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निर्भया के गुनहगारों का हैदराबाद के आरोपियों की तरह हो एनकाउंटर

Published - Mon 10, Feb 2020

अपराजिता : 100 मिलियन स्माइल’ के तहत अमर उजाला के सिटी कार्यालय में हुआ संवाद कार्यक्रम में महिलाएं बोलीं

aparajita rohtak

रोहतक। कानून में संसोधन जरूरी है, ताकि दुष्कर्म पीड़िता को समय पर न्याय मिल सकें। अगर ऐसे ही आरोपियों को रियायत मिलती रही तो एक दिन ऐसा भी आएगा जब जनता का कानून से विश्वास उठ जाएगा और उन्हें बिना किसी कोर्ट कचहरी के चक्कर काटे एनकाउंटर सही फैसला लगने लगेगा। निर्भया के गुनहागारों को बगैर किसी देरी के फांसी पर चढ़ा देना चाहिए। जब राष्ट्रपति भी दरिंदों की दया याचिका खारिज कर चुके हैं, तो फिर देरी क्यों? वीरवार को अमर उजाला के ‘अपराजिता : 100 मिलियन स्माइल’ के तहत सिटी कार्यालय में आयोजित संवाद कार्यक्रम में महिलाओं ने कठोर और त्वरित न्यायिक व्यवस्था बनाने पर भी जोर दिया।

  • सरकार ने जब तीन तलाक वाले मामले में हस्तक्षेप किया, धारा 370 में हस्तक्षेप किया तो फिर दुष्कर्म जैसे जघन्य अपराध के मामले में क्यों हस्तक्षेप नहीं कर रही हमारी सरकार..? आज देश में छोटी-छोटी बच्चियों और 80 साल की बुजुर्ग महिला के साथ दुष्कर्म होता है और कानून दुष्कर्म करने वाले आरोपियों को गर नाबालिक का दर्जा देकर रिहाई दे देती है तो इससे बड़ा मजाक क्या होगा। दुष्कर्म के आरोपियों को दया याचिका दायर करने का अधिकार भी नहीं मिलना चाहिए, रिहाई तो बहुत दूर की बात है। - ऋतु, प्रधानाचार्या, हरिकिशन स्कूल
  • दुष्कर्म एक दिमागी बिमारी की तरह है। यह वायरस हर उस विकृत मानसिकता वाले इंसान में मौजूद है जो दुष्कर्म जैसी छोटी सोच को अपने दिमाग में पालता है। मेरा सवाल है कानून व्यवस्था और सरकार से आखिर क्यों एक आरोपी को आरोप सिद्ध होने के बावजूद भी नाबालिक बोलकर याचिका पर याचिका दायर करने का मौका दिया जाता है। ऐसे अपराध करने वाले आरोपियों को उसी समय फांसी जैसी सजा-ए-मौत की सजा देनी चाहिए, जिससे दूसरे ऐसी घृणित मानसिकता के लोगों में डर पैदा हो। - अनीता, टीचर
  • हम हमेशा बेटियों को ही क्यों बंदिशों और संस्कारों में रहना सिखाए? आखिर बेटों को क्यों हम औरतें और हमारा समाज वह संस्कार नहीं देने देता जो बेटी को दिए जाते हैं। बेटी तो सास-ससुर को भी अपने माता-पिता माने और बेटा दूसरे की बहन-बेटी को भी अपनी बहन-बेटी समान नहीं मान सकता। बदलाव खुद से ही होगा, सिर्फ कानून सख्त कर देने या सजा-ए-मौत हो जाने से बदलाव संभव नहीं। क्योंकि इसका समाधान इस वायरस को जड़ से उखाड़ फैंकना है ना कि कोई विकल्प इलाज ढूंढना। हमारे संस्कारों की नींव ही आगे जाकर बदलाव ला पाएंगी। - पूजा मलिक, प्रधानाचार्या, किड्स पैराडाइज
  • आखिर क्यों निर्भया की मां को सोशल साइट पर आकर अपनी बेटी के लिए इंसाफ मांगना पड़ा। अगर समय से न्याय हो तो गलती करने वालों को डर भी लगेगा। कानून में कुछ तो कमी है जो आरोपियों को समय पर समय मिलता जा रहा है। कानून में संसोधन जरूरी है, जिससे पीड़िता को समय पर न्याय मिल सकें। अगर ऐसे ही आरोपियों को रियायत मिलती रही तो एक दिन ऐसा भी आएगा जब जनता का कानून से विश्वास उठ जाएगा और उन्हें बिना किसी कोर्ट कचहरी के चक्कर काटे एनकाउंटर सही फैसला लगने लगेगा। - ममता भोला, प्रधानाचार्या, शिक्षा भारती स्कूल
  • दुष्कर्म जैसा अपराध करने वाला क्या नाबालिक और क्या बालिक। क्या वह नाबालिक उस वक्त नाबालिक नहीं था, जब वह इस जघन्य अपराध को अंजाम दे रहा था, तो वह अब सजा के वक्त नाबालिक कैसे हो गया? क्या वह तीन साल की बच्ची नाबालिक नहीं थी, जिसकी दुष्कर्म के बाद निर्ममता से हत्या कर दी गई। फिर क्यों हमारा कानून इतना लचीला है कि ऐसे आरोपियों को बच निकलने का मौका मिल जाता है। - लीला, इंचार्ज प्राइमरी विंग, एसएम मैमोरियल स्कूल
  • हम लोगों की एक बुरी आदत है चीजों, लोगों और घटनाओं को भूल जाने की। जब कोई हादसा होता है तो हम जोर-शोर से कैंडल मार्च और नारेबाजी करते हैं और बाद में उसे भूल जाते हैं। एक बार कैंडल मार्च निकालकर समस्या का समाधान नहीं हो सकता। अगर निर्भया के केस में आज से सात साल पहले ही फैसला आया होता और आरोपियों को सजा मिली होती तो आज ये हाल न होता। - सीमा शर्मा, डायरेक्टर, एमसीटीसी