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एफडीडीआई की छात्राएं बोलीं : कानून में कमी, तभी गुनेहगार ढूंढ रहे बचने का तरीका

Published - Sun 09, Feb 2020

आरोपियों की वकालत करने वाले वकीलों ने कानून में कमी ढूंढ निकाली है, जिससे उन्हें सजा सुनाए जाने के बावजूद भी फांसी नहीं मिल पा रही है।

aparajita sanwad

रोहतक। निर्भया के अभिभावकों के साथ-साथ देश की जनता भी चाहती है कि गुनहगारों को फांसी हो, लेकिन मानवाधिकार की दुहाई देने वाले कुछ एनजीओ को लगता है कि आरोपियों को क्षमा पाने का और जीने का अधिकार है। आरोपियों की वकालत करने वाले वकीलों ने कानून में कमी ढूंढ निकाली है, जिससे उन्हें सजा सुनाए जाने के बावजूद भी फांसी नहीं मिल पा रही है। क्या निर्भया को जीने का अधिकार नहीं था...? अगर यही आलम रहा तो जनता का कानून से विश्वास उठ जाएगा। शनिवार को अमर उजाला के अपराजिता 100 मिलियन स्माइल्स के तहत सिटी कार्यालय में आयोजित संवाद कार्यक्रम का समापन हुआ। समापन दिवस पर फुटवियर डिजाइन एंड डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट (एफडीडीआई) की एमबीए की छात्राओं ने अपने विचार रखे। छात्राओं का मानना है कि आरोपियों को जल्द फांसी हो तो यह फैसला नजीर बनेगा और अपराधियों के मन में खौफ पैदा करेगा।

  • निर्भया के केस को 8 साल हो चुके हैं, 2012 का केस आज तक ज्यों का त्यों चल रहा है। निर्भया के अभिभावकों के साथ-साथ देश की जनता भी चाहती है कि गुनहगारों को फांसी हो, लेकिन मानवाधिकार की दुहाई देने वाले कुछ एनजीओ को लगता है कि आरोपियों को क्षमा पाने का और जीने का अधिकार है। मैं पूछती हूं हर उस एनजीओ और हर उस इंसान से जिसने मानवाधिकारों का परचम उठाया है, क्या निर्भया को जीने का अधिकार नहीं था...? आरोपियों की वकालत करने वाले वकीलों ने कानून में कमी ढूंढ निकाली है, जिससे उन्हें सजा सुनाए जाने के बावजूद भी सजा नहीं मिल पा रही। अगर यही आलम रहा तो जनता का कानून से विश्वास उठ जाएगा। - स्मृति गुप्ता, छात्रा
  • निर्भया केस में दोषियों को सजा मिलने में हो रही देरी से समाज में गलत संदेश जा रहा है। दोष साबित होने के बावजूद और सजा सुनाए जाने के बाद भी पिटीशन फाइल किए जा रहे हैं। जनता चाहती है कि दोषियों को सजा मिले और निर्भया के साथ न्याय हो, लेकिन सरकार कोई सख्त कदम उठाना नहीं चाहती। हमारी राजनैतिक पार्टियों को हर मुद्दे पर राजनीति की रोटियां सेेंकने से मतलब रह गया है। - अर्पिता सिंह, छात्रा
  • निर्भया केस के बाद कानून में फास्ट ट्रैक कोर्ट आई। निर्भया केस को फास्ट ट्रैक कोर्ट में ट्रांसफर होने के बाद भी यदि 8 साल लग गए हैं तो फास्ट ट्रैक कोर्ट का कोई मतलब नहीं रह गया है, जब केस फास्ट ट्रैक कोर्ट में जाने के बावजूद आरोपी कानून में कमी ढूंढ निकालते हैं तो क्या फायदा ऐसे कोर्ट और कानूनी धाराओं का जो एक पीड़िता को न्याय ना दिला सकें। - करुणा नाथावत, छात्रा
  • देश का संविधान कहता है कि जीने का अधिकार सबको है तो निर्भया पर यह लागू क्यों नहीं हुआ? कैसे वे गुुनहगार एक लड़की के साथ निर्ममता से दुष्कर्म करके उसे मौत की कगार पर पहुंचाकर अपने लिए दया याचिका दायर कर सकते हैं। दोष साबित होने के बाद भी क्यों इस केस को इतना लंबा खींचा जा रहा है। आखिर सजा क्यों नहीं मिल पा रही उन गुनहगारों को? ऐसी क्या कमी है हमारे कानून में, जिसका सहारा लेकर दोषी बचना चाहते हैं। - ज्योति शिलक, छात्रा
  • दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध करने के बाद किसी को जीने का अधिकार मिलना ही नहीं चाहिए, फिर दया याचिका तो दूर की बात है। अगर निर्भया को समय से न्याय मिलता तो आज ये हाल न होता कि वह आरोपी अपने वकीलों की वकालत के दम पर दया याचिका दायर कर पाते। अब भी देर नहीं हुई है, आरोपियों को जल्द फांसी देकर नजीर पेश करनी चाहिए, जिससे दूसरे विकृत मानसिकता वाले लोगों के मन में कानून का खौफ पैदा हो। - काजल दुबे, छात्रा
  • निर्भया के केस में दोषियों का अपराध क्षमा योग्य कतई नहीं है। दोष साबित होने के बावजूद सजा में देरी कानूनी कमजोरी को दर्शाती है। अगर इन आरोपियों को सजा न मिल पाई तो अपराधियों के मन से कानून का डर सदा के लिए खत्म हो जाएगा। इन अपराधियों को समय मिला तभी इनके तीमारदारों ने कानून में खामियां ढूंढी, अगर समय ही ना मिला होता तो आज कितनी ही निर्भयाएं बेखौफ जी रही होतीं। - लता सक्सैना, छात्रा
  • अगर गुनहगार खुद को बेगुनाह बताकर दया याचिका दायर करते हैं तो यह हमारे कानून की सबसे बड़ी खामी है। वह नाबालिग ही कैसा जो दुष्कर्म जैसे अपराध को अंजाम दे रहा है। आज किसी भी गुनहगार को कानून का कोई डर नहीं है, अपराध करते वक्त उन्हें पता होता है कि कुछ भी कर लो भाई... हमारे देश का कानून तो इतना लचीला है की हम बच ही जाएंगे। दो-चार साल जेल की रोटियां तोड़कर फिर से आजादी की जिंदगी जीएंगे और कोई बड़ा ही अपराध है तो राष्ट्रपति जी से क्षमा याचना कर लेंगे। - अर्चिता निगम, छात्रा
  • विदेशों जैसे कानून हमारे देश में लागू होना आज की जरूरत बन चुकी है, क्योंकि लोग कानून से बेखौफ होकर जी रहे हैं। अपराधियों को किसी सजा का कोई डर ही नहीं। अगर सजा सख्त होगी और सरेआम मौत मिलेगी तो सबको डर लगेगा। दूसरों की बहन-बेटियों की अस्मत से खेलने वाले इन अपराधियों के मन में कानून का डर पैदा करना हमारी सरकार की सबसे बड़ी जरूरत है, लेकिन देश की सरकार को बेटियों की सुरक्षा से जैसे कोई मतलब ही नहीं। - सलोनी खंडेलवाल, छात्रा