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दरिंदों को मिले ऐसी सजा, दुष्कर्म की सोच रखने वालों की कांप उठे रूह

Published - Fri 07, Feb 2020

अपराजिता: 100 मिलियन स्माइल के तहत अमर उजाला के सिटी कार्यालय में हुए संवाद कार्यक्रम में बेटियां बोलीं

aparajita rohtak

रोहतक। निर्भया के आरोपियों को सजा में हो रही देरी से दूसरे ऐसे जघन्य अपराध करने वाले गुनहगारों के मन से कानून का डर खत्म होता जा रहा है। इसलिए निर्भया के गुनहागारों को तुरंत सजा-ए-मौत मिले। जिससे दुष्कर्म की सोच रखने वालों की रूह तक कांप उठे। यह कहना है महारानी किशोरी जाट कन्या महाविद्यालय की छात्राओं का। वे बुधवार को अमर उजाला के ‘अपराजिता : 100 मिलियन स्माइल’ के तहत सिटी कार्यालय में आयोजित संवाद कार्यक्रम में अपने विचार रख रही थीं। इस दौरान सभी छात्राओं ने एक स्वर में निर्भया के गुनहगारों को सजा की मांग की। उन्होंने कहा कि जब चारों गुनहगार दोषी साबित हो चुके हैं, तो ऐसे में उन्हें फांसी देने में देरी नहीं होनी चाहिए। आरोपियों को जल्द फांसी दूसरे अपराधियों के मन में खौफ पैदा करेगा।

  • हमेशा बेटियां ही संस्कारों का बोझ क्याें ढोती रहें। क्या बेटों को संस्कारों की परिभाषा नहीं मालूम होनी चाहिए, कितनी ही निर्भया ऐसे अपराधों और अपराधियों को सहन करती रहेंगी। वकील हैं कि अपनी वकालत के दम पर आरोपियों को सुरक्षित करने में लगे हुए हैं आखिर क्यों...? क्या उनकी बहन-बेटियां कल कोई निर्भया नहीं बनेंगी, जो वह ऐसे आरोपियों को बचा रहे हैं। - हिमांशी पघांल, छात्रा
  • निर्भया के आरोपियों को सजा में हो रही देरी से दूसरे ऐसे जघन्य अपराध करने वाले गुनहगारों के मन से कानून का डर खत्म होता है। क्योंकि न्याय में देरी न्याय की अनदेखी है। ऐसा ही रहा तो न जानें कितनी ही निर्भया न्याय के लिए तरसेंगी। समाज से संवेदनशीलता खत्म होती जा रही है। इसके लिए सिर्फ कानून ही नहीं समाज भी जिम्मेदार है। दुष्कर्म करने वाले विकृत मानसिकता के लोगों की समाज में कोई जगह नहीं। - मनीषा श्योराण, छात्रा
  • हमारे देश में सजा भी आपका ओहदा देखकर होती है। यहां तो नेता क्या अब तो कानून व्यवस्था भी आपके लिए सजा आपका ओहदा और सिफारिश देखकर तय करती है। न जानें कितनी ही बेटियों के साथ दुष्कर्म करने वाले राम रहीम को आखिर क्यों फांसी नहीं हुई...? क्यों सरकार हमारे टैक्स से ऐसी विकृत मानसिकता वाले इंसान को जेड प्लस सिक्योरिटी दे रही है? दुष्कर्मियों का हैदराबाद के जैसे एनकाउंटर होना चाहिए था। - प्रियंका, छात्रा
  • निर्भया के केस में क्यों एक विकृत मानसिकता के अपराधी को खुलेआम नाबालिक मानकर छोड़ा गया। दुष्कर्म करते वक्त तो यह अपराधी नहीं देखते कि छोड़ो यह बच्ची 2 साल की, नाबालिक या 80 साल की वृद्धा है फिर क्यों कानून ऐसे आरोपियों की दया याचिका और नाबालिक के दर्रे को मानता है। क्या बेटियों के लिए, महिलाओं के लिए यह कानून व्यवस्था कभी संवेदनशील हो पाएगी...? इन दंरिदों का भी एनकाउंटर किया जाना चाहिए। - प्रीति राठी, छात्रा
  • सैद्धांतिक तौर पर तो कोई भी सभ्य समाज मृत्युदंड के खिलाफ होता है, लेकिन कोर्ट के इस फैसले से महिलाओं को राहत मिलेगी और उनका आत्मविश्वास बढ़ेगा। जो भी लोग कानून की लड़ाई लड़ रहे हैं, उन्हें संतोष मिलेगा। साथ ही न्यायिक प्रक्रिया में उनका विश्वास बढ़ेगा। लेकिन फैसला लेने के साथ-साथ उसे अंजाम देना भी जरूरी है, इसलिए मैं चाहती हूं कि निर्भया के आरोपियों को जल्द से जल्द सजा हो। इससे अपराध रुकेगा या नहीं, यह तो भविष्य बताएगा। - पूनम, छात्रा
  • फैसला सही है, लेकिन मुझे लगता है कि अब भी अंजाम तक पहुंचाने में काफी देरी हो रही है। जब सब कुछ पता था, सारी चीजें सामने हैं, फिर क्यों इतनी देरी हो रही है..? क्या इस सवाल का जवाब है किसी न्यायपालिका के पास। निश्चित तौर पर यह विलंब सारे भारतवासियों को खटक रहा है। निर्भया के साथ जो कुछ हुआ, उसने बच्चे-बच्चे को हिलाकर कर रख दिया था। हमारी न्यायिक व्यवस्था में ऐसे मामलों में तुरंत फैसला सुनाना चाहिए, तभी लोगों के मन में डर बैठेगा। - प्रीति जाखड़, छात्रा
  • जो कर हम सरकार को देते हैं, उस कर के पैसे से आरोपी जेलों में बैठकर मुफ्त की रोटी तोड़ते हैं। दुष्कर्म के आरोपियों को अपराध साबित होते ही सजा मिलनी चाहिए और सजा उन्हें सजा-ए-मौत नहीं बल्कि ऐसी सजा मिले, जिसे अपराधी और उनका परिवार दोनों भुगते। जैसे दुष्कर्म पीड़िता के साथ-साथ उसका परिवार जिस पीड़ा से गुजरता है, उसी दर्द, मानसिक और शारीरिक पीड़ा का अहसास आरोपियों को भी होना चाहिए। निर्भया के मामले में सजा में देरी प्रशासन व न्यायिक प्रक्त्रिस्या पर सवाल खड़े करती है और यही वजह है कि लोगों का भरोसा न्यायिक प्रक्रिया से उठ जाता है। - निधि, छात्रा