Aparajita
Aparajita

महिलाओं के सशक्तिकरण की एक सम्पूर्ण वेबसाइट

पीरियड्स : शर्माएं नहीं, खुलकर करें बात

Published - Thu 30, May 2019

पीरियड्स अभिशाप नहीं है, बल्कि वरदान है। इस दौरान महिला को अपवित्र मानने के बजाय उसे अतिरिक्त देखभाल की जरूरत होती है। पीरियड्स के प्रति नकारात्मक सोच रखने वाले लोगों को यह समझने की जरूरत है कि पीरियड्स के कारण ही एक महिला नई जिंदगी को जन्म देती है।

 

पीरियड्स के समय मां-बेटी को खास देखभाल की जरूरत
देहरादून। पीरियड्स अभिशाप नहीं है, बल्कि वरदान है। इस दौरान महिला को अपवित्र मानने के बजाय उसे अतिरिक्त देखभाल की जरूरत होती है। पीरियड्स के प्रति नकारात्मक सोच रखने वाले लोगों को यह समझने की जरूरत है कि पीरियड्स के कारण ही एक महिला नई जिंदगी को जन्म देती है। यह बातें मंगलवार को विश्व मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन दिवस (मैन्सट्रूअल हाइजीन डे) के मौके पर महिलाओं ने अमर उजाला कार्यालय में आयोजित संवाद में कही। उन्होंने कहा कि महिला में इतनी शक्ति है कि वह हर दर्द को झेलती है और समाज अपनी रूढ़िवादी सोच से उसके आत्मसम्मान को ठेस पहुंचाने का काम करता है। महिलाएं बोलीं कि हम नहीं तो नया जीवन भी नहीं।
अमर उजाला के अपराजिता 100 मिलियन स्माइल्स अभियान के तहत व विंग्स ऑफ होप द हेल्पिंग हैंड के सहयोग से अमर उजाला कार्यालय पटेलनगर में संवाद का आयोजन किया गया, जिसमें महिलाओं व बेटियों ने पीरियड्स पर खुलकर चर्चा की। साथ ही पहली बार पीरियड्स होने के अपने अनुभवों को भी साझा किया। महिलाओं ने बताया कि पहली बार पीरियड्स होने पर उन्हें किस तरह की समस्याएं झेलनी पड़ीं। इस दौरान संध्या शर्मा ने कहा कि पीरियड्स के प्रति लोगों की सोच वही पुरानी है। आज भी पीरियड्स के दौरान उन्हें अजीब दृष्टिकोण से देखा जाता है। राघवी चौधरी, ज्योति नेगी, अर्चना सिंघल, चंपा दीवान ने कहा कि इस दौरान महिलाओं को मानसिक व शारीरिक दोनों ही तरह से सहयोग की जरूरत होती है, जो उन्हें नहीं मिल पाता। वह कहती हैं कि उनके समय में सुविधाओं के अभाव के साथ ही रूढ़िवादी सोच से लड़ना भी बहुत मुश्किल था, लेकिन वह अपनी बेटियों का खास ध्यान रखती हैं ताकि वह पीरियड्स को अभिशाप नहीं बल्कि वरदान समझें।

अपने लड़की होने पर गर्व महसूस करें : अवनि
अवनि शर्मा (13) ने बताया कि जब उन्हें पहली बार पीरियड्स हुई तो वह बहुत परेशान हुईं। फिर मां ने उसे समझाया। अवनि ने कहा कि पीरियड्स के दौरान बहुत गुस्सा आता है और सोचती हूं कि वह क्यों लड़की हैं और उसके साथ ही ऐसा क्यों होता है। अवनि के इस सवाल का सभी महिलाओं ने बारी-बारी से जवाब दिया। उसे बताया कि क्योंकि वह एक बेटी और आने वाले समय में एक मां के रूप में सबसे शक्तिशाली है। जबकि फार्मर मिस इंडिया व सामाजिक कार्यकर्ता अनुकृति गुसांई ने अवनि से कहा कि सबसे पहले हर लड़की अपने लड़की होने पर गर्व महसूस करे तो इससे संबंधित कोई समस्या नहीं आएगी।

मां बेटी को इसके बारे में बताए : अनुकृति
फार्मर मिस इंडिया व सामाजिक कार्यकर्ता अनुकृति गुसांई का कहना है कि अपने शरीर में होने वाले परिवर्तनों को सकारात्मक रूप से स्वीकार करें। बेटी को इस दौरान सबसे अधिक एक मां के सहयोग की जरूरत होती है। बेटी के खानपान से लेकर उसका मानसिक तौर पर अच्छा महसूस कराया जाना चाहिए। इस विषय पर खुलकर बात की जानी चाहिए। अनुकृति ने कहा कि बाजार में शराब, सिगरेट खरीदते हुए लोग हिचकिचाते नहीं हैं और न कोई शर्म महसूस करते हैं। जबकि यह गलत चीजें है, लेकिन हम सेनेटरी पैड खरीदते समय इतना हिचकिचाते है कि मानो कोई गलत चीज खरीद रहे हैं। इस विषय पर बात करने में हमें शर्म छोड़नी होगी।

जागरूकता की जरूरत : ज्योति चौहान
महिला हेल्पलाइन प्रभारी ज्योति चौहान कहती हैं, हमारे समय में और आज के समय में बड़ा फर्क है। जब पहली बार पीरियड्स हुई तो हमें कोई जानकारी नहीं थी। इसलिए परेशान भी हुए और जानकारी नहीं होने से गलत धारणाएं इसमें जुड़ती गईं, जिन्हें बदलना जटिल हो गया है। आज का दौर कुछ और है। मुझे अपनी बेटी को बताने की जरूरत ही नहीं पड़ी। उसे सब पता था और बड़ी ही आसानी से वह पीरियड्स के दौरान खुद को रखती है। अगर जागरूकता हो तो हर बेटी की झिझक को दूर किया जा सकता है।

जितना हिचकिचाएंगे, उतना मुश्किल होगा : डॉ. अदिति शर्मा,
सीनियर वेटनरी ऑफिसर डॉ. अदिति शर्मा कहती हैं कि इस मुद्दे पर बात करने में जितना हिचकिचाएंगे, उतना खुद ही शर्मिंदा होंगे। खासतौर पर पुरुषों के सामने। यह एक आम बात है। इसे सकारात्मक रूप से स्वीकार करें और हर महिला अपनी बेटी को इस दौरान मजबूत बनाए। आज सुविधाएं है, बस सही देखभाल की जरूरत है।

यह कोई छुआछूत नहीं है : साधना शर्मा
सामाजिक कार्यकर्ता साधना शर्मा कहती हैं, महिलाओं के बिना यह संसार नहीं चल सकता। इसलिए महिलाओं से जुड़ी हर चीज का समाज को सम्मान करना चाहिए। यह कोई छुआछूत नहीं है। इसी के कारण एक नई जिंदगी दुनिया में आती है।

गौरवान्वित महसूस करती हूं : नूपुर मोहंती,
सामाजिक कार्यकर्ता नूपुर मोहंती कहती हैं, मैं स्वयं को बहुत गौरवान्वित महसूस करती हूं, कि मैं एक महिला हूं और हमसे ही एक नई जिंदगी को जन्म मिलता है। पीरियड्स पर हमें खुद से आगे आकर इस रूढ़िवादी सोच को बदलना होगा कि महिलाएं इस दौरान अपवित्र होती है।  

मैंने इस बारे में बेटों को समझाया: इला पंत
इला पंत कहती हैं, इस दौरान परिवार को सहयोग बहुत जरूरी होता है, जोकि मुझे मिलता है। मेरे दो बेटे है। पीरियड्स के दौरान मुझ पर जब खास ध्यान दिया जाता है तो बेटों ने मुझसे सवाल किया। मैंने उनसे कुछ छुपाने के बजाय उन्हें सब कुछ अच्छे से समझाया। ताकि वह भी आने वाले समय में इस बात का ध्यान रखें कि लड़की को इन दिनों खास देखभाल की जरूरत होती है।

गांव की बेटियों में नई सोच जगाएंः  विशाखा
विंग्स ऑफ होप की  विशाखा कहती हैं, हमने कई गांव में इस विषय पर जाकर बात की है। यह एक गंभीर चिंतन का विषय है कि गांव में बेटियों व महिलाओं में पीरियड्स के प्रति जागरूकता नहीं है। आज भी महिलाएं व बेटियां पीरियड्स के दौरान सेनेटरी पैड का इस्तेमाल नहीं करती हैं। हमारा प्रयास है कि हम ज्यादा से ज्यादा सेनेटरी पैड गांव तक पहुंचा सकें और उनमें यह नई सोच जगाएं कि पीरियड्स गलत नहीं है। हमने देखा है कि आज भी लड़कियों को पीरियड्स के दिनों में अलग रहने के लिए कहा जाता है, जिसे बदलने की जरूरत है।

बदलाव हमें स्वयं से करना होगा : दीपिका
चाइल्ड हेल्पलाइन की दीपिका कहती हैं महिलाओं को पहले खुद को बदलने की जरूरत है, जिस समय को उन्होंने देखा है वह अपनी बेटियों को उससे दूर रखें। उन्हें अच्छा महसूस कराए। ताकि वह पीरियड्स को सकारात्मक रूप से अपनाएं। नियम अपनी सुविधाओं के अनुसार बनाए गए थे, क्योंकि उस दौरान साफ-सफाई आदि के लिए अच्छी सुविधाएं नहीं थीं, लेकिन आज उन रूढ़िवादी नियमों की जरूरत नहीं है। इसलिए बदलाव हमें स्वयं से करना होगा।