सोते-जागते बस ओलंपिक मेडल का सपना देखती थी साक्षी
लखनऊ। लड़कियां कभी ये न सोचें कि वे कुछ नहीं कर सकतीं। मन में विश्वास के साथ कड़ी मेहनत कीजिए, सफलता खुद-ब-खुद आपके कदम चूमेगी। यह कहना है ओलंपिक पदक विजेता रेसलर साक्षी मलिक का। अमर उजाला के अपराजिता-100 मिलियन स्माइल्स संवाद में साक्षी ने हर सवाल का बड़ी ही बेबाकी से जवाब दिया। साक्षी ने कहा कि मैं बेहद साधारण परिवार से हूं। जब मैंने रेसलिंग शुरू की तो लोगों ने तरह-तरह की बातें कीं। मेरे पिता से कहा कि लड़की है और लड़कों वाले क्षेत्र में जा रही है। कई लोगों ने मेरे पहनावे को लेकर भी कमेंट किए, लेकिन मैं तो सोते-जागते बस ओलंपिक मेडल के ही सपने देखती थी। मैंने जब स्पोट्र्स में जाने की सोची तब ज्यादातर लोग क्रिकेट देखते और पसंद करते थे। मुझे किसी भी स्पोट्र्स में जाना था, पर यह नहीं सोचा था कि रेसलिंग ही करूंगी। हां, एक चीज जरूर सोचती थी कि स्पोट्ïर्स में आगे बढ़ी तो विदेश तक जाने को मिलेगा और हवाई जहाज में भी बैठने को मिलेगा। बस यही सपना पाले मैं रेसलिंग में जुटी रही। जब मुझे ओलंपिक मेडल मिला तो उन्हीं लोगों केसुर बदल गए। सभी मुझ पर नाज करने लगे। मेरे दादा जी मिट्टी में कुश्ती लड़ते थे। सुबह चार बजे उठकर प्रैक्टिस के लिए जाना, शाम को प्रैक्टिस करना और साथ में पढ़ाई भी करना मेरे लिए बेहद कठिन था, लेकिन वो सारी चुनौतियां मेरे सपने के आगे बौनी थीं। इस वक्त तो मेरा पूरा फोकस टोक्यो ओलंपिक पर है। उसी की तैयारी में जुटी हूं।
संदेश : लड़कियां कभी ये न सोचें कि वे कुछ नहीं कर सकतीं। मन में विश्वास के साथ कड़ी मेहनत कीजिए, सफलता खुद-ब-खुद आपके कदम चूमेगी।
सवाल : पढ़ाई और कुश्ती, दोनों के बीच सामंजस्य कैसे बिठाया।
जवाब : मैंने फिजिकल एजुकेशन से मास्टर किया है। एक समय था जब प्रैक्टिस के दौरान मैं इतना थक जाती थी कि घर वालों से एक दिन कह दिया कि मुझसे या तो कुश्ती करा लो या फिर पढ़ाई। बाद में कुश्ती छोड़कर पढ़ाई करने तक को बोल दिया। इसके बाद तो मैंने कभी घर वालों से नहीं कहा कि मैं थक जाती हूं। कठिन परिश्रम करती रही और सपने को पूरा किया।
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सवाल : ओलंपिक में पदक के लिए हुए मुकाबले के दौरान अंतिम समय में आप क्या सोच रही थीं।
जवाब : कुश्ती के दौरान अंतिम समय में लग रहा था कि हार गई तो क्या होगा। लेकिन, फिर तुरंत सोचा कि मेरी इतने सालों की मेहनत पर पानी फिर जाएगा। इस मौके को हाथ से नहीं जाने देना है। बस आखिर दांव में विरोधी को हराकर कांस्य पदक जीत लिया।
सवाल : आज भी हमारे देश में बच्चों के लिए खेल की बुनियादी सुविधाएं इतनी अच्छी नहीं हैं। अच्छे कोच की कमी रहती है। बच्चे कैसे अपने कॅरिअर को आगे बढ़ाएं?
जवाब : आज तो फिर भी बहुत सुविधाएं हैं। सरकार भी बहुत मदद कर रही है। मेरे समय में तो ऐसी सुविधाएं नहीं थीं। इसलिए कहूंगी कि बच्चे हिम्मत न हारें और जो संसाधन हैं, उनमें अपना बेस्ट परफॉर्मेंस दें।
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अपनी बहन के सपने को पूरा किया : नवजोत कौर
मैं पंजाब के एक छोटे से गांव से हूं। गांव से निकलना ही मुश्किल था, उस पर रेसलिंग के फील्ड में जाने के बारे में सोचना तो और भी ज्यादा मुश्किल था। हालांकि मेरी फैमिली ने मुझे बहुत सपोर्ट किया। तभी मैं एशियन चैंपियनशिप में गोल्ड जीतने तक का सफर तय कर पाई। मेरे पापा को पीटी उषा बहुत पसंद थीं तो वो मुझे भी आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित किया करते थे। लोगों ने लड़की के कुश्ती में जाने पर बहुत बार कमेंट किए, लेकिन जब मैंने मेडल जीता तो सबके मुंह बंद हो गए। मेडल आते हैं तो सभी तारीफ करने लग जाते हैं। दरअसल मेरी बहन का सपना था कि कुश्ती में वो मेडल जीते, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। इसलिए मैंने अपनी बहन के सपने को पूरा किया है। आगे ओलंपिक में भी मेडल लाऊंगी।
संदेश : किसी भी चीज की शुरुआत पूरे समर्पण के साथ करें और लक्ष्य को हासिल करने के लिए जी-जान लगा दें।
सवाल : क्या कभी छेडख़ानी जैसी स्थितियों का सामना करना पड़ा?
जवाब : अभी तक तो किसी की हिम्मत ही नहीं पड़ी। हमारी बॉडी लैंग्वेज से ही लोग अंदाजा लगा लेते हैं कि ये रेसलर है। इसके बाद तो किसी की हिम्मत ही नहीं होती।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.