी बच रहे हैं तो ऐसे कानून को बदल देना चाहिए, जिससे अपराधियों को आसानी से सजा दी जा सके। -ममता कौशिक, अधिवक्ता
  • यदि अपराधियों को सजा नहीं मिलती है तो अपराध ज्यादा बढ़ जाता है। अपराधियों को हौसले बढ़ जाते हैं। निर्भया कांड के दोषियों को सुप्रीम कोर्ट फांसी की सजा सुना चुका है। आखिर फिर इन्हें किस बात की रियायत मिल रही है। निर्भया कांड के दोषियों को अब जीने का कोई अधिकार नहीं है। न्याय यदि देर से मिले तो एक तरह यह अन्याय ही है। -अंजली मित्तल, प्रधानाचार्य
  • निर्भया के साथ हुई हैवानियत को सात साल से ज्यादा का समय हो गया है। सुप्रीम कोर्ट अपना फैसला सुना चुका है, लेकिन अभी तक दोषी फांसी पर नहीं चढ़े हैं। इससे बेही गलत संदेश जा रहा है। दोषी तरह तरह कानूनी दांव पेच निकालकर बचना चाह रहे हैं। ऐसे लोगों को जीने का कोई हक नहीं है। सरकार ऐसा कानून बनाए जिससे ऐसे दरिंदों को सजा मिलने में देरी न हो। बेटियों को भी अपने बचाव के लिए खुद आगे आना होगा। वह खुद अपनी रक्षा करें। -मनु दीक्षित कवियित्री।
  • निर्भया कांड में बहुत इंतजार हो गया। अब देरी की कोई गुंजाइश नहीं है। निर्भया के साथ जो कुछ हुआ इससे बड़ा पाप नहीं हो सकता। संविधान में ऐसे नियम बनाए जाने चाहिए कि ऐसा घृणित कृत्य करने वालों को तत्काल सजा मिले। तभी ऐसे अपराधों पर अंकुश लगेगा और काफी हद तक व्यवस्थाएं सुधरेंगी। अभिभावकों को भी अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देने चाहिए। इस तरह की घटनाएं समाज पर कलंक हैं। -सोनल अग्रवाल, समाजसेविका।
  • निर्भया कांड एक नृशंस कांड है। इसके दोषियों को इस संसार में जीवित रहने का कोई अधिकार नहीं है। अब यदि उन्हें फांसी देने में देरी हो रही है तो न्याय प्रणाली का लचीलापन है। इस लचीलेपन को दूर किया जाना चाहिए, जिससे अपराधी इसका लाभ न ले सकें। -आशा कोछड़, शिक्षिका।
  • निर्भया जैसे जघन्य कांड में इंसाफ में देरी दर्शाती है कि इस देश में सजा को किस स्तर तक टाला जा सकता है। निर्भया के दोषियों को अभी तक फांसी पर नहीं हुई। यह हमारे कानून व्यवस्था का लचीलापन है। इसे दूर किया जाना चाहिए। जल्द से जल्द इन दरिंदों को फांसी पर लटकाया जाना चाहिए। -नेहा सिंह, छात्रा।
  • निर्भया कांड के दोषियों को सुप्रीम कोर्ट फांसी की सजा सुना चुका है। इसके बाद भी दोषी कानूनी दाव पेंच चल रहे हैं और कानून के लचीलेपन का फायदा उठा रहे हैं। ऐसे दोषियों पर किसी भी सूरत में रहम नहीं होना चाहिए। कानून इतना सख्त हो कि इस तरह की भयानक घटना करने वाले अपराधी अपराध करने से पहले सौ बार सोचें। आज युवाओं को संस्कार की भी जरूरत है। -मधुवाला विमल, अधिवक्ता।