'पीरिएड्स : एंड ऑफ सेंटेंस' डॉक्यूमेंट्री के कलाकारों ने बताई महिलाओं की जिंदगी की सच्चाई.... गंभीरता समझना तो दूर, इस पर लड़कियां भी आपस में नहीं करतीं बात
लखनऊ। माहवारी...हो तो दिक्कत और न हो तो और भी दिक्कत। बांझपन का दाग लग जाता है। हद तो यह है कि माहवारी पर खुलकर बातें तक नहीं की जाती। न बेटियां मां तो अपनी पीड़ा बताती हैं और न सहेलियों से साझा करती हैं। यही वजह है कि गांवों में आज भी माहवारी के दौरान गंदे कपड़े से लेकर घास तक इस्तेमाल की जाती है, जो महिलाओं के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। यह बेहद गंभीर मुद्दा है और महिलाओं की जिंदगी का एक अहम हिस्सा है। यह कहना था ऑस्कर विनिंग डॉक्यूमेंट्री 'पीरिएड्स : एंड ऑफ सेंटेंस' के कलाकरों शबाना खान, स्नेहा व सुमन का। उन्होंने कहा कि माहवारी जैसे मुद्दे पर हमने फिल्म किसी अवॉर्ड के लिए नहीं बनाई थी, हमारा उद्देश्य समाज में बदलाव लाने और लोगों की मदद करना था।
शबाना ने बताया कि पहले दिल्ली में थी, जहां से हापुड़ पहुंची और इस मुद्दे पर बीस साल काम किया। मुख्यमंत्री को जब इस फिल्म के बारे में जानकारी मिली तो उन्होंने कहा कि वह उनके गांव आएंगे और काम देखेंगे। शबाना ने कहा कि माहवारी की समस्या की गंभीरता को समझना समाज की आवश्यकता है। यह महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा है। एक्शन एड दिल्ली की समन्वयक सुलेखा सिंह ने बताया कि आज भी कई जगहें ऐसी हैं जहां माहवारी में महिलाएं गंदा कपड़ा व घास तक का इस्तेमाल करती हैं।
दो अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने इस मुद्दे पर काम करने के लिए अपने प्रयास से धन जुटाया और रिसर्च शुरू की। जिसमें यह जमीनी हकीकत सामने आई कि माहवारी पर लड़कियां ही आपस में खुलकर बातें नहीं करती। उन्होंने बताया कि फिल्म का उद्देश्य महिलाओं द्वारा महिलाओं के लिए महिलाओं तक... रहा।
साफ कपड़ा न मिलना दुर्भाग्यपूर्ण
डॉक्यूमेंट्री में अहम भूमिका निभाने वाली कलाकार सुमन ने छात्राओं से पूछा कि हमारी फिल्म किसने देखी, इस पर कुछ लड़कियों ने हाथ उठाए। उन्होंने कहा कि यह फिल्म जरूर देखें। ऑस्कर विनिंग डॉक्यूमेंट्री 'पीरिएड्स : एंड ऑफ सेंटेंस'माहवारी के दौरान औरत की पीड़ा की कहानी है, जो उसके शारीरिक व मानसिक कष्टों को बयां करती है। उन्होंने कहा कि फिल्म को ऑस्कर मिलना सराहनीय है। पर, हमें सोचना व मंथन करना होगा कि यह किस मुद्दे पर मिला है और हम इस समस्या को कैसे दूर कर सकते हैं।
आधी आबादी से जुड़ा है मुद्दा
स्नेहा ने कहा कि माहवारी ऐसी समस्या है, जिसे लेकर समाज में कुंठा जैसी व्याप्प्त है। मसलन, इस गंभीर मुद्दे को समझना तो दूर लोगों का बोलना तक दूभर है। लड़कियों व महिलाओं के जीवन का यह अहम अंग है, इस बात को समझना होगा और जब आधी आबादी इससे जुड़ी है तो उनका स्वास्थ्य हमारे लिए अहम हो जाता है। स्नेहा ने लोगों से अपील की कि इस फिल्म को जरूर देखें और गंभीरता को समझें।
नारी गरिमा को हमेशा बरकरार रखने और उनके चेहरे पर आत्मविश्वास भरी मुस्कान लाने का मैं हर संभव प्रयास करूंगा/करूंगी। अपने घर और कार्यस्थल पर, पर्व, तीज-त्योहार और सामाजिक, सांस्कृतिक व धार्मिक आयोजनों समेत जीवन के हर आयाम में, मैं और मेरा परिवार, नारी गरिमा के प्रति जिम्मेदारी और संवेदनशीलता से काम करने का संकल्प लेते हैं।
My intention is to actively work towards women's dignity and bringing a confident smile on their faces. Through all levels in life, including festivals and social, cultural or religious events at my home and work place, I and my family have taken an oath to work with responsibility and sensitivity towards women's dignity.