Aparajita
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निर्भया के गुनहगारों को एक दिन और जीने न दें

Published - Thu 06, Feb 2020

‘अपराजिता : 100 मिलियन स्माइल’ के तहत अमर उजाला के सिटी कार्यालय में हुए संवाद कार्यक्रम में बेटियां बोलीं

aparajita rohtak

रोहतक। निर्भया के गुनहगारों को बगैर किसी देरी के फांसी दी जाए, जब चारों गुनहगार दोषी साबित हो चुके हैं, तो ऐसे में उन्हें फांसी देने में देरी क्यों, ऐसे दरिंदों को एक दिन भी जीने का अधिकार नहीं है। यह कहना है राजकीय स्नातकोत्तर महिला महाविद्यालय की छात्राओं का। वे मंगलवार को अमर उजाला के ‘अपराजिता : 100 मिलियन स्माइल’ के तहत सिटी कार्यालय में आयोजित संवाद कार्यक्रम में बोल रहीं थीं।

छात्राओं ने असंतोष जताते हुए कहा कि जब राष्ट्रपति भी दरिंदों की दया याचिका खारिज कर चुके हैं, तो फिर देरी क्यों? इस दौरान महिलाओं ने कठोर और त्वरित न्यायिक व्यवस्था बनाने पर भी जोर दिया। सभी छात्राओं का यह मानना है कि आरोपियों को जल्द फांसी हो तो यह फैसला नजीर बनेगा और अपराधियों के मन में खौफ पैदा करेगा।

  • मृत्युदंड के फैसले से कम से कम लोगों में संदेश तो जाएगा कि अपराध की सजा मिलती है। दुष्कर्म या सामूहिक दुष्कर्म करने वाले दुराचारी अपराध को अंजाम देने से पहले कम से कम सोचेंगे तो सही। इतने लंबे इंतजार को देख कर फास्ट ट्रैक कोर्ट की जरूरत महसूस होती है। अपराध खासकर रेप जैसे मामलों में त्वरित फैसला जरूरी है। - सुप्रिया गौतम, छात्रा
  • हमें उम्मीद थी कि इस केस में फैसला जल्दी आएगा। हालांकि इससे यह तो नहीं कहा जा सकता कि दुष्कर्म के मामले रुक जाएंगे, लेकिन एक उम्मीद तो है। फैसले की खबर आने के बाद मेरे मन में ये सवाल उठा कि इतनी देर क्यों? ऐसे जघन्य अपराध के बावजूद अपराधियों को सजा देने में इतनी देरी क्यों...? यह हमारे कानून व्यवस्था और सरकारी तंत्र पर सवालिया निशान है। निर्भया मामले ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। लोगों ने न्याय की आस में इतना संघर्ष किया। मेरा मानना है कि ऐसे अपराध को अंजाम देेने वालों के खिलाफ फैसला लेने में देरी न की जाए। - आरती धनखड़, छात्रा
  • निर्भया के केस में फांसी की सजा का फैसला उन पुरुषों के लिए सबक है जो महिलाओं के उत्पीड़न, दमन, और उन पर ताकत के इस्तेमाल को अपना अधिकार समझते हैं। लेकिन फैसला आने के बावजूद भी सजा में देरी आरोपियों के हौसले बुलंद करता है, आरोपियों के वकील अपनी वकालत के दम पर निर्भय की मां को कैसे चैलेंज कर सकते हैं, यह हमारे देश की कानूनी प्रक्रिया और प्रशासन पर सवाल उठाता है। न्याय में देरी न्याय की अनदेखी है। सामूहिक दुष्कर्म जैसी घटनाएं न केवल महिलाओं के प्रति की गई हिंसा है, बल्कि यह सामूहिक दमन भी है। आरोपियों को जल्द से जल्द सजा मिले। - नीति, छात्रा
  • सैद्धांतिक तौर पर तो कोई भी सभ्य समाज मृत्युदंड के खिलाफ होता है, लेकिन कोर्ट के इस फैसले से महिलाओं को राहत मिलेगी और उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा। जो भी लोग कानून की लड़ाई लड़ रहे हैं, उन्हें संतोष मिलेगा। साथ ही न्यायिक प्रक्रिया में उनका विश्वास बढ़ेगा। लेकिन फैसला लेने के साथ-साथ उसे अंजाम देना भी जरूरी है, इसलिए मैं चाहती हूं कि निर्भया के आरोपियों को जल्द से जल्द सजा हो। इससे अपराध रुकेगा या नहीं, यह तो भविष्य बताएगा। अपराध को खत्म करने के लिए वैचारिक और मानसिक तौर बदलाव लाने होंगे। - रीति, छात्रा
  • फैसला सही है, लेकिन मुझे लगता है कि अब भी अंजाम तक पहुंचाने में काफी देरी हो रही है। जब सब कुछ पता था, सारी चीजें सामने हैं, फिर क्यों इतनी देरी हो रही है..? क्या इस सवाल का जवाब है किसी न्यायपालिका के पास। निश्चित तौर पर यह विलंब सारे भारतवासियों को खटक रहा है। निर्भया के साथ जो कुछ हुआ, उसने बच्चे-बच्चे को हिलाकर कर रख दिया था। हमारी न्यायिक व्यवस्था में ऐसे मामलों में तुरंत फैसला सुनाना चाहिए, तभी लोगों के मन में डर बैठेगा। - कनिका गर्ग, छात्रा
  • मेरा मानना कि आरोपियों को फांसी की सजा देने का फैसला काफी पहले आ जाना चाहिए था। बहरहाल, इससे लोगों के मन में न्यायिक व्यवस्था में आस्था बढ़ेगी। जो सवाल उठ रहे थे, कम से कम वे तो नहीं उठेंगे। खैर, फैसला आने के बावजूद सजा न होना भी न्यायिक प्रक्रिया पर सवालिया निशान जैसा है। ऐसे में लोगों को हैदराबाद में हुए पुलिस अकाउंटर वाला फैसला बिल्कुल सही था, दुष्कर्म के हर आरोपी का एकाउंटर ही हो जाना चाहिए। क्योंकि कानून व्यवस्था तो आरोपियों को सजा देने में सालों-साल निकाल देती है और तब तक लोगों का कानून व्यवस्था से विश्वास खत्म हो चुका होता है। - खुशबू शर्मा, छात्रा
  • कोर्ट के फैसले का हम सम्मान करते हैं। पर, फैसला आने के बाद सजा देने में जितनी देर हो रही है उतना ही निर्भया के माता-पिता का संघर्ष लंबा हो रहा है। पूरे देश ने निर्भया को न्याय दिलाने के लिए संघर्ष किया है। हम ये तो नहीं कह सकते कि आरोपियों को सजा-ए-मौत दे देने से अपराध, दुष्कर्म खत्म हो जाएंगे या कम हो जाएंगे, लेकिन इससे अपराधी के मन में एक डर जरूर बैठेगा। कोई भी जघन्य कांड को अंजाम देने से पहले अपराधी बार-बार सोचेगा। - कोमल, छात्रा
  • जो कर हम सरकार को देते हैं, उस कर के पैसे से आरोपी जेलों में बैठकर मुफ्त की रोटी तोड़ते हैं। दुष्कर्म के आरोपियों को अपराध साबित होते ही सजा मिलनी चाहिए और सजा उन्हें सजा-ए-मौत नहीं बल्कि ऐसी सजा मिले, जिसे अपराधी और उनका परिवार दोनों भुगते। जैसे दुष्कर्म पीड़िता के साथ-साथ उसका परिवार जिस पीड़ा से गुजरता है, उसी दर्द, मानसिक और शारीरिक पीड़ा का अहसास आरोपियों को भी होना चाहिए। निर्भया के मामले में सजा में देरी प्रशासन व न्यायिक प्रक्रिया पर सवाल खड़े करती है और यही वजह है कि लोगों का भरोसा न्यायिक प्रक्रिया से उठ जाता है। - दिव्या गुलिया, छात्रा